Home Uncategorized तुलसी: धार्मिक महत्व पौराणिक मान्यताएं विवाह पूजन विधि

तुलसी: धार्मिक महत्व पौराणिक मान्यताएं विवाह पूजन विधि

129
0

सनातन धर्म में तुलसी को विशेष महत्व दिया गया है। हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक धर्म माना गया हैं,और इसको वैज्ञानिक बनानें में इस धर्म के प्रतीकों जैसें तुलसी ,पीपल का विशिष्ठ स्थान हैं।

तुलसी के बिना हिन्दू धर्मावलम्बीयों का आँगन सुना माना जाता हैं.बल्कि यहाँ तक कहा जाता हैं,कि जहाँ तुलसी का वास नहीं होता वहाँ देवता भी निवास नहीं करतें हैं।

तुलसी को संस्कृत में हरिप्रिया कहा गया है अर्थात जो हरि यानी भगवान विष्णु को प्रिय है।

बिना तुलसी के चढ़ाया हुआ प्रसाद भी ईश्वर ग्रहण नहीं करतें हैं। इसलिए हिंदू धर्म के लोग तुलसी को माता का रूप मानकर उसकी पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं।

तुलसी का पौधा हिंदुओं द्वारा पूजनीय है  तुलसी नाम का अर्थ अतुलनीय है। कहा जाता है कि प्रत्येक हिन्दू के घर में तुलसी का पौधा अवश्य होना चाहिए।

इस पौधे को जीवित रहने के लिए थोड़ी धूप और पानी की जरूरत होती है। इसके कई प्रकार हैं जैसे राम तुलसी, कृष्ण तुलसी और विष्णु तुलसी।

हिंदू संस्कृति में यह माना जाता है कि तुलसी या तुलसी के पत्तों से बनी माला से पूजा करने पर भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस पौधे को घर में रखना सौभाग्य और समृद्धि को आमंत्रित कर सकता है।

मान्यता है कि तुलसी में मां लक्ष्मी को निवास होता है। कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। वहीं धार्मिक दृष्टि से नियमित रूप से तुलसी की पौधे की पूजा करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ऐसा माना जाता है कि जहां तुलसी फलती फूलती है, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते।

स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में तुलसी के अनेक गुण के बारे में बताया गया हैं। यह बात कम लोग जानते हैं कि तुलसी परिवार में आने वाले संकट के बारे में सुखकर पहले संकेत दे देती हैं।

शास्त्रों में यह बात भली प्रकार से उल्लेख है कि अगर घर पर कोई संकट आने वाला है तो सबसे पहले उस घर से लक्ष्मी यानि तुलसी चली जाती है और वहां दरिद्रता का वास होने लगता है।

तुलसी केवल एक पौधा ही नहीं है बल्कि धरा के लिए वरदान है। जिसके कारण इसे हिंदू धर्म में पूजनीय और औषधि तुल्य माना जाता है।

तुलसी पूजन करने से न केवल चमत्कारिक लाभ मिलेगा बल्कि साथ ही लोगों को तुलसी से होने वाले लाभ का ज्ञान भी प्राप्त होता है।

आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है क्योंकि ये औषधि भी है और इसका नियमित उपयोग आपको उत्साहित, खुश और शांत रखता है। भगवान विष्णु की कोई भी पूजा बिना तुलसी के पूर्ण नहीं मानी जाती।

तुलसी के विषय में कहा गया है

तुलसी वृक्ष ना जानिये। गाय ना जानिये ढोर।।
गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।।

अर्थात–

तुलसी को कभी पेड़ ना समझें,गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं।

तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है, मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है ! यह केवल शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

एक ओर जहाँ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथों, पद्म पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि पुराणों तथा उपनिषदों एवं वेदों में भी तुलसी का महत्व एवं उपयोगिता बतायी गयी है, वहीं दूसरी ओर युनानी, होमियोपैथी एवं एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में भी तुलसी एक महत्त्वपूर्ण औषधि मानी गयी है तथा इसकी खूब-खूब सराहना की गयी है।

विज्ञान ने विभिन्न शोधों के आधार पर माना है कि तुलसी एक बेहतरीन रोगाणुरोधी, तनावरोधी, दर्द-निवारक, मधुमेहरोधी, ज्वरनाशक, कैंसरनाशक, चिंता-निवारक, अवसादरोधी, विकिरण-रक्षक है। तुलसी इतने सारे गुणों से भरपूर है कि इसकी महिमा अवर्णनीय है। पद्म पुराण में भगवान शिव कहते हैं ।

“तुलसी के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो बहुत अधिक समय लगाने पर भी नहीं हो सकता।” अपने घर में, आस पड़ोस में अधिक-से-अधिक संख्या में तुलसी के पौधे लगाना-लगवाना माना हजारों-लाखों रूपयों का स्वास्थ्य खर्च बचाना है, पर्यावरण-रक्षा करना है।

