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भीतर की प्रखरता, ओज बढ़ते रहना चाहिए

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किसी के जन्मदिन पर एक वेदवाक्य अक्सर पढ़ने को मिलता है-‘शतं जीव शरदो वर्धमानः‘।

इसमे सौ साल जीने की बात आती है। लेकिन, वेद में कहा है ये सौ साल निरंतर सेवा करते हुए जीने के लिए है।

इन सौ साल में केवल देह की आयु न बढ़े, बल्कि आत्मा की स्पष्टता भी बढ़े। शास्त्रों के अनुसार जैसे-जैसे आप सौ साल की ओर चलें, पहला काम होना चाहिए शरीर और स्वस्थ होता जाए।

दूसरा मन पवित्र होता रहे तथा तीसरा काम यह हो कि आत्मा की अनुभति और अधिक स्पष्ट होना चाहिए।

तब सौ साल काम हैं। इसी को वर्धमान कहा गया है।

समय के साथ बाहर का शरीर तो जीर्ण-शीर्ण होता जाएगा, देह वैसी नहीं रहेगी, लेकिन भीतर की प्रखरता, ओज बढ़ते रहना चाहिए।

वर्धमान का एक और अर्थ है- नित्य बढ़ने वाला ।

मतलब जिसका रोज-रोज विकास हो। लेकिन विकास होना चाहिए भीतर से। बाहर से तो क्षीण होना ही है।

कोई दावा नही कर सकता कि सौ साल मे उसकी देह वैसी ही रहेगी, जैसी युवा अवस्था में थी।

लेकिन भीतर से ऐसा उत्साह होना चाहिए जैसे अभी-अभी जन्मा, अभी-अभी यौवन अवस्था में थी लेकिन भीतर से ऐसा उत्साह होना चाहिए जैसे अभी-अभी यौवन प्राप्त हुआ हो।

इसलिए शास्त्रो में कहा गया है कि दीन होकर सौ साल मत जीना, सक्षम होकर जीना।

शास्त्रो में तो कही-कही आयु के लिए एक 116 साल लिखा है संभवत 16 का आंकड़ा इसलिए लिया गया हो कि सौ साल के बाद एक बार फिर युवा अवस्था को प्राप्त हो जाओ ।

यह वह अवस्था होगी जिसे भीतर की जागति कहेगे।

अंतरमन से पूछेंगे तो सही सलाह मिलेगा

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कोशिश की जाए, जीवन में कोई गलत काम न हो।

ऐसा कहते है कि छह स्थितियों में किए गए गलत काम की कीमत दुसरे को चुकानी पड़ती है।

चलिए, समझते हैं ये छह स्थितियां कौन सी है।

पहली स्थिति है प्रजा की। प्रजा यदि पापकर्म करे तो उसकी कीमत राजा चुकाएगा ।

पत्नी कोई गलत काम करे तो कीमत पति को चुकानी पड़ेगी।

पति के गलत काम का मोल पत्नी को चुकाना है, संतानों के अनुचित कृत्य माता – पिता पर उतरते हैं और माता-पिता के गलत आचरण का परिणाम संतान को भुगतना पड़ता है।

इसी प्रकार छठी स्थिति है भक्त की। भक्त जब कोई पापकर्म करे तो कीमत भगवान को चुकानी पड़ती है।

अब सोचिए , कही हमसे तो कोई गलत काम नही हो रहा है?

यह तय है कि यदि आपने कोई पापकर्म किया है तो खुद तो उसकी कीमत चुकाएंगे ही,दुसरो को भी परेशानी में डाल देगे।

इसलिए जब कभी कोई गलत काम करने जाएं, एक बार अपनी आत्मा को जरू स्पर्श कीजिए।

शरीर से सलाह लेने जाएंगे तो वह बुद्धि चूंकि भेद करती है, तर्क करती है तो हो सकता है विलंब हो या अनुचित सलाह मिल जाए।

थोड़ा आगे बढ़कर यदि मन को टटोले तो उसका तो पहला काम ही है गलत की ओर धकेलना।

लेकिन, जैसे ही आत्मा पर टिकेगे और आत्मा से पूछेंगे तो एकदम सही सलाह मिलेगी।

इसलिए कुछ भी गलत करने से पहले एक बार अपने अंतरतम मे जरूर उतरिएगा। वरना आपके गलत कामों की कीमत आपके अपने भी चुकाएंगे

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Shree Somnath Jyotirlingas)

पवित्र सोमनाथ मंदिर सनातन का शाश्वत तीर्थस्थान है। इसीलिए कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर, प्रतीक है पुनर्निर्माण की उस शक्ति का जो हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक पवित्र होती है।

इस संसार में हिंदू धर्म के अलावा शायद ही कोई अन्य देश या धर्म ऐसा होगा जिसकी संस्कृति ने पिछले 1500 सालों तक मात्र पतन ही झेला हो, और झेली हों अनेकों प्रकार की विपत्तियां।

तभी तो भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि-

‘‘पवित्र हिंदू धर्म और इसके पवित्र मंदिरों के विषय में गर्व से कहा जा सकता है कि यह धर्म और इसके मंदिर, प्रतीक है पुनर्निर्माण की उस शक्ति का जो हमेशा विनाश की शक्ति से अधिक पवित्र होती है।’’

पूरे भारत देश में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थित हैं।

इनमें सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में अरब सागर के तट स्थित है और यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि यह हर सृष्टि में यहां स्थित रहा है  सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है।

यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है।

इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है।

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में जयस्पष्ट है।

सोमनाथ मंदिर, अरब सागर के तट पर स्थित भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, वेरावल से 6 किमी दूर, शौरराष्ट्र, गुजरात में सदियों से वैदिक संस्कृति का केंद्र और प्रतीक है।

आर्य संस्कृति के प्राचीन काल से आसपास के क्षेत्र को प्रभास पाटन के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने यहां से वैकुंठ की यात्रा की, इस प्रकार प्रभाष पाटन भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ में बदल गया।

चंद्रमा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घातक तपस्या करता है।

भगवान शिव के आशीर्वाद से, इस क्षेत्र ने फिर से अपनी चमक प्राप्त की, इस प्रकार इसे “प्रभाष” कहा जाता है। स्कंद पुराण और महाभारत के अनुसार इस क्षेत्र का नाम नंदन, शिव, उग्रा, भदिरका, समिधान, कामध, वशवरूप, पद्मनाथ, मोक्षमार्ग, भास्कर तीर्थ, अर्कतीर्थ, सोमतीर्थ, हिरण्यसार आदि भी रखा गया था।

जैन शास्त्रों के अनुसार, इसे चंद्र प्रभा, चंद्र प्रभास, पट्टन आदि के नाम से जाना जाता था।

सौराष्ट्र सोमनाथं च श्रीशेले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् || परल्यां वैजनाथं च डोमेन्यां भीमाशंकरम्। सेतुबंधे तू रामेशं नागेशं दारुकावने || वरणस्यांतु विश्वेशं त्र्यम्बकण गौतमी तटे। हेमे तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालय ||

श्री सोमनाथ जी के लिए अभिषेक का जल गंगा नदी से और कमल के पुष्प हमेशा कश्मीर से ही आते थे।

मध्य युग के प्रारंभकाल में भी यह मंदिर अति भव्य था। उस मंदिर में 56 स्वर्ण स्तंभ थे, और संपूर्ण मंदिर में अनगिनत कीमती रत्न और हीरे जड़े हुए थे।

अलबेरुनी और मार्कोपालो ने श्री सोमनाथ मंदिर का जो वर्णन किया था उसके अनुसार यह मंदिर अति संमृद्ध था। इस मंदिर के रखरखाव के लिए दस हजार गांव थे।

मंदिर के गर्भगृह में हीरे जवाहरत की भरमार थी। मंदिर में अनेकों सोने की मूर्तियां थीं। एक हजार से भी अधिक पूजारी भगवान की पूजा में हमेशा रहते थे।

शिवपुराण और नंदी उपपुराण में शिव ने कहा है कि मैं सभी जगह विशेषकर ज्योतिर्लिंगों के बारह रूपों और स्थानों पर उपस्थित हूं. सोमनाथ इन पवित्र स्थानों में से एक है.

 पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है।

चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम ‘सोमनाथ’ हो गया।

श्री सोमनाथ मंदिर के अति प्राचीन दौर की बात करें तो पुराणों में उल्लेख मिलता है कि, सतयुग में चंद्र देव यानी स्वयं चंद्रमा ने यहां स्वर्ण या सोने का मंदिर बनवाया था।

त्रेता युग में स्वयं रावण ने यहां चांदी का मंदिर बनवाया था, और द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने यहां चंदन की लकड़ी से भगवान सोमनाथ जी का मंदिर बनवाया था।

यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया।

वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है।

लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।

शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक , सोमनाथ मंदिर भी उत्तम वास्तुकला का नमूना है। अनन्त तीर्थ के रूप में जाना जाता है, यह वह स्थान माना जाता है जहां भगवान कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की।

 यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहाँ श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताया गया है।

इन तीन महीनों में यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहाँ तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्त्व है।

सोमनाथ का अर्थ है ” सोम के भगवान ” या “चंद्रमा”। इसे प्रभासा भी कहा जाता है (शाब्दिक रूप से “वैभव का स्थान”)।सोमनाथ मंदिर हिंदुओं के लिए एक ज्योतिर्लिंग स्थल और तीर्थ (तीर्थ) का एक पवित्र स्थान रहा है।

यह गुजरात में पास के द्वारका, ओडिशा में पुरी, तमिलनाडु में रामेश्वरम और चिदंबरम के साथ भारत के समुद्र तट पर पांच सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की सबसे खास बात यह रही कि यह मंदिर इतनी बार नष्ट होने और लूटने के बाद भी हमेशा धन-संपदा से समृद्ध होता रहा और आज भी है, जबकि इसको बार-बार निशाना बनाकर लुटने वाले उन्हीं मुगलों के वंश का आज पता ही नहीं चल पा रहा है कि वे कहां हैं और किस हाल में हैं या फिर वे समाप्त हो चुके

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थान और मन्दिर  

मन्दिर संख्या 1 के प्रांगण में हनुमानजी का मन्दिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मन्दिर हैं।

अघोरेश्वर मन्दिर नं॰ 6 के समीप भैरवेश्वर मन्दिर, महाकाली मन्दिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है।

पंचमुखी महादेव मन्दिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं. 12 के नजदीक और नं॰ 15 के समीप राममन्दिर स्थित है।

नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मन्दिर, कालिका मन्दिर, बालाजी मन्दिर, नरसिंह मन्दिर, नागनाथ मन्दिर समेत कुल 42 मन्दिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मन्दिर         

सोमनाथ के निकट त्रिवेणी घाट पर स्थित गीता मन्दिर

वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे मन्दिर बने हुए हैं

शशिभूषण मन्दिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुण्ड, पाण्डव कूप, द्वारिकानाथ मन्दिर, बालाजी मन्दिर, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, रूदे्रश्वर मन्दिर, सूर्य मन्दिर, हिंगलाज गुफा, गीता मन्दिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 65वीं बैठक के अलावा कई अन्य प्रमुख मन्दिर है।

प्रभास खण्ड में विवरण है कि सोमनाथ मन्दिर के समयकाल में अन्य देव मन्दिर भी थे।

इनमें शिवजी के 135, विष्णु भगवान के 5, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के 5, नाग मन्दिर 1, क्षेत्रपाल मन्दिर 1, कुण्ड 19 और नदियाँ 9 बताई जाती हैं।

एक शिलालेख में विवरण है कि महमूद के हमले के बाद इक्कीस मन्दिरों का निर्माण किया गया। सम्भवत: इसके पश्चात भी अनेक मन्दिर बने होंगे।

सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की द्वारिका है।

यहाँ भी प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

यहाँ गोमती नदी है। इसके स्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है।

इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ़ फीट ही रह जाता है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग अन्य दर्शनीय स्थल व मन्दिर     

  1. अहिल्या बाई का मन्दिर
  2. प्राची त्रिवेदी
  3. वाड़ातीर्थ
  4. यादवस्थली

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

सोमनाथ मन्दिर का इतिहास काफी प्राचीन हैं। इस मंदिर का अस्तित्व कई ईसा पूर्व का है। मंदिर का पुनर्निर्माण दूसरी बार सातवीं सदी में  वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया था।

आठवीं सदी में इसे पुनः सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने अपनी  सेना को यहाँ भेज कर नष्ट कर दिया।

तीसरी बार इस मंदिर का पुनः निर्माण 815 ईस्वी में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने कराया।

इस पवित्र मंदिर की कीर्ति दूर-दूर तक फ़ैलने लगी जिसका जिक्र अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में किया और इस मंदिर के बारे

माना जाता है कि समुद्र तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर चार चरणों में भगवान सोम ने स्वर्ण, रवि ने चांदी, भगवान श्रीकृष्ण ने चंदन और राजा भीमदेव ने पत्थरों से बनवाया था।

ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि 11वीं से 18वीं सदी के दौरान कई मुस्लिम हमलावरों ने इस पर कई बार हमला किया।

हालांकि, लोगों के पुनर्निर्माण करने के उत्साह से यह मंदिर हर बार बनाया गया।

सोमनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के ठंडे महीनों में है, हालांकि यह स्थल पूरे साल खुला रहता है। शिवरात्रि (आमतौर पर फरवरी या मार्च में) और कार्तिक पूर्णिमा (दीवाली के करीब) यहाँ बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है।

 सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथाएं

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

सभी 12 ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव का केंद्र और आत्मा पूरे भारत में फैले हुए हैं और इन पवित्र मंदिरों में पहला सोमनाथ मंदिर है।

स्कंद पुराण के अनुसार, महान ऋषि अत्रि मुनि और उनकी पत्नी अनसूया ने शांति और सुख की दुनिया बनाने के लिए सोचा था।

उन्होंने भगवान शिव की तपस्या शुरू की और फिर उन्हें बहादुर और समर्पित पुत्र का आशीर्वाद दिया।

यह पुत्र भगवान शिव का प्रसाद था और सुंदरता और विलासिता के साथ आया था जिसे चंद्र-चंद्र नाम दिया गया था।

वह अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार दुनिया बनाने के जुनून के साथ शांति, चमक, वीर, शक्ति और बुद्धि से भरा था।

चंद्रा ने लोगों के जीवन को बदलने और उन्हें संस्कारी बनाने के लिए बहुत प्रयास किए थे।

चंद्र की महिमा बहुत साल पहले भारतवर्ष में फैल गई थी माँ अनसूया ने चंद्रा से शादी के लिए अनुरोध किया लेकिन वह ऐसी पत्नी चाहते थे जो बुद्धिमान हो और उनके प्रयास को समझने में सक्षम हो।

अंत में चंद्र को रोहिणी नाम की महिला मिली, जो उन्हें समझने में कुशल थी, राजा दक्ष प्रजापति की बेटी।

रोहिणी शादी के लिए तैयार थी लेकिन इस शर्त के साथ कि चंद्रा को अपनी बाकी 26 बहनो के साथ शादी करनी होगी।

स्कंद पुराण के प्रभास खंड में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की यह कथा बताई गई है,चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन रोहिणी से उनको इतना प्रेम था कि अन्य 26 खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस करने लगी थीं।

उन्होंने अपने पति से निराश होकर अपने पिता से शिकायत की, पुत्रियों की वेदना से पीड़ित दक्ष ने अपने दामाद चंद्रमा को दो बार समझाने का प्रयास किया परंतु चंद्रमा नहीं माने, प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दे दिया,चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे।

सभी देवता चंद्रमा के दुख से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर उनसे श्राप के निवारण का उपाय पूछने लगे।

ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से वृण्भध्वज शंकर की उपासना करना एक मात्र उपाय बताया।

चंद्रमा के 6 मास तक पूजा करने और घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया।

इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।

कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी।

इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।

सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत्‌ करने लगे।

 शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहाँ निवास करें।

भगवान्‌ शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।

उस क्षेत्र की महिमा बढ़ाने और चंद्रमा (सोम) के यश के लिए सोमेश्वर नाम से शिवजी वहां अवस्थित हो गए।

देवताओं ने उस स्थान पर सोमेश्वर कुंड  की स्थापना की। अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं।

वे भगवान्‌ शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं।

मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य स्वयमेव सफल हो जाते हैं।

इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’  के नाम से भी जाना जाता है।

चूंकि चंद्रमा को भगवान शिव से सबसे पहले लाभकारी वरदान मिला था, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में मुख्य माना जाता है

एक दूसरे मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण भालूका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे तभी एक शिकारी ने उनके पैर के तलवे में पदचिन्ह को हिरण की आंख समझकर धोखे में तीर मारा था।

यहीं पर से भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग किया, और यहीं से वह बैकुंठ के लिए प्रस्थान कर गए। इस स्थान पर बड़ा ही सुंदर कृष्ण मंदिर भी बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण

सोमनाथ मंदिर का जब भी जिक्र होता है, तो एक ही बात होती है कि इस मंदिर को कई बार लूटा गया और फिर से इस मंदिर का वैभव बरकरार है। 

कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण कराया गया.

श्री सोमनाथ के इस विशाल और पवित्र स्थान पर अनेको हमले किये गए।

कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व में भी अवस्थित था।

सबसे पहले इस मंदिर पर 725 ईस्वी में सिंध के सूबेदार अल जुनैद ने हमला कर इसे तुड़वा दिया था और यहां से अनगिनत खजाना भी लूट ले गया था।

फिर राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण कराया था।

सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने 1024 ईस्वी में दूसरी बार तोड़ा. गजनवी ने न केवल शिवलिंग को ही तोड़ा, बल्कि हजारों बेकसूर लोगों को मौत के घाट भी उतार दिया था।

गजनवी का आक्रमण

महमूद ग़ज़नवी  ने सन 1024 में अपनी सेना के साथ हमला बोल दिया और मन्दिर में चढ़े सारे सोने-चाँदी  और हीरे-जवाहरातों को लूट लिया साथ ही मंदिर के अन्दर हज़ारो की संख्या में रहे भक्तो को मौत के घाट उतार दिया।

मंदिर को तहस-नहस कर दिया। उसके बाद वो लूटी गयी सम्पत्ति के साथ  अपने देश ग़ज़नी चला गया।

आज भी सोमनाथ मन्दिर का भग्नावशेष  समुद्र के किनारे विद्यमान है।

इतिहासकारो के अनुसार बताया जाता हैं की जब महमूद ग़ज़नवी सोमनाथ के शिवलिंग को खंडित (तोड़) ना सका तो वह गुस्से में शिवलिंग के चारो तरफ आग लगवा दी थी।

और मंदिर में ही स्थित नीलमणि के छप्पन खम्भों में जडित हीरे-मोती तथा विविध प्रकार के रत्न को लूट लिया और मंदिर को नष्ट कर दिया।

इतिहास गजनवी  की इस बर्बरता को कभी नहीं भुला सकता है. कहा जाता है कि उस दिन गजनवी ने 18 करोड़ का खजाना लूटा था और फिर अपने शहर गजनी (अफगनिस्तान) के लिए कूच कर गया था।

उसके बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज के द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था।

1093 ईस्वी में सिद्धराज जयसिंह  ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग किया।

इस मंदिर के सौंदर्यीकरण में 1168 ईस्वी में सौराष्ट्र के राजा खंगार और विजयेश्वर कुमारपाल ने काफी सहयोग किया था।

खिलजीवंश का आक्रमण

इसके बाद 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान  ने गुजरात पर हमला कर फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर की अथाह धन-संपत्ति को लूटकर ले गया। फिर से हिन्दू राजाओं ने इसे बनवाया।

मुजफ्फरशाह ने इसे फिर किया ध्वस्त

1395 ईस्वी में जब गुजरात में मुजफ्फरशाह का शासन था, तब मुजफ्फरशाह ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर का सारा धन लूट ले गया।

इसके बाद 1412 ईस्वी में मुजफ्फरशाह के बेटे अहमद शाह  ने फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और लूटा।

मुगलवंश औरंगजेब ने भी लूटा खजाना

बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में।

1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया।

जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।

औरंगजेब ने पूजा-अर्चना करते हुए हजारों भक्तों को बेरहमी से मार दिया था।

आस्था ने मंदिर को वापस खड़ा किया

इतना सब होने के बाद भी हिंदुओं की आस्था का अंत नहीं हुआ था। वे उस स्थान की पूजा करते रहे। औरंगजेब ने 1706 ईस्वी में दोबारा सोमनाथ को तोड़ा और हजारों लोगों का कत्लेआम किया।

लेकिन फिर वीर शिवाजी महाराज के अदम्य साहस और अनेक युद्धों के बाद जब यह क्षेत्र मराठाओं के अधिकार में आया, तब 1783 ईस्वी में इंदौर की शिवभक्त रानी अहिल्याबाई ने मूल मंदिर से थोड़ा सा हटकर पूजा के लिए सोमनाथ महादेव का नया मंदिर बनवाया।

