Home मन की आवाज व्यस्त शब्द को मिटाएं, वह आपकी इमोशनल हेल्थ खराब करेगा

व्यस्त शब्द को मिटाएं, वह आपकी इमोशनल हेल्थ खराब करेगा

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आजकल हम तनाव होने के बाद चीजों का ध्यान रख रहे हैं। पहले से ध्यान रखें तो किसी को तनाव होगा ही नहीं।

जो लोग ज्यादातर देश के बाहर यात्राएं करते हैं तो उनको बाहर जाकर एक अंतर दिखाई देता है कि वही ज्यादातर लोग अकेले रहते है।

सड़कों पर भी ज्यादातर अकेले लोग दिख जाते है। शाम को छः बजे लाइट बंद हो जाती है। उनके यहां अकेले रहना अवसाद और बैचेनी का कारण है।

लेकिन हमारे यहां इसका क्या कारण है? यहां तो मुश्किल से पांच मिनट भी अकेले रहने को नहीं मिलता। ये हमारा अच्छा भाग्य है कि हम भारत देश में है। जहां हम कभी भी अकेले नहीं होते है।

हमारे साथ हमेशा एक दिव्य शक्ति होती है। लेकिन फिर ऐसे माहौल में सबसके बीच रहते हुए भी कभी-कभी अकेले हो जाते है। आज हम खुद से एक प्रतिज्ञा करते हैं कि हम अपने भावनात्मक स्वास्थ्य को 10 प्रतिशत पर लाते है।

डब्ल्यूएचओ ने पिछले साल कहा था कि चार में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। फिर डब्लयूएचओ ने कहा 20220 तक मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण डिप्रेशन होगा।

लेकिन आज अगर हम यह निर्णय लें कि हम अपनी इमोशनल हेल्थ को 10 पर लेकर आएंगे और आने आसपास सारे जो हैं उनकी भी इमोशनल हेल्थ को 10 पर लेकर आएंगे।

तो 2020 के अंत तक कम से कम भारत से डिप्रेशन खत्म हो जायेगा और यह हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए। हमने मेहनत करके अपने देश से पोलियों खत्म किया है।

उसी तरह हमें देश का थोड़ा ध्यान रखकर डिप्रेशन को भी पूरी तरह से खत्म करना है। यह हम सबसकी जिम्मेदारी है कि तनाव, अवसाद और चितंता न मुझे हो और न ही अन्य किसी को हो।

औरो का ध्यान रखने से पहले महत्वूर्ण यह है कि पहले अपना ध्यान रखें। आजकल हम किसी को कहते हैं थोड़ा सा टाइम निकालो सुबह थोड़ी देर मेडिटेश्ज्ञन करो।

इसके जवाब में एक नकारात्मक ऊर्जा वाला शब्द सबके मुंह पर होता है कि मैं बहुत व्यस्त हूं और दूसरा कि मेरे पास वक्त नहीं हैं ये एक शब्द इस समय बहुत सारे दुखों का कारण है।

हम पूरे दिन में न जाने कितनी बार इस शब्द का प्रयोग करते है। बार-बार हम अपने आपको कह रहे है मेरे पास समय नहीं है।

इस वर्ष हम अपनी एक सोच को बदल सकते है व्यस्त शब्द को सदा के लिए खत्म कर देते है। ये शब्द हमारी इमोशनल हेल्थ को नुकसान पहुंचा रहा है।

समय उतना ही है सभी के पास। लेकिन समय के बारे में हमारा एटीट्यूड कैसा है वो हरेक का अलग अलग होता है।

कुछ लोग 18 घंटे काम करके भी बड़े हल्के रहते हैं और कुछ लोग कुछ न कुछ करते हुए भी कहते है मेरे पास वक्त नहीं है।

वो घर पर रिटायर हो चुके हैं कुछ नहीं कर रहे है लेकिन ऐसा लगेगा कि इनसे ज्यादा कोई व्यस्त नहीं है। दिक्कत मन के अंदर है बाहर नहीं। अब हमें सकारात्मक ