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भगवान शिव शंकर और उनके अवतार (Lord Shiva Avatars)

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शंकर या महादेव आरण्य संस्कृति जो आगे चल कर सनातन शिव धर्म (शैव धर्म) नाम से जाने जाती है शिव सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है।

वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि नामों से भी जाना जाता है।

तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू शिव घर्म शिव-धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है।

यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं।

शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है।

शिव के गले में नाग देवता वासुकी विराजित हैं ,हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।

भगवान शिव के पूजन के लिए उचित समय प्रदोष काल में होता है। ऐसा माना जाता है कि शिव की आराधना दिन और रात्रि के मिलने के दौरान करना ही शुभ होता है।

शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती ने भी शिवरात्रि का व्रत करके भगवान शिव का पूजन किया था।

भगवान शिव ने अपने भक्तों की पूजा और तपस्या से खुश होकर रक्षा करने के लिए कई अवतार लिए हैं।

हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं।

शिव शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं।

अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं।

शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है।

भगवान शिव बेहद क्रोध वाले देवता माने जाते हैं लेकिन इसके साथ ही उन्हें सबसे जल्दी प्रसन्न और कृपा होने वाला देवता भी माने जाते हैं|

भगवान शिव की भक्ति बिना मन्त्रों के अधूरी है.भगवान शिव के प्रभावशाली मन्त्र

शिव जी का मूल मंत्र

ऊँ नम: शिवाय।।

संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।

शिवपुराण में सावन के महीने में महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विशेष महत्व बताया गया है।

इस मंत्र के जप से संसार के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसका जप करने से मृत्यु के भय और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

सनातन धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है

रूद्र – रूद्र से अभिप्राय जो दुखों का निर्माण व नाश करता है।

पशुपतिनाथ – भगवान शिव को पशुपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवआत्माओं के स्वामी हैं।

अर्धनारीश्वर – शिव और शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम से जाना जाता है।

महादेव – महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति।

भोलेनाथ – भोलेनाथ का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वालों में अग्रणी। यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शंकर आसानी से किसी पर भी प्रसन्न हो जाते हैं।

लिंगम – पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है।

नटराज – नटराज को नृत्य का देवता मानते है क्योंकि भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी है।

“शिव” शब्द का अर्थ “शुभ, स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण” होता है।

लोक व्युत्पत्ति में “शिव” की जड़ “शि” है जिसका अर्थ है जिन में सभी चीजें व्यापक है और “वा” इसका अर्थ है “अनुग्रह के अवतार”।

ऋग वेद में शिव शब्द एक विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है, रुद्रा सहित कई ऋग्वेदिक देवताओं के लिए एक विशेषण के रूप में।

शिव शब्द ने “मुक्ति, अंतिम मुक्ति” और “शुभ व्यक्ति” का भी अर्थ दिया है।  इस विशेषण का प्रयोग विशेष रूप से साहित्य के वैदिक परतों में कई देवताओं को संबोधित करने हेतु किया गया है।

यह शब्द वैदिक रुद्रा-शिव से महाकाव्यों और पुराणों में नाम शिव के रूप में विकसित हुआ, एक शुभ देवता के रूप में, जो “निर्माता, प्रजनक और संहारक” होता है।