इस तरह से यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ और फिर से खड़ा हुआ।

भारत की आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पुनर्निर्माण

भारत के लौह पुरुष और प्रथम उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 13 नवंबर, 1947 को मंदिर के पुनर्निर्माण का वादा किया था।

आज का सोमनाथ मंदिर सातवें स्थान पर अपने मूल स्थान पर बना हुआ है। जब 1 दिसंबर 1995 को मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया, तब भारतीय राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने मंदिर को देश को समर्पित किया।

1951 में, जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग को शुद्ध करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने कहा, “सोमनाथ का यह मंदिर विनाश पर निर्माण पर विजय का प्रतीक है”।

मंदिर श्री सोमनाथ ट्रस्ट के तहत बनाया गया है और यह ट्रस्ट अब मंदिर की निगरानी कर रहा है।

वर्तमान में ट्रस्ट के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल हैं और सरदार पटेल इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष थे।

चालुक्य शैली द्वारा निर्मित कैलाश महामेरु प्रसाद मंदिर में गुजरात के सोमपुरा कारीगरों की कला का शानदार प्रदर्शन है। पिछले 800 सालों में इस तरह का निर्माण नहीं हुआ है।

तट पर संस्कृत में लिखे शिलालेख के अनुसार, मंदिर और ग्रह के दक्षिणी भाग के बीच केवल समुद्र मौजूद है और कोई भूमि नहीं है।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद गुजरात के महान शेर सपूत सरदार वल्लभभाई पटेल ने महाराष्ट्र के काकासाहेब गाडगी की सलाह पर श्री सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।

उनकी मृत्यु के बाद इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था। भारतीय शिल्पकला की स्वर्गीय सुंदरता के इस बेजोड़ नमूने ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया.

भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी  के कर कमलों और वेदमूर्ति तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशीजी के वेदघोष द्वारा 11 मई 1951 को सुबह 6.46 बजे इस मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राणप्रतिष्ठा बड़ी धूमधाम से की गई।

ज्योतिर्लिंग का अर्थ

सोमनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है।

ज्योतिर्लिंग उन स्थानों को कहते है जहाँ भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।

सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थान और पर्यटन स्थल है। हिंदू धर्म में इस स्थान को बहुत पवित्र माना जाता है।

इस मंदिर का निर्माण स्वयं चन्द्र देव ने करवाया था। इस मंदिर का इतिहास हिंदू धर्म के उत्थान और पतन का प्रतीक माना गया है।

अब तक यह मंदिर कई बार नष्ट हो चुका है और दूबारा उतनी ही विशालता से इसका पुननिर्माण किया गया।

सोमनाथ मंदिर की बनावट और शिल्प 

सोमनाथ मंदिर की अनूठी शिल्पकला एवं बनावट थी, जिसे आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया।

सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण चालुक्य शैली में किया गया है। यह प्राचीन हिन्दू वास्तु कला का एक अनोखा नमूना है। पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया है।

कैलाश महामेरु प्रासाद शैली में इस विशाल मंदिर को पूरी तरह से तैयार होने में कई वर्ष लग गए.

भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1 दिसंबर 1995 को सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया।

सोमनाथ मंदिर तीन प्रमुख भागों- गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप में विभाजित है. इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 150 फीट है। शिखर पर अवस्थित कलश का वजन दस टन है। इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है.

सोमनाथ मंदिर का प्रांगण

इस विशाल मंदिर का क्षेत्रफल 10 किलोमीटर है। इस बड़े क्षेत्रफल में लगभग 42 मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी, गंगा, सरस्वती और नंदी की मूर्तियां स्थापित हैं।

शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की बहुत सुंदर प्रतिमा अवस्थित है।

मंदिर प्रांगण में गणेश जी की खूबसूरत भव्य प्रतिमा स्थापित है. उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति है।

महाकाली और रानी अहिल्याबाई का भी बेहद सुंदर और विशाल मंदिर स्थापित है।

इसके अलावा गौरीकुंड नामक विशाल सरोवर भी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है.

सोमनाथ मंदिर के कुछ रोचक तथ्य

आमतौर पर सभी पर्यटन स्थलों और मंदिरों में कोई न कोई ऐसी विशेषता जरूर होती है जिसके कारण लोग उसे देखने के लिए जाते हैं। सोमनाथ मंदिर की भी अपनी विशेषता है।

 इस मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सोमनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है जो जमीन के ऊपर संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इस मंदिर के निर्माण में पांच वर्ष लग गए थे।

सोमनाथ मंदिर के शिखर की ऊंचाई 150 फीट है और मंदिर के अंदर गर्भगृह, सभामंडपम और नृत्य मंडपम है।

सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था जो इतिहास की एक प्रचलित घटना है। इसके बाद मंदिर का नाम पूरी दुनिया में विख्यात हो गया।

मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है जिसे बाणस्तंभ के नाम से जाना जाता है। इसके ऊपर तीर रखा गया है जो यह दर्शाता है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भाग नहीं है।

यहाँ पर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का संगम है और इस त्रिवेणी में लोग स्नान करने आते हैं। मंदिर नगर के 10 किलोमीटर में फैला है और इसमें 42 मंदिर है।

सोमनाथ मंदिर को शुरूआत में प्रभासक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता था और यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देहत्याग किया था।

माना जाता है कि आगरा में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के ही है जिन्हें महमूद गजनवी अपने साथ लूट कर ले गया था। मंदिर के शिखर पर स्थित स्थित कलश का वजन 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊँची है।

यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से पहला ज्योतिर्लिंग है इसकी स्थापना के बाद अगला ज्योतिर्लिंग वाराणसी, रामेश्वरम और द्वारका में स्थापित किया गया था। इस कारण शिव भक्तों के लिए यह एक महान हिंदू मंदिर माना जाता है।

पर्यटकों और भक्तों के लिए सोमनाथ मंदिर सुबह छह बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। मंदिर में तीन बार आरती होती है। इस अद्भुत आरती को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।

सोमनाथ मंदिर परिसर में ही रात साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक लाइट एंड साउंड शो चलता है। ज्यादातर पर्यटक सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला को देखने के लिए भी आते हैं।

चार धाम में से एक धाम भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका सोमनाथ से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर प्रतिदिन द्वारकाधीश के दर्शन के लिए देश और विदेशों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

यहां गोमती नदी स्थित है इसके स्नान का विशेष महत्व बताया गया है इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ जाता है और सूर्यास्त पर घट जाता है। जो सुबह सूर्य निकलने से पहल मात्र 1 या 2 फिट ही रह जाता है।

विश्व प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर आदि अनंत है। इसका सर्वप्रथम निर्माण काल अज्ञात है। हर काल में इस मंदिर को बुरी ताकतों ने लूटा और शिवलिंग को खंडित किया गया।

इन सबके बावजूद, आज भी अपने भक्तों के लिए सोमनाथ मंदिर में विराजित शिवलिंग और यह मंदिर पूरे भव्यता के साथ इस दुनिया के सामने खड़ा है।

यह मंदिर उन सभी बुरी ताकतों के लिए एक मिसाल है, और सबसे बड़ा उदाहरण है… जो यह दर्शाता है कि आखिर कितना भी अंधेरा हो, जीत हमेशा उजाले की ही होती है। और चाहे कितनी भी बुराई हो जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है।

कालिदास की 5वीं शताब्दी की कविता रघुवंश में अपने समय के कुछ श्रद्धेय शिव तीर्थ स्थलों का उल्लेख है। इसमें बनारस (वाराणसी), महाकाल-उज्जैन , त्र्यंबक , प्रयाग , पुष्कर , गोकर्ण और सोमनाथ-प्रभास शामिल हैं। कालिदास की यह सूची “उनके दिनों में मनाए जाने वाले तीर्थों का स्पष्ट संकेत” देती है

कुछ ऐसी किंवदंतियां हैं जो इस पवित्र और स्थापत्य रूप से अद्भुत मंदिर से जुड़ी हैं:

आधुनिक दिन सोमनाथ मंदिर 1947 से 1951 तक पांच वर्षों में बनाया गया था और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

माना जाता है कि मंदिर में शिवलिंग अपने खोखलेपन के भीतर सुरक्षित रूप से छिपा हुआ था, प्रसिद्ध स्यामंतक मणि, दार्शनिक का पत्थर, जो भगवान कृष्ण से जुड़ा है।

कहा जाता है कि यह एक जादुई पत्थर था, जो सोने का उत्पादन करने में सक्षम था।

यह भी माना जाता है कि पत्थर में कीमिया और रेडियोधर्मी गुण होते हैं और यह अपने चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र बना सकता है जिससे इसे जमीन से ऊपर तैरते रहने में मदद मिलती है।

मंदिर का संदर्भ हिंदुओं के सबसे प्राचीन ग्रंथों जैसे श्रीमद भागवत, स्कंदपुराण, शिवपुराण और ऋग्वेद में मिलता है जो भारत में सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक के रूप में इस मंदिर के महत्व को दर्शाता है।

इतिहास के विद्वानों के अनुसार, सोमनाथ का स्थल प्राचीन काल से एक तीर्थ स्थल रहा है क्योंकि इसे तीन नदियों कपिला, हिरण और पौराणिक सरस्वती का संगम स्थल कहा जाता था।

संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता था और माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां चंद्रमा देवता सोम ने स्नान किया और अपनी चमक वापस पा ली।

इसका परिणाम समुद्र तट के इस स्थान पर चंद्रमा के ढलने और घटने या ज्वार के ढलने और घटने के रूप में माना जाता है।

किंवदंती यह है कि मंदिर की प्रारंभिक संरचना सबसे पहले चंद्रमा भगवान द्वारा बनाई गई थी जिन्होंने मंदिर का निर्माण सोने से किया था।

इसके निर्माण के लिए सूर्य देव ने चांदी का इस्तेमाल किया था, जबकि भगवान कृष्ण ने इसे चंदन की लकड़ी से बनाया था।

हिंदू विद्वान, स्वामी गजानंद सरस्वती के अनुसार, पहला मंदिर 7, 99, 25,105 साल पहले बनाया गया था, जैसा कि स्कंद पुराण के प्रभास खंड की परंपराओं से लिया गया था।

मंदिर 1024 में महमूद गजनी, 1296 में खिलजी की सेना, 1375 में मुजफ्फर शाह, 1451 में महमूद बेगड़ा और 1665 में औरंगजेब के हाथों नष्ट हो गया था।