हमारी संस्कृति में हर घर आँगन में तुलसी लगाने की परम्परा थी। संत विनोबाभावे की माँ बचपन में उन्हें तुलसी को जल देने के बाद ही भोजन देती थीं।

पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण जो लोग तुलसी की महिमा को भूल गये, अपनी सस्कृति के पूजनीय वृक्षों, परम्पराओं को भूलते गये और पाश्चात्य परम्पराओं व तौर तरीकों को अपनाते गये, वे लोग चिंता, तनाव, अशांति एवं विभिन्न शारीरिक-मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो गये।

तुलसी, पीपल, आँवला, नीम – इन लाभकारी वृक्षों के रोपण का अभियान चलाया जाय। प्रतिदिन तुलसी को जल देकर उसकी परिक्रमा करें, तुलसी पत्रों का सेवन करें।

पवित्र पौधा

तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यानी रोजाना तुलसी का पूजन करना मोक्षदायक माना गया है।

यही नहीं तुलसी पत्र से पूजा करने से भी यज्ञ, जप, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है।

पद्म पुराण में कहा गया है की नर्मदा दर्शन गंगा स्नान और तुलसी पत्र का संस्पर्श ये तीनो समान पुण्य कारक है तुलसी हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र पौधा है क्योंकि इसे देवी लक्ष्मी का सांसारिक रूप माना जाता है।

कुछ पौराणिक कथा के अनुसार, यह कहा गया था कि तुलसी वास्तव में कृष्ण की एक उत्साही प्रेमिका है जिसे राधा ने एक पौधा होने का श्राप दिया था।

हिंदुओं का मानना ​​है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वह तीर्थ होता है और मृत्यु कभी प्रवेश नहीं कर सकती। तुलसी का मुरझाना भी इस बात की ओर इशारा करता है कि घर में कुछ बुरा होने वाला है।

भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है तुलसी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और तुलसी में लक्ष्मी का वास होता है।

जिनके घरों में तुलसी का पौधा होता है उनके उपर भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि भी बनी रहती है।

तुलसी से घरों में सुख और समृद्धि आती है। वह हर दिन इसकी पूजा करते हैं। सुबह जल चढ़ाते हैं और शाम को दीपक जलाते हैं।

कई लोग तुलसी की पूजा और तुलसी विवाह भी संपन्न कराते हैं।

गुरुवार को लगाए तुलसी का पौधा

माना जाता है कि तुलसी के पौधे को घर में कार्तिक मास (अक्तूबर और नवंबर) में लगाना चाहिए।

साथ ही गुरुवार के दिन तुलसी के पौधे को लगाने की मान्यता है। कहते हैं गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन विष्णु भगवान की पूजा आराधना होती है।

मान्यताओं में तुलसी माता को विष्णु भगवान की प्रिय माना गया है, इसलिए यह दिन तुलसी का पौधा लगाने के लिए शुभ माना जाता है।

भगवान कृष्ण का स्वरूप माना जाता है तुलसी का पौधा

तुलसी का पौधा बुध का प्रतिनिधित्व करता है, जो भगवान कृष्ण का एक स्वरूप माना गया है।

ऐसे में तुलसी के पौधे को लगाने और उसकी पूजा करने के भी कई नियम हैं।

जो लोग मांस का सेवन करते हैं उन्हें अपने घर में तुलसी का पौधा नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि हिन्दू धर्म में इस तुलसी को परम वैष्णव माना गया है।

वहीं भगवान विष्णु की पूजन पद्धति में तामसिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

तुलसी के प्रकार

पृथ्वी पर पांच तरह की तुलसी पाई जाती है। जिसमें राम तुलसी, श्याम तुलसी, श्वेत विष्णु तुलसी, वन तुलसी, नींबू तुलसी शामिल है। लेकिन घरों में मुख्य रूप से राम तुलसी या श्याम तुलसी ही रखी जाती है।

तुलसी के रंग के आधार पर, दो मुख्य प्रकार हैं, सफेद -राम तुलसी और काले पत्तों वाली तुलसी को श्यामा तुलसी कहा जाता है।

वास्तु के अनुसार, रामा और श्यामा दोनों की तुलसी का अपना-अपना महत्व है। आप इन दोनों में से किसी एक को ही घर में रखें।

रामा तुलसी– हरी पत्तियों वाली तुलसी को रामा तुलसी कहा जाता है। इसे श्री तुलसी, भाग्यशाली तुलसी या उज्ज्वल तुलसी भी कहा जाता है।

इस तुलसी की खासियत ये हैं कि इसकी पत्तियों को खाने से अन्य तुलसी की तुलना में मीठा होगा।

इस तुलसी का इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ ही इसे घर में लगाने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

श्यामा तुलसी– गहरे हरे या बैंगनी रंग के पत्तियों और बैंगनी तने वाली तुलसी को श्यामा तुलसी कहा जाता है।

इसे गहरी तुलसी या कृष्ण-तुलसी के नाम से भी जाना जाता है।

क्योंकि ये तुलसी भगवान कृष्ण से समर्पित है। क्योंकि इसका बैंगनी रंग भगवान कृष्ण के गहरे रंग के समान है। यह तुलसी आयुर्वेद में अच्छा माना जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार, रामा तुलसी और श्यामा तुलसी के गुणों में काफी अंतर है।