भगवान शिव के 108 नाम

1. शिव:- कल्याण स्वरूप

2. महेश्वर:- माया के अधीश्वर

3. शम्भू:- आनंद स्वरूप वाले

4. पिनाकी:- पिनाक धनुष धारण करने वाले

5. शशिशेखर:- चंद्रमा धारण करने वाले

6. वामदेव:- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले

7. विरूपाक्ष:- विचित्र अथवा तीन आंख वाले

8. कपर्दी:- जटा धारण करने वाले

9. नीललोहित:- नीले और लाल रंग वाले

10. शंकर:- सबका कल्याण करने वाले

11. शूलपाणी:- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

12. खटवांगी:- खटिया का एक पाया रखने वाले

13. विष्णुवल्लभ:- भगवान विष्णु के अति प्रिय

14. शिपिविष्ट:- सितुहा में प्रवेश करने वाले

15. अंबिकानाथ:- देवी भगवती के पति

16. श्रीकण्ठ:- सुंदर कण्ठ वाले

17. भक्तवत्सल:- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले

18. भव:- संसार के रूप में प्रकट होने वाले

19. शर्व:- कष्टों को नष्ट करने वाले

20. त्रिलोकेश:- तीनों लोकों के स्वामी

21. शितिकण्ठ:- सफेद कण्ठ वाले

22. शिवाप्रिय:- पार्वती के प्रिय

23. उग्र:- अत्यंत उग्र रूप वाले

24. कपाली:- कपाल धारण करने वाले

25. कामारी:- कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले

26. सुरसूदन:- अंधक दैत्य को मारने वाले

27. गंगाधर:- गंगा को जटाओं में धारण करने वाले

28. ललाटाक्ष:- माथे पर आंख धारण किए हुए

29. महाकाल:- कालों के भी काल

30. कृपानिधि:- करुणा की खान

31. भीम:- भयंकर या रुद्र रूप वाले

32. परशुहस्त:- हाथ में फरसा धारण करने वाले

33. मृगपाणी:- हाथ में हिरण धारण करने वाले

34. जटाधर:- जटा रखने वाले

35. कैलाशवासी:- कैलाश पर निवास करने वाले

36. कवची:- कवच धारण करने वाले

37. कठोर:- अत्यंत मजबूत देह वाले

38. त्रिपुरांतक:- त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले

39. वृषांक:- बैल-चिह्न की ध्वजा वाले

40. वृषभारूढ़:- बैल पर सवार होने वाले

41. भस्मोद्धूलितविग्रह:- भस्म लगाने वाले

42. सामप्रिय:- सामगान से प्रेम करने वाले

43. स्वरमयी:- सातों स्वरों में निवास करने वाले

44. त्रयीमूर्ति:- वेद रूपी विग्रह करने वाले

45. अनीश्वर:- जो स्वयं ही सबके स्वामी है

46. सर्वज्ञ:- सब कुछ जानने वाले

47. परमात्मा:- सब आत्माओं में सर्वोच्च

48. सोमसूर्याग्निलोचन:- चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले

49. हवि:- आहुति रूपी द्रव्य वाले

50. यज्ञमय:- यज्ञ स्वरूप वाले

51. सोम:- उमा के सहित रूप वाले

52. पंचवक्त्र:- पांच मुख वाले

53. सदाशिव:- नित्य कल्याण रूप वाले

54. विश्वेश्वर:- विश्व के ईश्वर

55. वीरभद्र:- वीर तथा शांत स्वरूप वाले

56. गणनाथ:- गणों के स्वामी

57. प्रजापति:- प्रजा का पालन- पोषण करने वाले

58. हिरण्यरेता:- स्वर्ण तेज वाले

59. दुर्धुर्ष:- किसी से न हारने वाले

60. गिरीश:- पर्वतों के स्वामी

61. गिरिश्वर:- कैलाश पर्वत पर रहने वाले

62. अनघ:- पापरहित या पुण्य आत्मा

63. भुजंगभूषण:- सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले

64. भर्ग:- पापों का नाश करने वाले

65. गिरिधन्वा:- मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

66. गिरिप्रिय:- पर्वत को प्रेम करने वाले

67. कृत्तिवासा:- गजचर्म पहनने वाले

68. पुराराति:- पुरों का नाश करने वाले

69. भगवान्:- सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न

70. प्रमथाधिप:- प्रथम गणों के अधिपति

71. मृत्युंजय:- मृत्यु को जीतने वाले

72. सूक्ष्मतनु:- सूक्ष्म शरीर वाले

73. जगद्व्यापी:- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले

74. जगद्गुरू:- जगत के गुरु

75. व्योमकेश:- आकाश रूपी बाल वाले

76. महासेनजनक:- कार्तिकेय के पिता

77. चारुविक्रम:- सुन्दर पराक्रम वाले

78. रूद्र:- उग्र रूप वाले

79. भूतपति:- भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी

80. स्थाणु:- स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81. अहिर्बुध्न्य:- कुण्डलिनी- धारण करने वाले