कहा जाता है कि यह मंदिर ऐसी जगह पर स्थित है कि सोमनाथ समुद्र तट के बीच अंटार्कटिका तक सीधी रेखा में कोई भूमि नहीं है।

संस्कृत में एक शिलालेख में, सोमनाथ मंदिर में समुद्र-संरक्षण दीवार पर खड़े बाण-स्तंभ नामक तीर-स्तंभ पर पाया गया है कि मंदिर भारतीय भूमि के एक बिंदु पर खड़ा है, जो कि पहला बिंदु होता है उस विशेष देशांतर पर उत्तर से दक्षिणी ध्रुव की भूमि पर।

सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती है।

स्कंद पुराण के प्रभासखंड में उल्लेख किया गया है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम हर नए सृष्टि के साथ बदल जाता है।

इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि करेंगे तब सोमनाथ का नाम ‘प्राणनाथ’ होगा। प्रलय के बाद जब नई सृष्ट आरंभ होगी तब सोमनाथ प्राणनाथ कहलाएंगे।

मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव के साथ ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियां विराजित है स्कंद पुराण के प्रभास खंड में पार्वती के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महादेव कहते हैं कि अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं।

सोमनाथ के सेवक नंदी महाराज मंदिर में विराजमान होकर शिव जी का ध्यान कर रहे हैं। स्कंद पुराण में बताया गया है कि सृष्टि में अब तक अब तक छह ब्रह्मा बदल गए हैं।

यह सातवें ब्रह्मा का युग है, इस ब्रह्मा का नाम है ‘शतानंद’। शिव जी कहते हैं कि स युग में मेरा नाम सोमनाथ है। बीते कल्प से पहले जो ब्रह्मा थे उनका नाम विरंचि था। उस समय इस शिवलिंग का नाम मृत्युंजय था।

महादेव का कहना है कि दूसरे कल्प में ब्रह्मा जी पद्मभू नाम से जाने जाते थे, उस समय सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम कालाग्निरुद्र था। तीसरे ब्रह्मा की सृष्टि स्वयंभू नाम से हुई, उस समय सोमनाथ का नाम अमृतेश हुआ

सोमनाथ मंदिर के बारे में शिव जी कहते हैं कि चौथे ब्रह्मा का नाम परमेष्ठी हुआ, उन दिनों सोमनाथ अनामय नाम से विख्यात हुए। पांचवें ब्रह्मा सुरज्येष्ठ हुए तब इस ज्योतिर्लिंग का नाम कृत्तिवास था।

छठे ब्रह्मा हेमगर्भ कहलाए। इनके युग में सोमनाथ भैरवनाथ कहलाए।

स्कंद पुराण में एक अन्य संदर्भ के अनुसार, लगभग 6 ब्रह्मा हुए हैं। यह 7 वें ब्रह्मा का युग है जिसे शतानंद कहा जाता है।

भगवान शिव यह भी बताते हैं कि 7 वें युग में, मंदिर का नाम सोमनाथ और अंतिम युग में शिवलिंग को मृत्युंजय कहा जाता था।

धार्मिक मान्यता

भगवान सोमनाथ की पूजा दर्शन एवं उपासना से भक्तो को क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती जाती और वो पूर्णत स्वस्थ हो जाता है।

क्युकी इस सोमेश्वर भगवान शिव साक्षात् यहाँ विराजमान हैं।

चन्द्रकुण्डं प्रसिद्ध च पृथिव्यां पापनाशनम्।

तत्र स्नाति नरो यः स सर्वेः पापैः प्रमुच्यते।।

रोगाः सर्वे क्षयाद्याश्च ह्वासाध्या ये भवन्ति वै।

ते सर्वे च क्षयं यान्ति षण्मासं स्नानमात्रतः।।

प्रभासं च परिक्रम्य पृथिवीक्रमसं भवम्।

फलं प्राप्नोति शुद्धात्मा मृतः स्वर्गे महीयते।।

सोमलिंग नरो दृष्टा सर्वपापात्प्रमुच्यते ।

लब्धवा फलं मनोभीष्टं मृतः स्वर्गं समीहते।।

सोमनाथ मंदिर का विशेषता

इस मंदिर की विशेषता है कि अब तक यह 17 बार नष्ट हो चुका है और हर बार इसका पुननिर्माण किया गया। महमूद गजनवी से लेकर अलाऊद्दीन खिलजी तक सबने इस मंदिर को ध्वस्त किया।

भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया।

यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है।

इस मंदिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है।  

इस वास्तु अनुकूलता के कारण यह मन्दिर भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है और साथ ही मंदिर में पर्याप्त धन का आगमन होता रहा है। इसलिए बार-बार ध्वस्त होने के बाद भी हर बार यह मन्दिर बनता रहा।

सोमनाथ मन्दिर के आसपास दो महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थल है। जिस कारण से इस क्षेत्र का ओर भी महत्व बढ़ जाता है।

मन्दिर से पांच किमी. की दूरी पर भालका तीर्थ है, लोक कथाओं के अनुसार यहीं पर श्रीकृष्ण ने देहत्यागा था और एक किलोमीटर दूर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है।

त्रिवेणी नदी में धार्मिक दृष्टि से स्नान का बहुत महत्व है, क्योंकि इसी त्रिवेणी पर श्रीकृष्ण जी की नश्वर देह का अग्नि संस्कार किया गया था।  

ऐसा माना जाता है की भगवान कृष्णा की सिमंतक  मणि सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग में स्थापित है।

सोमनाथ मंदिर में पूजाअर्चना

यह मंदिर रोज सुबह 6 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक भक्तो के लिए खुला रहता है। इस मंदिर में रोज तीन बार आरती होती है। सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम को 7 बजे आरती होती है।

इस मंदिर में होमात्मक अतिरुद्र, होमात्मक महारुद्र, होमात्मक लघुरुद्र, सवालक्ष सम्पुट महामृत्युंजय जाप आदि का किया जाता है।

इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1950 में दोबारा बनवाया था।

पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

इस मंदिर की महिमा को कई बार बार के हमले भी भक्तों के मन से हटा नहीं सके। सातवीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में इसे बनवाया गया था जिसमें निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल जुड़े रहे थे.

सोमनाथ मंदिर के पीछे समुद्र तट पर एक किलोमीटर लंबे समुद्र दर्शन पैदल-पथ का निर्माण, प्रसाद योजना के तहत किया गया जा रहा है।

इसे 47 करोड़ रुपये से अधिक की कुल लागत से विकसित किया गया है. पर्यटक सुविधा केंद्र’ के परिसर में विकसित सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र, पुराने सोमनाथ मंदिर के खंडित हिस्सों और पुराने सोमनाथ की नागर शैली के मंदिर वास्तुकला वाली मूर्तियों को प्रदर्शित करता है।

पुराने (जूना) सोमनाथ के पुनर्निर्मित मंदिर परिसर को श्री सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा 3.5 करोड़ रुपये के खर्च के साथ दुरुस्त किया गया है. साथ ही श्री पार्वती मंदिर का निर्माण 30 करोड़ रुपये के लागत से किया जाना प्रस्तावित है.

पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर गुजरात में हिंदुओं के लिए सबसे पसंदीदा तीर्थ स्थल है, जिसे अक्सर द्वारका की तीर्थयात्रा के साथ जोड़ा जाता है। डेविड सोफर कहते हैं, यह पूरे भारत से हिंदुओं को आकर्षित करती है।

सोमनाथ दर्शन का समय

मंदिर के खुलने का समय: सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक ।

आरती का समय: सुबह 7:00 बजे, दोपहर 12:00 बजे और शाम 7:00 बजे। दैनिक प्रदर्शन किया

साउंड एंड लाइटिंग शो का समय: रात 8:00 बजे से रात 9:00 बजे तक। दैनिक।

दर्शन का समय: सुबह 6:00 बजे से रात 9:30 बजे तक।

लाइव दर्शन का समय: सुबह 7:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक

ड्रेस कोड: कोई भी अच्छा पहनावा। अभिषेक के दौरान पुरुषों को शर्ट और बनियान उतारनी चाहिए।

दर्शन अवधि: सप्ताह के दिनों में 20 से 30 मिनट और सप्ताहांत के दौरान 30 से 45 मिनट।

मुख्य देवता के दर्शन के लिए दर्शन टिकट की आवश्यकता नहीं है।

महाशिवरात्रि के दिनों में 12 दिवसीय वार्षिकोत्सव होगा। उपर्युक्त सोमनाथ दर्शन का समय त्योहार के दिनों में बदल सकता है।

जाने का सबसे अच्छा समय: सितंबर से मई पहला सप्ताह। कार्तिक मास, सोमवार, सप्ताहांत और छुट्टियों के दौरान भीड़ अधिक होगी।

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हिंदी महीनों के अनुसार व्रत एव त्योहार (Hindu festivals)

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भारत वर्ष में वर्ष भर त्यौहारों (Hindu festivals) को हर्षोल्लास से मनाया जाता है सनातन धर्म में पूरे वर्ष भर व्रतों को किया जाता है सभी देवी देवताओं को पूजा जाता है।

हिंदू धर्म में व्रत और त्योहार का बहुत ज्यादा महत्व रहा है। साल के सभी 12 महीनों में शायद ही कोई ऐसा महीना होगा जब कोई व्रत या त्योहार न पड़ता हो। ऐसा माना जाता है कि व्रत और त्योहार करने से सभी पापों का नाश हो जाता है।

हिन्दू धर्म में हिंदी महीनों के नाम

  1. चैत्र (मार्च-अप्रैल)
  2. वैशाख (अप्रैल -मई )
  3. ज्येष्ठ (मई -जून ) हिंदी मास
  4. आषाढ़ (जून-जुलाई)
  5. श्रावण(जुलाई-अगस्त)
  6. भाद्रपद(अगस्त-सितम्बर)
  7. आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर)
  8. कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर)
  9. मार्गशीर्ष (नवंबर- दिसंबर)
  10. पौष( दिसंबर -जनवरी)
  11. माघ (जनवरी-फरवरी)
  12. फाल्गुन( फरवरी-मार्च)

1 संवत्सर का पहला मास चैत्र

फाल्गुन जो कि हिंदू वर्ष का अंतिम मास होता है। इसके तुरंत बाद ही लगता है चैत्र का महीना। चेत्र का महीना इस ब्रह्मांड का पहला दिन माना जाता है इसी महीने से होती है हिंदू नववर्ष की शुरूआत। जिसे संवत्सर कहा जाता है।

हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता होती है। अनेक पावन पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा।

मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरंभ की थी। वहीं सतयुग की शुरुआत भी चैत्र माह से मानी जाती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मतस्यावतार अवतरित हुए एवं जल प्रलय के बीच घिरे मनु को सुरक्षित स्थल पर पंहुचाया था। जिनसे प्रलय के पश्चात नई सृष्टि का आरंभ हुआ।

चैत्र मास के पर्वत्यौहार

भाई दूज

पर्व को हर भाई बहन बड़ें से धूमधाम से मानाते हैं। यह पर्व हर वर्ष  चैत्र माह से कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन पड़ती है।

बासोड़ा

चैत्र माह के अष्टमी तिथि को भारत के कई हिस्से में बसोड़ा नामक पर्व को उत्साह के साथ मनाया जाता है।

पापमोचिनी एकादशी

चैत्र मास की कृष्ण एकादशी बहुत ही शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का उपवास करने से सभी प्रकार के पापों का नाश औहोता है। .