सेहत के लिहाज से श्यामा तुलसी को ज्यादा बेहतर माना जाता है।

वहीं रामा तुलसी जोकि एकदम कंचन हरी दिखाई देती है का इस्तेमाल मसालेदार और कड़वी, गर्म, सौम्य, पाचन, पसीना और बच्चों की सर्दी-खांसी की बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

जबकि श्यामा तुलसी मसालेदार और कड़वी, मुलायम, चिकनी, पचने में हल्की, शोषक और वात-पित्त में लाभदायक होती है।

तुलसी कफ, वायरल इन्फेक्शन, पित्ताशय की थैली, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, हृदय, एनीमिक और कुष्ठ जैसे रोगों मरण भी फायदेमंद है।

वास्तुशास्त्र में तुलसी को बहुत महत्त्व दिया गया है। तुलसी का पौधा घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होते हैं। सभी धार्मिक ग्रंथों में तुलसी को पवित्र, पूजनीय, शुद्ध और देवी स्वरूप माना गया है। पूजनीय वृक्षों में तुलसी का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी का पूजन, दर्शन, सेवन व रोपण आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक, तीनों प्रकार के तापों का नाश कर सुख समृद्धि देने वाला है। भगवान शिव कहते हैं, तुलसी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है

वास्तु शास्त्र के मुताबिक घर में कहां लगाएं तुलसी का पौधा ?

धार्मिक मान्यता के साथ-साथ वास्तु शास्त्र में तुलसी की दशा और दिशा का बहुत ही महत्व है। लेकिन, तुलसी के पौधे को सही देखभाल की बेहद जरूरत होती है नहीं तो ये पौधा मुरझाने में ज्यादा वक्त नहीं लेता और मान्यतानुसार तुलसी माता के रुष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।

– तुलसी पौधे के लिए सबसे अच्छी जगह पूर्व में है, आप इसे बालकनी में या खिड़की के पास उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में भी रख सकते हैं।

– सुनिश्चित करें कि पौधे के पास पर्याप्त धूप उपलब्ध हो।

– पौधे को हमेशा विषम संख्या में रखें जैसे एक, तीन या पांच।

– पौधे के आसपास झाड़ू, जूते या कूड़ेदान जैसी चीजें न रखें।

– सुनिश्चित करें कि पौधे के आसपास की जगह साफ-सुथरी हो।

– फूल वाले पौधों को हमेशा तुलसी के पौधे के पास ही लगाएं।

– घर में सूखा तुलसी का पौधा रखने से बचें क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है

तुलसी से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

कहते हैं कि भगवान श्री राम ने गोमती तट पर और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने तुलसी लगायी थी।

अशोक वाटिका में सीता जी ने रामजी की प्राप्ति के लिए तुलसी जी का मानस पूजन ध्यान किया था।

हिमालय पर्वत पर पार्वती जी ने शंकर जी की प्राप्ति के लिए तुलसी का वृक्ष लगाया था।

एक मान्यता यह भी है कि लंकापति नरेश रावण के भाई विभीषण भी रोजाना तुलसी की पूजा करते थे। 

यही कारण था कि उनके महल में भी तुलसी का पौधा था।  जब लंका दहन के समय हनुमान जी ने ये पौधा विभीषण के महल में देखा तो उन्होंने सिर्फ इस एक जगह को छोड़कर पूरी लंका में आग लगा दी थी।

तुलसी पूजा से मिलते हैं अनेक लाभ

हिंदू धर्म में तुलसी अत्यंत पवित्र पौधों में से एक हैं। इसनकी प्रतिदिन पूजा अनिवार्य है, तुलसी पूजन करने और रोज तुलसी के दर्शन करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

मान्यता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा हो वहां त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश विराजते हैं। 

घर में होने वाली हर पूजा में तुलसी का पत्ता जरूर शामिल करना चाहिए अन्यथा इससे देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता, और ना ही देवता भोग ग्रहण करते हैं।

रविवार और एकादशी के दिन तुलसी में जल क्यों नहीं देते हैं

नियमित रूप से तुलसी जी को जल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है लेकिन शास्त्रों के मुताबिक रविवार के दिन तुलसी को जल नहीं चढ़ाना चाहिए।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रविवार के दिन तुलसी माता भगवान विष्णु जी के लिए निर्जला व्रत रखती हैं रविवार के दिन उन्हें जल चढ़ाने से उनका व्रत खंडित हो जाता है इसलिए इस दिन तुलसी को जल नहीं अर्पित करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रविवार के दिन तुलसी के पौधे में जल चढ़ाने से नकारात्मक शक्तियों का वास होता है।

शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन ना तो तुलसी के पत्ते तोड़ने चाहिए और ना ही इस दिन तुलसी में जल चढ़ाना चाहिए।