82. दिगम्बर:- नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले

83. अष्टमूर्ति:- आठ रूप वाले

84. अनेकात्मा:- अनेक आत्मा वाले

85. सात्त्विक:- सत्व गुण वाले

86. शुद्धविग्रह:- दिव्यमूर्ति वाले

87. शाश्वत:- नित्य रहने वाले

88. खण्डपरशु:- टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

89. अज:- जन्म रहित

90. पाशविमोचन:- बंधन से छुड़ाने वाले

91. मृड:- सुखस्वरूप वाले

92. पशुपति:- पशुओं के स्वामी

93. देव:- स्वयं प्रकाश रूप

94. महादेव:- देवों के देव

95. अव्यय:- खर्च होने पर भी न घटने वाले

96. हरि:- विष्णु समरूपी

97 .पूषदन्तभित्:- पूषा के दांत उखाड़ने वाले

98. अव्यग्र:- व्यथित न होने वाले

99. दक्षाध्वरहर:- दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले

100. हर:- पापों को हरने वाले

101. भगनेत्रभिद्:- भग देवता की आंख फोड़ने वाले

102. अव्यक्त:- इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले

103. सहस्राक्ष:- अनंत आँख वाले

104. सहस्रपाद:- अनंत पैर वाले

105. अपवर्गप्रद:- मोक्ष देने वाले

106. अनंत:- देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित

107. तारक:- तारने वाले

108. परमेश्वर:- प्रथम ईश्वर

देवों के देव महादेव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान भोलेनाथ शेर की खाल क्यों धारण किये रहते है

पौराणिक कथा के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह चतुर्दशी भी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन श्री हरि विष्णु ने हिरण्याकश्यिप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था नरसिंह अवतार में वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए किया था ।

पुराणों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु, भगवान शिव को उस समय एक अनोखा उपहार देना चाहते थे।

हिरण्याकश्यप का पापो का घडा भर चुका था उन्होंने अपने भक्त को बचाने के लिए नरसिंह अवतार लिया और हिरण्याकश्यप का वध कर दिया उस समय नरसिंह अवतार लिए भगवान विष्णु बहुत क्रोध में थे।

तब भोलेनाथ ने अपने अंश वीरभद्र को उत्पन्न कर वीरभद्र से कहा कि तुम जाकर विष्णु अवतार नृसिंह से निवेदन करो कि वह अपना क्रोध त्याग दे।

जब नृसिंह भगवान नहीं माने तब वीरभद्र ने शरभ रूप धारण किया।

नृसिंह को वश में करने के लिए वीरभद्र ने गरुड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित रूप धारण किया और शरभ कहलाए। शरभ ने नृसिंह भगवान को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगे।

उनके वार से घायल होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और भगवान शिव से निवेदन किया कि, भगवान शिव अपने आसन के रूप नरसिंह की चर्म को स्वीकार करें।

इसके बाद नृसिंह, भगवान विष्णु के शारीर में मिल गए और भगवान शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया इसलिए भगवान भोलेनाथ बाघ की खाल पर विराजते हैं। तथा वह सदैव उनके पास रहती है।

शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। कहीं उनके 24 तो कहीं उनके उन्नीस अवतारों के बारे में उल्लेख मिलता है। वैसे शिव के अंशावतार भी बहुत हुए हैं। हालांकि शिव के कुछ अवतार तंत्रमार्गी है तो कुछ दक्षिणमार्गी।

रुद्रावतार भगवान् शिव (रूद्र ) के अवतारों को कहा जाता है।

वेदों में शिव का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र का अर्थ होता है भयानक। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं।

विद्वानों के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।

1. महाकाल

शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है।

इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं।

उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्लिंग विख्यात है।

उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ शक्तिपीठ में है।

2. तारा

शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तार (तारा) नाम से प्रसिद्ध है।

इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।

यह पीठ पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ।

पूर्वी रेलवे के रामपुर हॉल्ट स्टेशन से 4 मील दूरी पर स्थित है।

3. बाल भुवनेश

महादेव का तीसरा रुद्रावतार है बाल भुवनेश।

इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है।दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है।

उत्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार सतपुली-बांघाट मोटर मार्ग पर सतपुली से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर मणिद्वीप (सांगुड़ा) में स्थित है।

इस पावन सरिता का संगम गंगाजी से व्यासचट्टी में होता है, जहां वेदव्यासजी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था।

4. षोडश श्रीविद्येश

भगवान शंकर का चौथा अवतार है षोडश श्रीविद्येश।

इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। ‘दस महा-विद्याओं’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं।

भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था।

इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।

5. भैरव

शिव के पांचवें रुद्रावतार सबसे प्रसिद्ध माने गए हैं जिन्हें भैरव कहा जाता है।

इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।

उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है,जहां उनके ओष्ठ गिरे थे।

किंतु कुछ विद्वान गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।

 6. छिन्नमस्तक

छठा रुद्र अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है।

इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।

छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है।दस महाविधाओं में से एक मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखंड की राजधानी रांची से 75 किमी दूर रामगढ़ में है।

मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था अत: नया मंदिर बनाया गया, किंतु प्राचीन प्रतिमा यहां मौजूद है।

दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर स्थित इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है। ज्ञातव्य है कि दामोदर को शिव व भैरवी को शक्ति माना जाता है।

7. द्यूमवान

शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है।

इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।

धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ ‘पीताम्बरा पीठ’ के प्रांगण में स्थित है।

पूरे भारत में यह मां धूमावती का एक मात्र मंदिर है जिसकी मान्यता भी अधिक है।

8. बगलामुख

शिव का आठवां रुद्र अवतार बगलामुख नाम से जाना जाता है। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है।

दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं-

 1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर,

2. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित बगलामुखी मंदिर

3. मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर। इसमें हिमाचल के कांगड़ा को अधिक मान्यता है।

9. मातंग

शिव के दस रुद्रावतारों में नौवां अवतार मातंग है।

इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता है।

मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। मोहकपुर की मुख्य अधिष्ठाता है। देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।

10. कमल

शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता है।

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग भी अवतारों की ही श्रेणी में आते हैं।

बारह ज्योतिर्लिंग

1. सौराष्ट्र में ‘सोमनाथ’,

2. श्रीशैल में ‘मल्लिकार्जुन’,

3. उज्जयिनी में ‘महाकालेश्वर’,

4. ओंकार में ‘अम्लेश्वर’,

5. हिमालय में ‘केदारनाथ’,

6. डाकिनी में ‘भीमेश्वर’,

7. काशी में ‘विश्वनाथ’,

8. गोमती तट पर ‘त्र्यम्बकेश्वर’,

9. चिताभूमि में ‘वैद्यनाथ’,

10. दारुक वन में ‘नागेश्वर’,

11. सेतुबंध में ‘रामेश्वर’ और

12. शिवालय में ‘घुश्मेश्वर’।

भगवान शिव के 19 अवतार (Avatar of shiva)

वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, ऋषि दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, ब्रह्मचारी, सुनटनर्तक और यक्ष अवतार। इनका उल्लेख,शिव पुराण’ में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।

1. वीरभद्र अवतार

वीरभद्र को भगवान शिव का गण माना जाता है। यह अवतार उनकी जटा से उत्पन्न हुआ था।

भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था।

जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया।

उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए।

शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया

2. पिप्पलाद अवतार

मानव जीवन में भगवान शिव के इस अवतार का बड़ा महत्व है।

शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। यह अवतार भगवान शिव ने परम तपस्वी महर्षि दधीचि के पुत्र के रुप में लिया था।

कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए?

देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना।

पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे।

देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे।

तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर अहो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।

3. नंदी अवतार

नंदी अवतार

भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है।

नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है।नंदी को भगवान शिव के गणों में प्रमुख माना जाता है।

इस अवतार की कथा है कि शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा।

शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।

कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला।

शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।

4. भैरव अवतार

शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। कथा है कि भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे।

तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखाई दी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो।

अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं।

भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया।

ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवायज़् बताई गई है।

5. अश्वत्थामा अवतार

महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे।

आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी।

समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया।

ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।  शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-7) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

द्रोणाचार्य ने कठिन तपस्या करके भगवान भोलेनाथ को अपने पुत्र के रूप में मांगा था, जिससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर उन्हें ये वरदान दिया था।

द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा महाभारत काल का एक शक्तिशाली, ताकतवर और पराक्रमी योद्धा था, जिसने महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ से पांडव के खिलाफ युद्ध किया था।

महाभारत युद्ध जब समाप्त हुआ तब अश्वत्थामा ने पांडवों के पांचों पुत्रों का नींद की अवस्था में वध कर दिया था।