चैत्र अमावस्या

चूंकि यह संवत्सर की पहली अमावस्या होती है इसलिये इसे पितृ कर्म के लिये बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है। अपने पितरों की शांति के लिये इस दिन तर्पण करना चाहिये।

चैत्र  नवरात्रि

चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से नवरात्रि का आरंभ होता है।चैत्र मास का विशेष आकर्षण होते हैं मां की उपासना के नौ दिन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।

राम नवमीचैत्र

शुक्ल नवमी को प्रभु श्री राम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि रामलला का जन्म इसी दिन हुआ था। इसलिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।

कामदा एकादशी

चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि यानि विष्णु भगवान की पूजा की जाती है।

चैत्र पूर्णिमा

संवत्सर की पहली पूर्णमासी होती है। इसलिये यह पूर्णिमा उपवास दान-पुण्य आदि धार्मिक कार्यों के लिये बहुत ही शुभ होती है।

2 वैशाख मास

सनातन धर्म में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से वैशाख माह को विशेष महत्व दिया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र के बाद वैशाख का महीना आता है।

चैत्र पूर्णिमा के उपरांत जब प्रतिपदा तिथि आती है तभी से वैशाख माह की शुरुआत होती है। वैशाख मास की पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में होने के कारण इस मास का नाम वैशाख पड़ा।

अंग्रेजी महीने के अनुसार ये अप्रैल या मई में शुरु होता है। कुछ विद्वान बैसाखी से भी इस महीने का आरंभ मानते हैं। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इस दिन को मेष संक्राति भी कहा जाता है।

इस महीने में बहुत सारे व्रत, पर्व और त्यौहार आते हैं। सबसे बड़ी बात साल में एक बार होने वाले वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी के चरण दर्शन भी इसी महीने में किए जा सकते हैं।

वैशाख में ही गंगा मइया धरती पर पुनः आई थी इसलिए गंगा स्नान करना अक्षय पुण्य देने वाला और जन्मों के पापो को धोने वाला माना जाता है। पूरा महीना स्नान और दान के लिए बहुत पवित्र है।

 वैशाख महीने के व्रत और त्यौहार

 वैशाखी पर्व

वैशाखी को हर वर्ष बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन को सिख धर्मावंलबियों का नया वर्ष आरंभ होता है। पूरे भारत में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मानाया जाता है।

वरुथिनी एकादशी

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा उपासना की जाती है।

वैशाख अमावस्या

इस अमावस्या को स्नान दान व तर्पण के लिये बहुत ही शुभ माना जाता है।

अक्षय तृतीया पर्व

वैशाख मास का सबसे महत्वपूर्ण पर्व अक्षय तृतीया का ही माना जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने अवतार लिया था। भगवान विष्णु के ही अन्य अवतार भगवान परशुराम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।

इस कारण यह बहुत ही सौभाग्यशाली दिन माना जाता है। इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त देखें किया जा सकता है।

सीता नवमी

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी मनायी जाती है। मान्यता है कि इस दिन माता सीता धरती मां की कोख से प्रकट हुई थी।

मोहिनी एकादशी

 मास के शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन कामना पूर्ति के लिए व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा उपासना की जाती है।

पूर्णिमा

वैशाख पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है।

3 ज्‍येष्‍ठ माह

हिंदू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ या फिर जेठ का महीना चंद्र मास का तीसरा माह होता है जो चैत्र और वैशाख के बाद आता है।

चंद्र मास के सभी माह नक्षत्रों के नाम पर होते हैं, जेठ का महीना ज्‍येष्‍ठा नक्षत्र के नाम पर आधारित है।

वैसे तो गर्मियों की शुरूआत फाल्गुन मास के खत्‍म होते होते शुरू हो जाती हैं, पर जब ज्येष्ठ का आरंभ होता है तो गर्मी अपने शिखर पर पहुंच जाती है।

इसलिये पंडितों ने ज्येष्ठ में जल का महत्व बहुत अधिक माना है और जल से जुड़े व्रत और त्यौहार इसी महीने में मनाये जाते हैं।

जेठ माह के व्रत त्यौहार

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में कोई विशेष पर्व नहीं होता है लेकिन शुक्ल पक्ष में जल के महत्व को बताने वाले दो महत्वपूर्ण त्‍योहार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी के साथ कुछ प्रमुख पर्व पड़ते हैं। 

 अपरा एकादशी

ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा होती है।

ज्येष्ठ अमावस्या

ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि पूर्वजों की शांति के लिये बहुत ही शुभ मानी जाती है। साथ ही इसी दिन शनिदेव की जयंती मनाई जाती है और वट सावित्री का व्रत भी रखा जाता है।

 गंगा दशहरा

गंगा दशहरा मां गंगा के महत्व को बतलाता और जल के सरंक्षण का संदेश देता है। ये इस महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है।

निर्जला एकादशी

गंगा दशहरा के अगले दिन निर्जला एकादशी होती है इस दिन बिना अन्‍न जल के कठोर व्रत रखा जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा, वट पूर्णिमा व्रत

वट पूर्णिमा व्रत, वट सावित्री व्रत की तरह ही होता है।

4 आषाढ़ माह

पंचाग के अनुसार साल का चौथा महिना होता है आषाढ़ मास। वर्षा ऋतु का आगमन और आषाढ़ मास की शुरूआत लगभग एक साथ ही होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जून या जुलाई माह में आषाढ़ का महीना पड़ता है।

योगिनी एकादशी

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है यह तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है, एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। 

आषाढ़ अमावस्या

अमावस्या तिथि बहुत ही पवित्र तिथि मानी जाती है, विशेष कर स्नान, दान-पुण्य, पितृ कर्म आदि के लिये तो बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है।

गुप्त नवरात्रि

प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्रि आती है, साल की पहली नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आरंभ होती है जिसे वासंती नवरात्र भी कहते हैं।

दूसरी नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से आरंभ होती हैं, जिसे शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। लेकिन चैत्र नवरात्रि और आश्विन नवरात्रि के अलावा भी साल में दो नवरात्रि और आती है जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता हैं ।

पहली गुप्त नवरात्रि माघ माह में आती है और दूसरी आषाढ़ माह में, इन दोनों गुप्त नवरात्रियों का भी बड़ा महत्व माना गया है।

जगन्नाथ यात्रा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है, इसमें भगवान श्री कृष्ण, माता सुभद्रा व बलराम का पुष्य नक्षत्र में रथोत्सव निकाला जाता है।

देवशयनी एकादशी

देवशयनी एकादशी को बहुत ही खास एकादशी माना गया है, इस दिन से धर्म-कर्म का दौर शुरु होने के साथ ही देवशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्यक्रम होना कुछ समय के लिए बंद हो जाते हैं। कहा जाता हैं कि भगवान विष्णु इस दिन से चतुर्मास के लिये सो जाते हैं और देवउठनी एकादशी को ही जागते हैं।

पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा को महापर्व के रूप मनाया जाता है।

 5 श्रावण मास

हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्रावण माह पांचवां महीना होता है, जिसमें झमाझम बारिश होती है। वहीं धार्मिक दृष्टि से यह माह बेहद पावन होता है। यह महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है। इस महीने कई प्रमुख तीज-त्योहार मनाए जाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी

इस दिन गणेश जी का व्रत किया जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि संकष्टि के दिन गणपति की पूजा-आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

कामिका एकादशी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी का व्रत किया जाता है।

 एकादशी तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है।   

मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत (कृष्ण)

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाता है भगवान शिव को यह अति प्रिय है।

श्रावण अमावस्या

धार्मिक मान्यता के अनुसार, अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए कर्मकांड किया जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।

हरियाली तीज

हरियाली तीज का त्योहार विशेष रूप से महिलाओं के द्वारा मनाया जाता है। इस त्योहार में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। हर साल हरियाली तीज श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनायी जाती है।

नाग पंचमी

 हर साल नाग पंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा का विधान है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को  पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। संतान सुख के लिए यह व्रत भगवान विष्णु जी के लिए रखा जाता है।

श्रावण पूर्णिमा/रक्षा बंधन (Raksha Bandhan)

धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से श्रावण पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन ही भाई-बहन का पावन उत्सव रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। बहन अपने भाई की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए उन्हें राखी बांधती है।

गायत्री जयंती

हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गायत्री जयंती मनाई जाती है। हालांकि कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा के दिन भी गायत्री जंयती का उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व वेदों की देवी मां गायत्री को समर्पित त्योहार है।

6 भाद्रपद मास

हिंदू कैलेंडर का छठवां महीना होता है भाद्रपद। यह माह धर्म-कर्म, व्रत त्योहार के लिहाज से महत्वपूर्ण होता है। इस माह में भगवान श्रीकृष्ण और श्रीगणेशजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

यह माह चातुर्मास का दूसरा महीना होता है। इस महीने में उत्तम स्वास्थ्य की दृष्टि से दही का सेवन नहीं किया जाता है। धर्म, मंत्र जप, संयम का पालन करना आवश्यक होता है।

इस माह में अनेक प्रमुख व्रत-त्योहार आते हैं। इसी माह की पूर्णिमा के दिन से श्राद्धपक्ष भी प्रारंभ होंगे।भादों भगवान श्रीकृष्ण के प्रकटोत्सव का मास है।

इस दिन भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने भादों के महीने के कृष्ण पक्ष में रोहिणी नक्षत्र के अंतर्गत हर्षण योग वृष लग्न में जन्म लिया।