देवउठानी एकादशी के दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ कराने की परंपरा है।

माना जाता है कि माता तुलसी हर एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के लिए निर्जल व्रत करती हैं। इसलिए एकादशी के दिन भी तुलसी में जल अर्पित करनी की मनाही होती है।

हिंदू धर्म में क्यों होती है तुलसी की पूजा

पुराणों में तुलसी को पवित्र पौधा बताया गया है और इसकी पूजा हम भगवान विष्णु से जुड़े होने की वजह से करते हैं मान्यता है कि जब हम भगवान विष्णु को कुछ भी भोग अर्पित करते हैं तब तुलसी की पत्तियां जरूर उस भोग में शामिल करनी चाहिए अन्यथा उन्हें भोग स्वीकार्य नहीं होता है।

संस्कृत में तुलसी शब्द का अर्थ है ‘अतुलनीय’। इसके कई औषधीय उपयोग और स्वास्थ्य लाभ भी हैं। तुलसी की हिंदू धर्म में पूजा की कहानी बड़ी ही रोचक है।

कौन थीं तुलसी, क्यों दिया तुलसी ने विष्णु को पत्थर होने का शाप

पौराणिक काल में एक लड़की थी। नाम था वृंदा। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।

जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।

जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।

 सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

 भगवान ने जलंधर का रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में  से उठ गई और उनके चरण छू लिए।

जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

 उन्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई।

उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान का शाप विमोचन किया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।

 उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुंगा।

तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी को तुलसी शालिग्राम विवाह के रूप में मनाया जाता है

जब पौधों की पूजा की बात करते हैं तब सबसे ज्यादा प्रमुख है तुलसी की पूजा। तुलसी को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है और कई ऐसी पूजन हैं जो इसकी पत्तियों के बिना अधूरे माने जाते हैं।

बाद में, तुलसी ने एक दिव्य स्थिति प्राप्त की और भगवान विष्णु की सबसे प्रिय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसलिए भगवान विष्णु की हमेशा तुलसी के पत्तों से पूजा की जाती है। हमेशा तुलसी की माला भगवान के गले में विराजमान रहती है।

कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है।

यही वजह है कि तब से सभी लोग तुलसी जी की पूजा करने लगे बता दें कि कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है।

और एकादशी वाले दिन इसे तुलसी विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है. चरणामृत के साथ तुलसी को मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

तुलसी के पौधे को काफी पवित्र माना जाता है। सभी हिंदू आपने घर के आंगन और दरवाजे में तुलसी का पौधा लगाते है। यही मुख्य कारण है कि हम उन्हें माँ तुलसी कहते है।

कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व

तुलसीजी लक्ष्मीजी (श्रीदेवी) के समान भगवान नारायण की प्रिया और नित्य सहचरी हैं; इसलिए परम पवित्र और सम्पूर्ण जगत के लिए पूजनीया हैं।

अत: वे विष्णुप्रिया, विष्णुवल्लभा, विष्णुकान्ता तथा केशवप्रिया आदि नामों से जानी जाती हैं। भगवान श्रीहरि की भक्ति और मुक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है।

वैसे तो नित्यप्रति ही तुलसी पूजन कल्याणमय है किन्तु कार्तिक में तुलसी पूजा की विशेष महिमा है।

कार्तिक पूर्णिमा को तुलसीजी का प्राकट्य हुआ था और सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि ने उनकी पूजा की थी।

अत: कार्तिक पूर्णिमा को भक्तिभाव से तुलसीजी की पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। तुलसी विष्णुप्रिया कहलाती है अत: तुलसीपत्र व मंजरियों से भगवान का पूजन करने से अनन्त लाभ मिलता है।

कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियां प्रतिदिन तुलसी के पौधे पर जल व रोली चढ़ाकर दीपक जलाती हैं और परिक्रमा करती हैं। तुलसी की स्तुति में ‘तुलसा’ गीत गाती हैं।

तुलसा महारानी नमो नमो,

हरि की पटरानी नमो नमो,

ऐसे का जप किए रानी तुलसा,

सालिग्राम बनी पटरानी बनी महारानी। तुलसा…

आठ माह नौ कातिक न्हायी,

सीतल जल जमुना के सेये

सालिग्राम बनी पटरानी बनी महारानी। तुलसा…

छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,

बिन तुलसा हरि एक न मानी,

सांवरी सखी मैया तेरो जस गावें,

कातिक वारी मैया तेरो जस गावें

इच्छा भर दीजो महारानी। तुलसा …

चन्द्र सखी भज बालकृष्ण छवि,

हरि चरणन लिपटानी। तुलसा …

तुलसा-पूजन व गाने से जन्म-जन्मान्तर के पाप दूर हो जाते हैं।

कुमारी कन्या को सुन्दर वर, स्त्री को संतान व वृद्धा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी तथा भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम का धूमधाम से विवाह रचाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि तुलसी को कार्तिक स्नान करने से श्रीकृष्ण (शालिग्राम) वर के रूप में प्राप्त हुए थे।

