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विषाद से प्रसाद की यात्रा

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मन.मस्तिष्क से परेशान रहने के अनेक कारण हो सकते हैं।

सेल्स और टिशूज का मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है।

समाजए परिवारए पड़ोसीए सरकारए मीडियाए राजनीतिए अर्थविज्ञान इन सबका मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है।

यहां तक कि अपने शरीर का एक भाग दूसरे भाग से लड़ रहा होता है। इन सबसे दुःख का जन्म होता है और इन दुखों से निवारण का उत्तर गीता में मिलता है।

विषाद सबके जीवन में है। द्वन्द्व मानव जीवन का अभिन्न अंग है। यथार्थ में द्वन्द्व से ही समाधान भी उपजता है। या यूं कहें कि प्रत्येक द्वन्द्व का समाधान है। वास्तव में मानव जीवन के सभी द्वन्द्वों का समाधान गीता में है।

गीता संवादन है भगवान और अर्जुन के बीच अर्जुन अवसाद में हैए निराश हैए जीवन से हार चुका हैए युद्ध करने आया थाए रिश्तेदार व गुरू को देख तो चिन्ता में पड़ गया कि ये तो सब अपने हैं।

यदि इन्हे मारकर राजपाठ पाना हैए तो इससे अच्छा है भीख मांग लेनाए अर्थात् जो कुछ वह सोचकर युद्ध के मैदान में आया थाए वहां पहुंच कर स्थितियां उसके विपरीत थीं।

सच यही है कि जब जीवन में स्थितियां विपरीत होती हैंए तो निराशाए भयए संशय आदि मनुष्य को घेर लेते हैंए तब गीता की आवश्यकता होती हैए तब ऐसे व्यक्ति को कोई कृष्ण चाहिये|

वह कृष्ण एक गुरू के रूप में होए मित्र हो या सखा हो। वैसे सच्चे मित्र तो सद्गुरू ही हैंए जो कृष्ण बनकर गीता का उपदेश देते हैं और द्वन्द्व या समस्या का समाधान मिल जाता है।

वास्तव में हम भी अर्जुन ही तो हैं। हम सबके जीवन में अनेक समस्याएंए उलझनेंए निराशाएंए द्वन्द्व, असफलताएं निरन्तर आती हैं, उनसे उबरने काए मुक्त होने का श्रेष्ठतम तरीका है गीता की शरण जाना।

गीता में 18 अध्याय हैंए जिनमें 700 श्लोक सिमटे हुए हैंए जो यथार्थ में आशाए विश्वासए धैर्यए निष्ठाए जपए तपए यज्ञए साहस के अमृतबिन्दु है।

गीता में योग शब्द का बहुत बार प्रयोग हुआ हैं। विषाद योग से प्रारंभ होकरए सांख्ययोगए कर्मयोग और ज्ञानयोग वे विशाल कीर्तिस्तम्भ हैं, जो मानव के मार्ग को सर्वदा प्रकाशित करते हैं।

जीवन में ज्ञान बहुत जरूरी हैए किसी कमरे मेें कितना ही अन्धेरा होए जैसे एक दीपक जलाने से प्रकाश हो जाता हैए उसी तरह मनुष्य के अन्दर ज्ञान की ज्योति प्रकट जाये तो अज्ञान रूपी अंधेरे का लोप हो जाता है।

गीता में बताया गया है ष्ष्समत्वं योग उच्यतेष्ष् अर्थात् समताए समरसता ही योग है। सद्गुरूदेव फरमाते हैं योग का अर्थ है मिलनाए किससे मिलनाए तो जिससे हम बिछड़ गए हैं अर्थात् परमात्मा से मिलना ही योग है।

योग अर्जुन को उस मनःस्थिति से मुक्त करता हैए जिसने उसे निराशा अकत्र्तव्य और अवसाद में डाला है। योग उस भयावह स्थिति से मुक्ति का मार्ग है। यह हम सब के साथ रोजाना होता है।

हजारों परिस्थितियां जीवन में आती हें, जब हम निराश हो जाते हैं। विद्यार्थी के लिये पेपर ठीक न होनाए शिक्षित को नौकरी न मिलनाए किसी ने दुर्व्यवहार कर दिया, गाली दे दीए बुरा भला कह दियाए विवाह के लिये इच्छुक को वांछित साथी न मिलनाए गाड़ी का छूट जानाए समय पर वेतन न मिलनाए दुकानदार के लिये ग्राहक का न आनाए फैक्टरी में हड़ताल हो जानाए अचानक बीमारी आ जाना आदि-आदि अनेकों स्थितियां हैं।

इन स्थितियों में मस्तिष्क को शांत रखनाए मस्तिष्क को धैर्य से बांधना यही संदेश गीता देती है। मनुष्य की जीवनशैली कैसी हो,यह भी गीता में बताया गया है।


मन-मस्तिष्क से परेशान रहेने के अनेक कारण हो सकते है। सेल्स और टिशूज का मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है।

समाजए परिवारए पड़ोसीए सरकारए मीडियाए राजनीतिए अर्थविज्ञान इन सबका मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि अपने शरीर का एक भाग दूसरे भाग से लड़ रहा होता है।

इन सबसे दुख का जन्म होता है और इन दुखों से निवारण का उत्तर गीता में मिलता है।

गीता का वास्तविक अर्थ है जीवन में भोलापन-सरलताए पवित्रताए विनम्रताए समर्पणए विश्वासए भक्तिए नियमए अनुशासनए जीवन्तता।

तभी तो गुरूदेव जी फरमाते हैं गीता एक गीत हैए संगीत हैए दुःख में मीत है, जीवन को गीता के अनुसार ढाल लोए स्वयं को स्वयं ही जान लोए भोलेपन में परमात्मा का वास है, तो जीवन में आनन्द आयेगा।

आनन्द ही तो जीवन का उद्देश्य है गीता के ज्ञान को जीवन में उतारने से ही इस उद्देश्य की प्राप्ति होगी और विषाद से प्रसाद की ओर जीवन यात्रा सफल हो सकती हैै।


डाॅ नरेन्द्र मदान