श्रीकृष्ण की उपासना को समर्पित भादों मास विशेष फलदायी कहा गया है। भाद अर्थात कल्याण देने वाला। कृष्ण पक्ष स्वयं श्रीकृष्ण से संबंधित है।भादों का माह भी, सावन की तरह ही पवित्र माना जाता है। इस माह में कुछ विशेष पर्व पड़ते हैं जिनका अपना-अपना अलग महत्त्व होता है।

 भादो मास के व्रत और त्योहार

कजरी तीज

भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को राजस्थान के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है।

यह माना जाता है कि इस पर्व का आरम्भ महाराणा राजसिंह ने अपनी रानी को प्रसन्न करने के लिये किया था।

जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami )

भाद्रपद मास में आने वाला अगला पर्व कृष्ण अष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह उपवास पर्व उत्तरी भारत में विशेष महत्व रखता है।  

पूरे भारत में जन्माष्टमी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन में व्रत रखकर श्रद्धालु रात 12 बजे तक नाना प्रकार के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक आयोजन करते हैं।

इस दिन के लिए मंदिरों की सजावट हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है। इस मौके पर मथुरा में विशेष आयोजन किए जाते हैं। आधी रात को कृष्ण का जन्म होता है।

गोविंद की पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और भक्त व्रत खोलते हैं।

 अजा एकादशी

भाद्रपद माह की कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है।

 भाद्रपद अमावस्या

भाद्रपद मास की अमावस्या पितृ शांति के लिये पिंड दान, तर्पण आदि धर्म कर्म के कामों के लिये काफी शुभ फलदायी मानी जाती है।

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)

भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।

इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा, उपवास व आराधना का शुभ कार्य किया जाता है। पूरे दिन उपवास रख श्री गणेश को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है।

प्राचीन काल में इस दिन लड्डूओं की वर्षा की जाती थी, जिसे लोग प्रसाद के रूप में लूट कर खाया जाता था। गणेश मंदिरों में इस दिन विशेष धूमधाम रहती है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए।

ऋषि पंचमी

भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं व उपवास रखती हैं। 

देवझूलनी एकादशी

भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में देवझूलनी एकादशी मनाई जाती है। देवझूलनी एकादशी में विष्णु जी की पूजा, व्रत, उपासना करने का विधान है। 

अनंत चतुर्दशी

भाद्रपद माह में आने वाले पर्वों की श्रंखला में अगला पर्व अनन्त चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है।

भाद्रपद पूर्णिमा

भादो पूर्णिमा महा का अंतिम दिन होता है।

7 अश्विन मास

पंचांग के अनुसार साल के सातवें महीने को आश्विन महीना कहा जाता है।

ये भाद्रपद के बाद और कार्तिक माह से पहले आता है। हिंदू कैलेंडर में हर महीना किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है।

जैसे- सावन शंकर का महीना होता है, भादो को श्रीकृष्ण का माह माना जाता है उसी प्रकार अश्विनी माह को देवी दुर्गा का माह माना जाता है। इस माह में ही पितरों के श्राद्ध् का विधान है और शारदीय नवरात्रि भी इस माह में ही संपन्न होती हैं।

अश्विन माह के कुछ विशेष व्रत और त्यौहार

पितृपक्ष (Pitru Paksh)

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाले पितृपक्ष का समापन आश्विन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को होता है। इन श्राद्ध के 16 दिनों में पितरों को शांत करने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए उनका तर्पण और पिंडदान किया जाता है। हिंदू धर्म में आश्विन कृष्ण अमावस्या को पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है। 

विघ्नराज संकष्टी

इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा व आराधना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन शिक्षक दिवस भी है।

सर्वपितृ आमवस्या

इस दिन को पितृ पक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। इस एक दिन श्राद्ध विधि करने से पितृ को संतुष्टि मिल जाती है।

शारदीय नवरात्र (Navaratri)

अमावस्या के बाद प्रतिपदा को शारदीय नवरात्रि आरंभ होते हैं यह 9 दिनों तक मनाये जाते हैं इसमें मां शेरावाली के स्वरूप की पूजा की जाती है।

 दशहरा (Dussehra )

आश्विन मास की दशमी तिथि को दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है और यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का संकेत है।

  8 कार्तिक माह (Kartik Maas)

हिंदू कैलेंडर में कुल 12 चंद्र मास रहते हैं। कार्तिक आठवां चंद्र माह है। धर्म शास्त्रों में कार्तिक महीने को सबसे पुण्य का महीना माना गया है। स्कंद पुराण में इसे सबसे अच्छा महीना माना गया है, वहीं पद्म पुराण में कार्तिक को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष देने वाला माह माना गया है।

कार्तिक माह के व्रत त्यौहार

करवा चौथ व्रत

करवा चौथ व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है| यह पवित्र पर्व सौभाग्यवती स्त्रियाँ मनाती हैं|

पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है. इसी के साथ देवी गौरी भगवान शिव एवं गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है|

करवाचौथ के दिन उपवास रखकर रात्रि समय चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है.

अहोई अष्टमी व्रत

यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि के दिन संतानवती स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. अहोई अष्टमी का पर्व मुख्य रुप से अपनी संतान की लम्बी आयु की कामना के लिये किया जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है.इस पर्व के विषय में एक ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस व्रत को उसी वार को किया जाता हैजिस दिन दिपावली होती हैं।

धनतेरस

दिवाली से दो दिन पहले धन-तेरस अथवा धन त्रयोदशी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन नए बर्तन, आभूषण खरीदने की परंपरा है.  संध्या समय में घर के मुख्य द्वार पर एक बडा़ दीया जलाया जाता है.

दीपावली (Diwali)

कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली का पर्व हर वर्ष मनाया जाता है| भारतवर्ष में हिन्दुओं का यह प्रमुख त्यौहार है|

इस दिन सभी लोग सुबह से ही घर को सजने का कार्य आरम्भ कर देते हैं. संध्या समय में दीये जलाते हैं. लक्ष्मी तथा गणेश पूजन करते हैं. आस-पडौ़स में एक-दूसरे को मिठाइयां व उपहार बांटते हैं. रिश्तेदारों तथा मित्रों को मिठाइयों का आदान-प्रदान कई दिन पहले से ही आरम्भ हो जाता है. रात में बच्चे तथा बडे़ मिलकर पटाखे तथा आतिशबाजी करत

गोवर्धन पूजा

इसी दिन रात्रि समय में गोवर्धन पूजा भी की जाती है. गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और उसे भोग लगाया जाता है. उसके बाद धूप-दीप से पूजन किया जाता है. फिर घर के सभी सदस्य इस गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं.

भैया दूज

दिवाली का पर्व भैया दूज या यम द्वित्तीया के दिन समाप्त होता है. यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वित्तीया को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं और मिठाई खिलाती हैं. भाई बदले में बहन को उपहार देते हैं.

9 मार्गशीर्ष मास

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है, इसलिए इस मास का नाम मार्गशीर्ष पड़ा है। भगवान श्रीकृष्ण को मार्गशीर्ष मास अत्यंत प्रिय है। मार्गशीर्ष का महीना हिन्दू कैलेंडर का नौवां महीना होता है। जिसे अगहन का महीना भी कहते हैं।

सोमवती अमावस्या

 इस दिन स्नान, दान आदि का विशेष महत्व होता है। यह अगहन अमावस्या या पितृ अमावस्या भी कहलाता है। इस दिन पितरों का स्मरण करते हैं।

मोक्षदा एकादशी

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति मोह माया के बंधन से मुक्त हो जाता है। आज के दिन गीता जयंती भी होती है क्योंकि इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था।

उत्पन्ना एकदशी

मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। इस दिन व्रत उपवास रखकर मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

मार्गशीर्ष अमावस्या- मार्गशीर्ष (अगहन) मास की अमावस्या तिथि को अगहन एवं दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। इस अमावस्या का महत्व भी कार्तिक अमावस्या के समान ही फलदायी माना गया है।

10 पौष माह

पौष मास में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि इस महीने में ठंड अधिक बढ़ जाती है।

विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। पोष पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पूरे महीने किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किये जाते।

लेकिन धार्मिक दृष्टि से इस महीने का काफी महत्व माना गया है। इस महीने में भगवान सूर्यनारायण की विशेष पूजा अर्चना कर उनसे उत्तम स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति की जाती है। 

पौष मास के व्रत त्यौहार

सफला एकादशी

पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। 

पौष अमावस्या

 पौष अमावस्या का भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है। इस दिन को पितृदोष, कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी  उपवास रखने के साथ-साथ विशेष पूजा अर्चना की जाती है

 लोहड़ी

लोहड़ी का पर्व पंजाब व हरियाणा राज्य में बड़े ही धूम- धाम से मनया जाता है। 

 मकर संक्रांति

मकर संक्रांति के दिन माना जाता है कि सूर्य उत्तरायण होते हैं। इस दिन को हिंदू धर्म में नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से गोचर कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उत्तरायण का पर्व विशेष तौर पर गुजरात समेत उत्तर भारत के कुछ राज्यों में मनया जाता है। मकर संक्रांति का त्यौहार 14 जनवरी को मनाया जाता है।

पौष पुत्रदा एकादशी

 पौष मास की शुक्ल एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखकर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करने से व्रती को संतान का सुख मिलता है।

पौष पूर्णिमा

इस मास का बहुत ही पावन दिन माना जाता है। धार्मिक कार्यों, भजन-कीर्तन आदि के साथ स्नान-दान आदि के लिये भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। पौष पूर्णिका का उपवास रखने की भी धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है।

11 माघ मास

मान्यताओं के अनुसार, माघ का महीना भगवान श्रीकृष्ण के माधव स्वरूप को समर्पित बताया गया है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ माह में किसी भी स्थान के जल को गंगातुल्य माना जाता माघ मास भगवान गणेशजी के साथ-साथ भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी और चंद्रदेव की पूजा का विधान है।

यूं तो हर मास का अपना अलग महत्व होता है लेकिन माघ मास ( माघ मास ) को काफी पवित्र माना जाता है। इसी महीने में संगम पर कल्पवास भी किया जाता है।

इस महीने में स्नान और दान करना काफी शुभ माना जाता है। इस महीने में प्रयाग, कुरुक्षेत्र, हरिद्धार, काशी, नासिक, जैन और अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है।

माघ मास महत्वपूर्ण त्योहार  व्रत

सकट चौथ

सकट चौथ का व्रत संतान के लिए किया जाता है।इस दिन तिल का प्रयोग किया जाता ह।

मौनी अमावस्या

माघ के महीने में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में भगवान का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।

वसंत पंचमी

वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू का त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिम बंगाल, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं।

जया एकादशी

स्नान-दान और पुण्य प्रभाव के महीने माघ मास की शुक्लपक्ष एकादशी को जया एकादशी कहा गया है। जया एकादशी के पुण्य के कारण मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर जीवन के हरेक क्षेत्र में विजयश्री प्राप्त करता है और मोक्ष का अधिकारी हो जाता है।

माघ पूर्णिमा

माघ पूर्णिमा को महा माघी और माघ पूर्णिमा जैसे नामों से भी जानते हैं। इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व होता है। पूर्णिमा के दिन दान, पुण्य और स्नान को शुभ फलदायी माना जाता ह

12 फाल्गुन मास

महाशिवरात्रि एवं होली जैसे कई बड़े बड़े त्यौहारों की सौगात लेकर आया फाल्गुन का महीना ।

हिंदू पंचाग का आखिरी महीना होता है इस महीने की पूर्णिमा को फाल्गुनी नक्षत्र होने के कारण इस महीने का नाम फाल्गुन है. इस महीने को आनंद और उल्लास का महीना कहा जाता है.