शास्त्रों से है तुलसी के पौधे का संबंध

तुलसी के पौधे को प्रत्यक्ष तौर से देवी मानकर मंदिरों और घरों में उसकी पूजा की जाती है। तुलसी को सर्व दोष निवारक, सर्व सुलभ तथा सर्वोपयोगी बताया गया है।

प्राचीन शास्त्रों में, तुलसी को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी की निचली शाखाओं में और इसके तने में अन्य सभी देवी-देवताओं और सभी हिंदू तीर्थों का वास होता है।

तुलसी के पौधे के हर एक हिस्से को पूजनीय बताया गया है और इसलिए शास्त्रों में इसकी पूजा का विधान बताया गया है। तुलसी हिंदू धर्म में सबसे पवित्र पौधा है। पौराणिक कथाओं और शास्त्रों में लिखी मान्यताओं की वजह से ही तुलसी को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र पौधे के रूप में पूजा जाने लगा और इसकी पवित्रता से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।

भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।

तुलसी का पौधा लगाने के धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की पूजा देवी के रूप में की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा बिना तुलसी पत्ते के अधूरी मानी जाती है।

इसके अलावा हनुमानजी की पूजा में भी तुलसी का पत्ता चढ़ाया जाता है। तुलसी की सेवा भाव करने से घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है।

धर्म में तुलसी का पौधा पवित्र, पूजनीय और लाभकारी माना गया है।

शास्त्रों के अलावा आर्युवेद में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

ज्यादातर लोगों के घर में तुलसी का पौधा लगा हुआ होता है। तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व रखता है।

मान्यता है कि तुलसी का पौधा लगाने से घर में सुख- समृद्धि आती है। इसका इस्तेमाल कई बीमारियों से छुटकारा दिलाने के लिए किया जाता है

 घर में तुलसी पौधा लगाने का धार्मिक महत्व

1. हिंदू धर्म में मान्यता है कि तुलसी के पत्तों को गंगाजल के साथ मृत व्यक्ति के मुंह में रखने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है।

2. तुलसी और गंगाजल को कभी बासी नहीं माना जाता है। इन दोनों चीजों का इस्तेमाल पूजा में किया जाता है। मान्यता है कि इन चीजों के बिना आपकी पूजा अधूरी मानी जाती है।

3. हर रोज तुलसी के पौधे में जल डालना और नियमित रूप से पूजा करने से आपके सभी पाप मिट जाते हैं। मान्यता है कि अगर तुलसी के पौधे की रोजाना पूजा होती है तो यमराज प्रवेश नहीं करते हैं और घर में सुख – समृद्धि रहती है।

4. तुलसी का पौधे को घर में रखने के कुछ नियम होते हैं। कभी भी अपवित्र हाथों, रविवार, चंद्रग्रहण, एकादशी के दिन तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. ऐसा करने से दोष लगता है। बिना जरूरत के पत्ता तोड़ने से माता तुलसी नाराज हो जाती है।

5. तुलसी का पौधा लगाते समय ध्यान दे कि सूखे नहीं। अगर आप बाहर जा रहे हैं तो ऐसी व्यवस्था करें कि तुलसी के पौधे को पानी मिलता रहें। रोजाना सुबह उठकर तुलसी की पूजा करनी चाहिए। इससे आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।

6.तुलसी के पौधे का महत्व सभी हिंदू ग्रंथों और शास्त्रों में बताया गया है। तुलसी के पौधे की कई गुण पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त, स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और गुरुड़ पुराण में बताई गई है।

पूजन विधि

धर्म में वृक्ष पूजा असामान्य नहीं है, तुलसी के पौधे को सभी पौधों में सबसे पवित्र माना जाता है।

तुलसी के पौधे को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक दहलीज बिंदु माना जाता है।

एक पारंपरिक प्रार्थना बताती है कि निर्माता-देवता ब्रह्मा इसकी शाखाओं में निवास करते हैं, सभी हिंदू तीर्थस्थल इसकी जड़ों में निवास करते हैं, गंगा इसकी जड़ों के भीतर बहती है, सभी देवता इसके तने और पत्तियों में हैं, और यह कि सबसे पवित्र हिंदू ग्रंथ, पवित्र तुलसी की शाखाओं के ऊपरी भाग में वेद पाए जाते हैं।

तुलसी जड़ी बूटी विशेष रूप से महिलाओं के बीच घरेलू धार्मिक भक्ति का केंद्र है और इसे “महिला देवता” और “पत्नीत्व और मातृत्व का प्रतीक” कहा जाता है, इसे “हिंदू धर्म का केंद्रीय सांप्रदायिक प्रतीक” भी कहा जाता है और वैष्णव इसे मानते हैं “पौधों के साम्राज्य में भगवान की अभिव्यक्त है।

सुबह अपने नैतिक कार्यों से निवृत होकर मां तुलसी की पूजा करनी चाहिए।

पहले कुमकुम से उनका टीका करना चाहिए और उसके बाद उनकी आरती करके जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाते वक्त आपको निम्नलिखित मंत्र पढ़ने चाहिए।