उसके बाद सभी पांडव और भगवान श्री कृष्ण हताश होकर अश्वत्थामा के पास पहुंचे।

उसके बाद अर्जुन को देखकर अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर देता है लेकिन अर्जुन ने भी अश्वत्थामा के अस्त्र का उत्तर देने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया।

उसके बाद दोनों ब्रह्मास्त्र टकराने वाले ही थे कि ब्रह्मा जी प्रकट हो जाते हैं और दोनों को अपने अस्त्र वापस लेने को कहते हैं।

उसके बाद अर्जुन अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लेता है लेकिन अश्वत्थामा को अपना ब्रह्मास्त्र वापस लेना नहीं आता था।

उसके बाद अश्वत्थामा ने वह अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा पर चला दिया। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की।

उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को इस अपराध के लिए श्राप देते हैं कि वह सृष्टि के अंत तक इस धरती पर युगों युगों तक अकेला भटकता रहेगा।

कहा जाता है कि आज भी अश्वत्थामा इस धरती पर भटक रहा है और वह इस धरती के अंत तक हमेशा जीवित रहेगा।

बता दे अश्वत्थामा भगवान शिव का अवतार था लेकिन ना तो उसे सम्मान मिला और ना ही उसकी पूजा की जाती है।

6. शरभावतार अवतार

भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था।

कथा के अनुसार-  हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता, शिवजी के पास पहुंचे।

तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई तो शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर आकाश में ले उड़े।

तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई।

7. गृहपति अवतार

भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है- नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था।

वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की।

पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की।

एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया।

मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया और पुत्ररूप में प्रकट हुए।

कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

8. ऋषि दुर्वासा अवतार

भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया।

उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे ।

उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।

9. हनुमान अवतार

भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप रखा था। सप्त ऋषियों के संकल्प से ही वे माता अंजनी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

उन्हें हनुमान नाम दिया गया। अपने प्रभु श्रीराम के अवतार के दौरान उनकी सेवा और सहायता करने के उद्देश्य से ही भगवान शिव ने माता अंजनी के गर्भ से यह अवतार लिया था।

10. वृषभ अवतार 

भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था ।ग्रंथों में कथा मिलती है कि जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें देखकर कई स्त्रियां मोहिल हो गईं।

इन स्त्रियों से उत्पन्न विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।

11. यतिनाथ अवतार

भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था।

उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी,जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।

ग्रंथों के अनुसार अर्बुदांचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दम्पत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए।

आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया। प्रात: आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है।

इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।

12. कृष्ण दर्शन अवतार

 भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है।

इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ।

एक बार नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए।

उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा।

नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा- वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की और वह अवशिष्ट भगवान शिव को दे दिया।

13. अवधूत अवतार

भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र, शंकर जी के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर गए।

इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा।

इस पर कुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।

14. भिक्षुवर्य अवतार

भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं।

भगवान शंकर का भिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।भगवान शंकर संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं।

भगवान शंकर का भिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है। विदर्भ नरेश सत्यरथ की हत्या व उनकी गर्भवती पत्नी की मौत के बाद भगवान शिव ने भिक्षुक का रूप धारण करके उनके बालक की रक्षा की।

यही बालक बाद में चक्रवर्ती सम्राट बना।

15. सुरेश्वर अवतार

भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेम भावना को प्रदर्शित करता है।

इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया।

सुरेश्वर अवतार में शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर प्रदान किया।

16. किरात अवतार

किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी।

महाभारत के अनुसार वनवास के दौरान अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर( सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा।

अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया।

शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध अर्जुन के बाण से हुआ है, इस पर दोनों में विवाद हो गया।

अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।

17. सुनटनर्तक अवतार

पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था।

हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए।

जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए।

कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।

18. ब्रह्मचारी अवतार

दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे।

पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व अघोरी भी कहा।

यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध आया ।पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।

19. यक्ष अवतार

यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया।

इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं।

देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने, जलाने, डुबोने या उड़ाने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को हिला भी नहीं पाए।

तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष, अहंकारों के विनाशक शंकर भगवान हैं। सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।