फाल्गुन मास के व्रत और त्यौहार

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता की जयंती के रूप मनाया जाता है । इस अष्टमी को जानकी जयंती और सीता अष्टमी के नाम से जाना जाता है ।

 महाशिवरात्रि

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान भोलेनाथ की आराधना का सबसे बड़ा महापर्व महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं ।

  होली

फाल्गुन पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है इस दिन होलिका पूजन कर सांय के समय होलिका दहन किया जाता है । होली दहन के अगले दिन रंग वाली होली खेली जाती हैं ।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ

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स्वामी विवेकानंद एक ऐसे प्रखर युवा संन्यासी थे, जिनके विचारों को अपनाकर हम जीवन के मर्म को समझ सकते हैं। स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्त्रोत समझ सकते हैं, आदर्श हैं।

उन्होंने सदैव अपने विचारों से व कार्यो से लोगो का मार्गदर्शन किया।

उन्होंने मात्र 31 साल का जीवन जिया, इसके बावजूद उन्होंने अपने विचारों व कार्याे से पूरे विश्व को एक नई दिशा प्रदान की। उनके विचार शाश्वत हैं, प्रासंगिक हैं।

उनके ऐसे ही कुछ विचारों को अपने जीवन में अपनाकर हम न केवल स्वयं का, बल्कि अनेकों का कल्याण कर सकते हैं। इनमें से कुछ विचार इस प्रकार हैः-

1 आत्मविश्वासी बनें

स्वामी विवेकानंद के अनुसार-आस्तिक वही है, जो खुद पर विश्वास करे। कोई व्यक्ति भगवान पर विश्वास करता है, लेकिन खुद पर विश्वास नहीं करता है, तो वह नास्तिक है। तात्पर्य यह है कि आत्मविश्वास सबसे महत्वूपर्ण है। स्वयं पर भरोसा रखने से ही व्यक्ति अपने जीवन में कोई कार्य कर सकता है।

2 स्वस्थ रखें तन-मन

आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने तन और मन को मजबूत नाने की शिक्षा दी है। उन्होनें कहा है- गीता वीरों के लिए है, कायरों के लिए नहीं अर्थात्- ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले शरीर और मन को मजबूत बनाओ।

3 हीनता-बोध को दूर करें

स्वामी विवेकानंद ने लोगों को हीनभावना दूर करने के लिए शिक्षा दी है। उनका कहना था- हम स्वयं को शरीर नहीं, आत्मा समझें।

ऐसी आत्मा, जो शक्तिशाली परमात्मा का अंश है। इससे हीनता-बोध समाप्त होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए कभी भी ऐसी सोच नह रखें कि मैं कमजोर, पापी या दुःखी हूँ ।

4 संयम-अनुशासन रखें

खुद पर नियंत्रण रखना संयम कहलाता है। संयमी व्यक्ति सारे व्यवधानों के बीच भी अपने कार्य को सहजता से करते हुए आगे बढ़ता रहता है।

सेवा की भावना, शांति, कर्मठता आदि गुण, संयम से आते हैं। संयमी व्यक्ति तनाव से मुक्त होता है, इसलिए वह हर काम गुणवत्ता से करता है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है- ‘‘किसी भी क्षेत्र में शासन वही व्यक्ति कर सकता है, जो खुद अनुशासित होता है।‘‘

5 भय को दें तिलांजलि

इस ऐहिक जगत में अथवा आध्यात्मिक जगत में भय ही पतन तथा पाप का कारण है।

भय से ही दुःख होता है, यही मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी बुराई होती है और भय होता क्यों है? आत्मस्वरूप के अज्ञान के कारण हममें से प्रत्येक सम्राटों के सम्राट का भी उत्तराधिकारी है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार – हमेशा यह सोचें कि मेरा जन्म कोई बड़ा काय्र करने के लिए हुआ है। यह सोचकर बिना किसी से भयभीत हुए, अपने कार्य को ईश्वर का आदेश समझकर करें।

भय तब दूर हो जाएगा, जब हम खुद को शाश्वत आत्मा मानेंगे, नश्वर शरीर नहीं।

6 स्वावलंबी बनें

स्वामी विवेकानंद का कहना था- भाग्य पर भरोसा नह करें, बल्कि अपने कर्माे से अपना भाग्य खुद गढ़ें।

उठो, साहसी और शक्तिमान बनो, इसमें उन्होंने आत्मनिर्भर बनने का सूत्र दिया है।

स्वामी विवेकानंद का कहना था- सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है। तुम्हीं अपने मददगार हो, कोई दूसरा तुम्हारी मदद नहीं कर सकता ।

भगवान भी उसी की मदद करता है, जो अपनी मदद खुद करता है। इसलिए स्वावलंबी बनें।

7 सेवा परमो धर्मः

स्वामी विवेकानंद ने निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने को सबसे बड़ा कर्म माना है, क्योंकि सेवा भाव के उदय होने से व्यक्ति दूसरों के दुःखों को दूर करने की चेष्टाा में अपने दुःखों या परेशानियों को भूल जाता है और इससे उसकी तन-मन की सामथ्र्य भी बढ़ती है।

8 आत्मशक्ति जगाएँ

स्वामी विवेकानंद के अनुसार-आत्मा परम शक्तिशाली है, यही ईश्वर है। इसलिए अपने आत्मतत्त्व को पहचानकर उसकी शक्ति को जगाएँ।

तब आप स्वंय को ऊर्जावान महसूस करेंगे।

असफलता से परेशान होकर अपने प्रयासों को छोंडें नही।

उपनषिद् में भी ऐसा ही कहा है-‘उत्त्ष्ठित जाग्रत प्रात्य वरान्निबोधत‘- अर्थात उठो, जागो और लक्ष्यप्राप्ति होने तक रूको मत।

9 दुर्बलताओं को त्यागें और शक्तिमान बनें

स्वामी विवेकानंद के अनुसार- उपनिषदों का प्रत्येक पृष्ठ मुझे शक्ति संदेश देता है।

यह चिंतन विशेष रूप से स्मरण रखने योग्य है, समस्त जीवन में मैंने यही महाशिक्षा प्राप्त की है। उपनिषद् करते हैं- हे मानव! तेजस्वी बनो, दुर्बलता को त्योगो।

स्वामी विवेकानंद का कहना था- समस्त शक्ति तुम्हारे भीतर है, तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, ऐसा विश्वास करो।

यह मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो। तुममें सारी शक्ति अंतर्निहित है। तत्पर हो जाओ और तुममें जो देवत्व छिपा हुआ है, उसे प्रकट करो।

10 मनुष्य बनें

हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य बन सकें। हमें ऐसे सिद्धांतों की जरूरत है, जिनसे हम मनुष्य हो सकें। हमें ऐसी सर्वांगीण शिक्षा की आवश्यकता है, जो हमें मनुष्य बना सके।

11 सत्य को पहचानें

जो भी तुमको शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल बनाए, उसे जहर की भाँति त्याग दो।

उसमें जीवनीशक्ति नहीं है, वह कभी सत्य नहीं हो सकता। सत्य तो बलप्रद है, वह पवित्र है, वह ज्ञानस्वरूप है।

सत्य तो वह है- जो हमें शक्ति दे, जो हृदय के अंधकार को दूर कर दे।

12 कार्य में हों तत्पर

मन की प्रवृत्ति के अनुसार कार्य मिलने पर अत्यंत मूर्ख व्यक्ति भी उसे कर सकता है, लेकिन सब कामों को जो अपने मन के अनुकूल बना लेता है, वही बुद्धिमान है। कोई भी काम छोटा नहीं है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार- संसार में जब आए हो, तब एक स्मृति छोड़कर जाओ। कितने दिनों के लिए यह जीवन है? इसलिए अपने कार्यों में लग जाओ।

वरना पेड़-पत्थर भी तो पैदा होते तथा नष्ट होते हैं। इसलिए चुपचाप बैठे रहने से कार्य न होगा। निरंतर उन्नति के लिए चेष्टा करते रहनी होगी।

13 धार्मिक झगड़ों में न पड़ें

स्वामी जी का कहना था कि धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो।

धर्म संबंधी सभी झगड़ा-फसादों मे से केवल यह प्रकट होता है कि यहाँ आध्यात्मिकता नहीं है।

धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते है। जब पवित्रता नहीं रहती, तब आध्यात्मिकता विदा हो जाती है और आत्मा को नीरस बना देती है, तब झगड़े शुरू होते है।

14 दान दें

दान से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। सबसे अधम मनुष्य वह है, जिसका हाथ सदा खिंचा रहता है और जो अपने ही लिए सब पदार्थो को लेने मे लगा रहता है और सबसे उत्तम पुरूष वह है, जिसका हाथ हमेशा खुला रहता है।

हाथ इसीलिए बनाए गए हैं कि सदा देते रहो। तुम स्वंय भूखों मर रहे हो हो तो भी अपनी रोटी का अंतिम टुकड़ा दूसरे को दे डालो।

यदि दूसरे को देकर भूख से तुम्हारी मृत्यु भी हो जाए तो क्षण भर में ही तुम मुक्त हो जाओगे, तत्क्षण पूर्ण हो जाओगे, उसी क्षण तुम ईश्वर हो जाओगे।

खुद को कैसे निखारें -परिष्कार

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अनेक वर्षो तक जब कोयला घिसा जाता है, तब वह हीरा कहलानो की योग्यता अर्जित कर पाता है।