इसके बाद तुलसी की परिक्रमा करनी चाहिए, जोकि अपनी सुविधानुसार 7, 11, 21 या 111 परिक्रमा कर सकते हैं और उसके बाद मां तुलसी का ध्यान करना चाहिए।

भगवान को किसी भी वस्तु का भोग लगाने से पहले उसमें तुलसी के पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करना चाहिए। तुलसी पूजा सुबह ही नहीं आप कभी भी कर सकते हैं।

तुलसी के नाम

वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी

कहते हैं कि जो व्यक्ति तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

स्कंद पुराण के अनुसार जिस घर में तुलसी का बगीचा होता है अथवा प्रतिदिन पूजन होता है, घर में यमदूत प्रवेश नहीं करते। तुलसी की उपस्थिति मात्र से नकारात्मक शक्तियों एवं दुष्ट विचारों से रक्षा होती है।

गरुड पुराण के अनुसार तुलसी का वृक्ष लगाने, पालन करने, सींचने तथा ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्व जन्मार्जित पाप जलकर नष्ट हो जाते हैं।

आयुर्वेद में तुलसी का महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार आयुर्वेद में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है।

यह न केवल धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण पौधा है, बल्कि यह सेहत के लिए भी लाभकारी है।

जिस घर में इस पौधे की स्थापना की जाती है, उस घर में आध्यात्मिक उन्नति के साथ ही सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह घर को मौसमी बीमारियों, और प्रदूषण से बचाकर रखता है।

1. आयुर्वेद के अनुसार, तुलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के विचार में पवित्रता , मन में एकाग्रता और क्रोध पर नियंत्रण होने लगता है। साथ ही आलस्य भी दूर हो जाता है।

2.शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है।

3. इसके बारे में यहां तक कहा गया है की औषधीय गुणों की दृष्टि से यह संजीवनी बूटी के समान है।

4.तुलसी को संस्कृत में हरिप्रिया कहा गया है अर्थात जो हरि यानी भगवान विष्णु को प्रिय है।

5.कहते हैं, औषधि के रूप में तुलसी की उत्पत्ति से भगवान विष्णु का संताप दूर हुआ था। इसलिए तुलसी को यह नाम दिया गया है।

6.धार्मिक मान्यता है कि तुलसी की पूजा-आराधना से व्यक्ति स्वस्थ और सुखी रहता है।

7.पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों और दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी।

8.यही कारण है कि इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण हैं।

9.हिन्दू धर्म में मान्यता है कि तुलसी के पौधे की ‘जड़’ में सभी तीर्थ, ‘मध्य भाग (तना)’ में सभी देवी-देवता और ‘ऊपरी शाखाओं’ में सभी वेद यानी चारों वेद स्थित हैं।

10.इसलिए इस मान्यता के अनुसार, तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है और इसके पूजन को मोक्षदायक कहा गया है।

इनके अलावा भी तुलसी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है मनुष्य के रोज़ मर्रा जीवन मे यह सिर्फ एक पौधा नही है अपितु इसके अलावा यह जीवन देने वाली बुटि है।

 भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।

तुलसी के विशेष मंत्र

तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है।

तुलसी के पत्ते तोड़ते समय बोलने के मंत्र

– ॐ सुभद्राय नमः

– ॐ सुप्रभाय नमः

– मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी

नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते

तुलसी को जल देने का मंत्र

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी

आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

तुलसी स्तुति का मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी पूजन के बाद बोलने का तुलसी मंत्र

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।

तुलसी नामाष्टक मंत्र :

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी के प्रतिदिन पूजन करने से घर में धन-संपदा, वैभव, सुख समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।

तुलसी पूजा के 10 चमत्कारिक लाभ ,साथ ही वो मंत्र जो करता है जिसका जप करता है हर मनोकामना पूरी

तुलसी में कई औषधीय गुण होते हैं। आप जिस तरीके से इसका सेवन करेंगे आपको ये उस तरह लाभ पहुंचाएगी. तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट और इम्यूनिटी बढ़ाने की विशेष क्षमता होती है.

तुलसी के अन्य चमत्कारिक गुण

हिंदू धर्म तुलसी को विशेष महत्व दिया गया है। तुलसी को हरिवल्लभा भी कहते हैं क्योंकि ये विष्णु जी का बहुत ही प्रिय है।

कहते हैं कि जिस घर में तुलसी की नियमानुसार पूजा की जाती है और उन्हें जल अर्पित किया जाता है वहां कभी दरिद्रता नहीं आती।

मां लक्ष्मी की उस घर में हमेशा कृपा बनी रहती है. इसके अलावा तुलसी विवाह पर विशेष रूप से पूजा करने से व्यक्ति की विवाह संबंधी बाधा खत्म हो जाती है।

तुलसी एक नेचुरल एयर प्यूरिफायर भी है, जो वायु प्रदुषण को कम करता है और ऑक्सीजन को बनाए रखने में मदद करता है। इससे मक्खी, मच्छर और कीड़े भागते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट भी है और इम्‍यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ वायरल इंफेक्‍शन से भी बचाती है.

 तुलसी के चमत्कारिक लाभ

1. तुलसी का रोज सेवन करने से व्यक्ति का शरीर चंद्रायण व्रतों के फल के समान पवित्रता प्राप्त कर लेता है.

2. घर में तुलसी का पौधा लगाने से घर में पवित्रता और शुद्धता आती है और नकारात्मक उर्जा दूर भागती है.

3. तुलसी पूजा का मंत्र ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ का जप करने से सुख-समृद्धि के योग बनते हैं और सारी मनोकामना पूरी होती है.

4. तुलसी के पत्ते डालकर स्नान करने से किसी तीर्थ पर स्नान करने जैसा फल प्राप्त होता है। वह सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है।

5. अगर घर में कलाह और अशांति रहती है तो तुलसी को अपने आंगन में जरूर लगाए और नियमित जल दें।

6. मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए तुलसी पूजा करें।

7. दही के साथ चीनी और तुलसी के पत्तों का सेवन करना शुभ माना जाता है।

8. इसके अलावा तुलसी का सेवन करने वाले पर देवी-देवताओं की भी कृपा रहती है।

9. दही के साथ तुलसी का सेवन करने से कई सारे आयुर्वेदिक लाभ होते हैं. इससे तनाव दूर होता है और शरीर उर्जावान महसूस करता है।

10. तुलसी से वास्तु दोष दूर होता है।

धार्मिक परंपराएं

तुलसी विशेष रूप से विष्णु और उनके रूपों कृष्ण और विठोबा और अन्य संबंधित वैष्णव देवताओं की पूजा में पवित्र है।

10000 तुलसी के पत्तों से बनी माला, तुलसी मिश्रित जल, तुलसी से छिड़का हुआ खाद्य पदार्थ विष्णु या कृष्ण की पूजा में चढ़ाया जाता है।

वैष्णव पारंपरिक रूप से तुलसी के तनों या तुलसी माला नामक जड़ों से बने जाप माला का उपयोग करते हैं , जो दीक्षा का एक महत्वपूर्ण प्रतीक हैं।

तुलसी माला पहनने वाले के लिए शुभ मानी जाती है, और माना जाता है कि यह उसे विष्णु या कृष्ण से जोड़ती है और देवता की सुरक्षा प्रदान करती है।

उन्हें हार या माला के रूप में पहना जाता है या हाथ में धारण किया जाता है और माला के रूप में उपयोग किया जाता है।

वैष्णवों के साथ तुलसी का महान संबंध इस तथ्य से संप्रेषित होता है कि वैष्णवों को “जो गले में तुलसी धारण करते हैं” के रूप में जाना जाता है।

कुछ तीर्थयात्री द्वारका की यात्रा के दौरान अपने हाथों में तुलसी के पौधे लेकर चलते हैं, कृष्णा की पौराणिक राजधानी और सात सबसे पवित्र हिंदू शहरों में से एक। 

अलग-अलग संप्रदाय तुलसी के उपयोग को विष्णु से संबंधित देवताओं के लिए प्रार्थना में मानते हैं और अलग-अलग अवतार हैं।

महत्त्व

श्रीमद्भागवतम में , अन्य पौधों पर तुलसी के महत्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

यद्यपि मंदार, कुण्ड, कुरबाक, उत्पल, चम्पक, अर्ण, पुन्नाग, नागकेशर, बकुल, कुमुदिनी और पारिजात जैसे फूलों के पौधे दिव्य सुगंध से भरे हुए हैं, फिर भी वे तुलसी द्वारा की जाने वाली तपस्या के प्रति सचेत हैं, क्योंकि तुलसी को तुलसी द्वारा विशेष वरीयता दी जाती है। भगवान, जो खुद को तुलसी के पत्तों की माला पहनाते हैं।

तुलसी के पौधे का हर भाग पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहाँ तक कि पौधे के चारों ओर की मिट्टी भी पवित्र होती है।

पद्म पुराण एक व्यक्ति की घोषणा करता है जिसे उसके अंतिम संस्कार में तुलसी की टहनियों के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है और विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ में मोक्ष प्राप्त करता है ।

यदि विष्णु के लिए एक दीपक जलाने के लिए तुलसी की छड़ी का उपयोग किया जाता है, तो यह देवताओं को लाखों दीपक अर्पित करने जैसा है।

यदि कोई सूखी तुलसी की लकड़ी (एक पौधे से जो स्वाभाविक रूप से मर गया) का लेप बनाता है और इसे अपने शरीर पर लेप करता है और विष्णु की पूजा करता है, तो यह कई साधारण पूजा और लाखों गौदानम (गायों का दान) के लायक है।

तुलसी के पत्तों के साथ मिश्रित जल मरने वालों को उनकी दिवंगत आत्माओं को स्वर्ग में उठाने के लिए दिया जाता है।