उसकी कोयले का उपयोग बंद कमरे में अँगीठी जलाने में करने वाले उसकी विषैली वायु का शिकार होते हैं, जबकि परिष्कार की प्रक्रिया से गुजरकर वही प्राणघातक कोयला, प्रतिष्ठा के प्रतीक हीरे में बदल जाता है।

लोहा, राँगा की सामान्य कीमत ज्यादा नहीं होती, पर जब उन्हें तपा दिया जाता है तो वो स्टील से लेकर, औषधि-रसायन व मिंट के सिक्के बनाने के उपयोग में लिए जाते है।

नल से निकलता पानी कपड़े धोने के काम आता है तो वही पानी डिस्टिलेशन की प्रक्रिया से गुजरने के बाद डिस्टिल्ड वाटर बन जाता है और महँगे दामो पर बिकता है।

परिष्कार की प्रक्रिया तुच्छ तत्वों को महान बना देती है।


यही सिद्धांत मनुष्यों पर भी लागू होता है। बिना परिष्कार के मानव जीवन एक विडंबना बनकर रह जाता है।

सामान्य मनुष्य, यों ही अपना जीवन तुच्छ प्रयोज्यों के लिए लगाते दिखाई पड़ते है, पर जब उन्हें परिष्कार, परिशोधन व परिमार्जन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है तो फिर वे ही मनुष्य अपनी गणना ऋषि-मुनियों व अवतारी सत्ताओं के रूप् में कराते दीख पड़ते है।

हर व्यक्ति, अपने जन्म के साथ इसी संभावना को लेकर आता है। उसके जीवन में देवत्व का, ऋषित्व का उदय-परिष्कार से भरी जीवन-साधना से गुजरने पर ही होता है।

हमारे व्यक्तित्व का परिशोधन, हमारे चिंतन का परिमार्जन और हमारी भावनाओं का परिष्कार-ये त्रिवेणी ही मानवीय गौरव-गरिमा का आधार है।

तप साधना के इन सौपानों से गुजरने वाले ही महानता का पर्याय बन जाते है।

How to refine yourself

जीवन युद्ध है, इसलिए परमात्मा से जुड़े रहें।

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जीवन में जब कोई संकट आता है तो हमें परमात्मा की निकटता जल्दी मिल जाती है।

दुख में मनुष्य भगवान के और निकट चला जाता हैं जब भगवान के निकट जाएं, उनसे बात करें तो उसमें करूणा हो और यदि कुछ मांगना हो तो कृपा मांगे।

श्रीराम-रावण युद्ध में कुंभकर्ण का ऐसा आतंक छाया कि वानर घबराकर भागने लगे।

ऐसा लगा कि थोड़ी देर और कुंभकर्ण जीवित रहा तो कोई वानर नही बचेगा।

तब वे रामजी के पास गए कि रक्षा किजिए ।

यहां तुलसीदासजी ने लिखा-

सकरून बचन सुनत भगवाना। चले सुधारि सरासन बाना।।

वानरो की करूणाभरी बात सुनते ही भगवान धनुषबाण उठाकर चले।

जीवन में कभी ऐसा संघर्ष आ जाए तो परमात्मा से करूणायुक्त चर्चा कीजिए।

उनसे कहना हम आपसे सांसारिक चीजे नही मांगते , वह तो हमें ही अर्जित करना है।

आप तो बस, कृपा कर दीजिए। यहां शब्दों पर ध्यान दीजिए कि ‘करूणाभरे वचन सुनते ही भगवान चल पड़े ‘।

आगे लिखा है-

‘राम सेन निज पाछें घाली ‘।

भगवान इतनी सुरक्षा देगा कि हमको अपने पीछे कर लेगा।

जीवन भी ऐसा ही युद्ध है, इसलिए जिंदगी में परमात्मा से जुड़े रहिए।

शेर की गुफा में हाथी के मस्तक पर जा गजमुक्त मणि होती है, वह फिर भी मिल सकती है, लेकिन गीदड़ के घर में जाएंगे तो मांस-हड्डियों के अलावा कुछ नही मिलेगा।

इसलिए संबंध रखिए अच्छे लोगो से, महापुरूषों से, उस ईश्वर से। वह परमशक्ति कुछ ऐसा देगी जो आपके जीवन युद्ध में काम आएगा।

सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के लिए जरूरी होता है कि हर कदम पर मेहनत की जाए

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एक बार एक युवक ने अपने गुरूजी से कहा कि महाराज, मैं जीवन का सर्वोच्च शिखर पाना चाहता हूँ, लेकिन इसके लिए मैं निचले स्तर से शुरूआत नही करना चाहता।

क्या आप मुझे कोई ऐसा रास्ता बता सकते हैं, जो मुझे सीधा शिखर पर पंहुचा दे।

गुरूजी ने उसके कहा कि वह उसे ऐसा रास्ता अवश्य बताएंगे।

लेकिन इससे पहले उसे आश्रम के बगीचे से सबसे सुंदर फूल लाकर देना होगा।

लेकिन, एक शर्त है कि जिस फूल को पीछे छोड़ जाओगे, उसे पलटकर नही तोड़ोगे।

युवक मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ कि अब उसे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने का रास्ता मिल जाएगा, क्योकि गुरूजी की परीक्षा बहुत ही आसान थी।

युवक इस शर्त को स्वीकार करके आश्रम के बगीचे में चला गया। वहां एक से एक सुंदर फूल खिले हुए थे।

जब भी वह किसी फूल को तोड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाता तो उसे किसी अन्य पौधे पर लगा फूल इससे भी अधिक संुदर नजर आता और वह उसे छोड़कर आगे बढ़ जाता।

उसके साथ लगातार ऐसा हो रहा था। फूल तलाशते हुए उसे पता भी नही चला कि कब वह बगीचे के आखिरी कोने पर पहंुच गया। यहां पर जो फूल लगे हुए थे।

वे उसके द्वारा छोड़े दिए गए फूलों की तुलना बहुत ही कम सुंदर थे । शर्त के मुताबिक वह छोड़ दिए गए फूलो मे से किसी को भी अब नही तोड़ सकता था और ये फूल सबसे सुंदर नही थेे।

इसलिए वह खाली हाथ ही गुरूजी के पास लौट गया।

उसे खाली हाथ देखकर गुरूजी ने पूछा कि क्या हुआ, फूल नही लाए?

युवक ने कहा कि महाराज, मैं बगीचे के सुन्दर और ताजा फूलों को छोड़कर आगे और आगे बढ़ता रहा, मगर अंत में केवल साधारण फूल ही बचे थे।

आपने मुझे पलटकर फूल तोड़ने से मना किया था, इसलिए मै ताजा और सुन्दर फूल नही तोड़ पाया इस पर गुरूजी ने मुस्कुराकर कहा कि हमारा जीवन भी इसी तरह से है।

इसमे शुरूआत से ही कर्म व मेहनत करते चलना चाहिए। कई बार अच्छाई और सफलता प्रारंभ के कामों और अवसरों में ही छिपी रहती है। जो अधिक और सर्वोच्च की लालसा से आगे ही बढ़ते रहते है, अंत मे उन्हे खाली हाथ लौटना पड़ता है।

उच्च शिखर पर पहुंचने वाले लोग हर सीढ़ी पर कढ़ी मेहनत करते है। क्योंकि, न जाने किस कदम पर किया गया काम सफलता की वजह बन जाए। इसलिए जरूरी है कि हर कदम पर पूरी मेहनत की जाए ।

दुख आना और होना दोना अलग हैं

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‘सुखी बसै संसार सब दुखिया रहे न कोय। यह अभिलाषा हम सबकी सो भगवन् पूरी होय।।

‘ इस पंक्ति को भक्त लोग बार-बार दोहराते है।

इसमें भक्त भगवान से कहता है- हे प्रभु, इस संसार को सुखी कर दो और ऐसी कृपा बरसाओ कि कोई दुखी न रहे भक्त का तो काम ही है मांगना, पर इस बात को सुनकर भगवान भी हंसते हुए कहते होंगे- तेरा भाव तो अच्छा है।

क्या बुराई है सुख मांगने मे। भगवान इसलिए हंसते हैं कि देखो, दुख तो आएंगे।

दुनिया में कोई सुख ऐसा नही बना जो बिना दुख को साथ लाए अकेला आया हो।

लेकिन, दुख आना और दुखी होना, इसमे फर्क है। दुख आए तो आने दो, यदि मुझसे जुड़े हो तो दुखी होने से बचे?

संतों ने कहा है- ईश्वर का स्मरण जब-जब बढ़ाओगे तब-तब दुखी होने से बच जाओगे ।

जब प्रभु स्मरण का प्रकाश प्रवेश करता है तो दुख रूपी अधंकार को जाना ही पड़ता है। ईश्वर के स्मरण का लाभ होता है कि वेदना, थकान, अशांति, पीड़ा, बेचैनी इन सबको हम अच्छी तरह से जान जाते हैं।

कोई लगातार ठीक से प्रभु स्मरण करे तो उसे एक बात समझ में आ जाती है कि हमारा शरीर अलग है, मन अलग है और आत्मा अलग है, दुखों का केन्द्र मन हैं।

ईश्वर के स्मरण से मन को समझना आसान हो जाता है और जिसने मन को समझ लिया, वह यह बात भी समझ जाएगा कि दुख आना अलग बात है, दुखी हो जाना बिलकुल अलग बात हैै।

भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौशल्या हितकारी

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भये प्रगट कृपाला bhaye pragat kripala din dayala

भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौशल्या हितकारी।
हर्षित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप विचारी॥ १ ॥

लोचन अभिरामा, तनु घनश्यामा, निज आयुध भुज चारी।
भूषण गल माला, नयन विशाल, शोभासिंधू खरारी॥ २ ॥

कह दुई कर जोरी, अस्तुति तोरी, कही बिधि करू अनंता।
माया गुण ज्ञानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥ ३ ॥

करुना सुखसागर, सुब गुण आगर, जेहि गावाहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयौ प्रगट श्रीकंता॥ ४ ॥

ब्रमांड निकाय, निर्मित माया, रोम रोम प्रति वेद कहे।
मुम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहे॥ ५ ॥

उपजा जब गयाना, प्रभु मुस्काना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहे।
कही कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सूत प्रेम लाहे॥ ६ ॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजै शिशु लीला, अति प्रियशीला, यह सुख परम अनूप॥ ७ ॥

सुनी वचन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावही, हरिपद पावही, तेहिं ना परहिं भवकूपा॥ ८ ॥

दोहा :-
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार |
निज इच्चा निर्मित तनु माया गुण गोपार ||

Source

Ramayan Choupai