जिस प्रकार तुलसी सम्मान फलदायक होता है, उसी प्रकार उसका तिरस्कार विष्णु के क्रोध को आकर्षित करता है। इससे बचने के लिए सावधानियां बरती जाती हैं।

संयंत्र के पास पेशाब करना, मलत्याग करना या अपशिष्ट जल फेंकना वर्जित है। पौधे की शाखाओं को उखाड़ना और काटना प्रतिबंधित है।जब पौधा मुरझा जाता है, तो सूखे पौधे को उचित धार्मिक संस्कारों के साथ जल निकाय में विसर्जित कर दिया जाता है, जैसा कि टूटी हुई दिव्य छवियों के लिए प्रथा है, जो पूजा के लिए अयोग्य हैं।

हालांकि हिंदू पूजा के लिए तुलसी के पत्ते आवश्यक हैं, इसके लिए सख्त नियम हैं। कृत्य से पहले तुलसी को क्षमा की प्रार्थना भी की जा सकती है।

शास्त्रों के अनुसार किस दिन ‘तुलसी’ के पत्तें नहीं तोड़ना चाहिए?

तुलसी जी को जब भी तोड़े तोडने से पहले वंदन करे..उनसे आज्ञा ले

उन्हें तोड़ने से पहले कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए

1. तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,नाखूनों के तोडने से पाप लगता है।

2.सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए ।

3. रविवार को तुलसी पत्र नहीं तोड़ने चाहिए ।

4. जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है ,ऐसी मान्यता है।

5. द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए ।

6. सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है। इसीलिए सांय काल भी तुलसी जी नहीं तोड़नी चाहिए।

7. तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का अवतार है ।

8. तुलसी के पत्तो को चबाना नहीं चाहिए

पूजा का महत्व

तुमसे के पौधे  का धार्मिक महत्व होता है, और हिंदू परिवार की महिलाएं इसका महत्व समझती हैं।

तुलसी का पौधा  घर के बीच में बनी वेदी पर लगाया जाता है जिसे तुलसी चौरा कहा जाता है।

यह भारतीय संस्कृति में इस पौधे की सबसे अधिक पूजा होती है। तुलसी के पौधे को बहुत अधिक देखभाल की जरुरत होती है।

पूजा में, तुलसी के पत्ते पंचामृत में इस्तेमाल होते हैं। यह पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली एकमात्र पवित्र पौधा है। तुलसी के पौधे को साफ करके दूसरी पूजा के लिए फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।

भगवान का प्रसाद

तुलसी की पत्तियों का इस्तेमाल माला बनाने के लिए भी किया जाता है। अलंकरण समारोह के दौरान इसके पत्ते को भगवान को चढ़ाते हैं।

बहुत से लोगों का मानना है कि तुलसी के पत्ते के बिना भगवान विष्णु के सभी यज्ञ अधूरे होते हैं। यह तुलसी की माला भगवान के साथ जुड़ने के लिए खास मानी जाती है।

वैष्णव का मानना है कि तुलसी के पत्तों से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। सूखे पौधे के तनों का इस्तेमाल माला बनाने के लिए किया जाता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि वैष्णव तुलसी की माला पहनते हैं, खासकर जब विष्णु मंत्रों का जाप करते हैं। मला पहनकर वे भगवान विष्णु के साथ सामंजस्य बनाए रखते हैं।

तुलसी का पौराणिक महत्व और कृष्ण को चढ़ावा

विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान कृष्ण ने एक बार तुलाभारम कराया, जिसमें व्यक्ति को अनाज, सिक्के, सब्जियां, सोना, आदि से तौला जाता है। इसमें व्यक्ति को तराजु के एक ओर बैठाकर दूसरी ओर सोने के आभूषण रखें जाते हैं।

इस समारोह के दौरान, कृष्ण का वजन सभी गहनों से अधिक था इसलिए, जब और गहने नहीं बचे तो उनकी दूसरी रानी रुक्मिणी ने एक तुलसी का पत्ता तराजु के दूसरी तरफ रख दिया, जिससे वह झुक गया।

यह कहानी दर्शाती है कि भगवान कृष्ण भी तुलसी को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं। नतीजतन, कृष्ण ने तुलसी के पौधे को अधिक महत्वपूर्ण माना है।

तुलसी का पौधा सूखना या मुरझा जाए तो क्या होता है?

(तुलसी के पौधे) का वास्तु शास्त्र और आयुर्वेद में काफी महत्व है। इस शुभ पौधे की देखभाल बहुत संभालकर की जानी चाहिए।

हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है जब हर तरह के प्रयासों के बावजूद तुलसी का पौधा सूख या मुरझा जाता है तुलसी का पौधाके सूखने का वास्तु शास्त्र और आयुर्वेद में कुछ महत्व है।

तुलसी का पौधा जब सूख जाता है तो नष्ट हो जाता है और फिर से जीवित नहीं होता; यह कभी-कभी घर में दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का संकेत होता है। इसका मतलब परिवार में मृत्यु या गंभीर बीमारी हो सकता है।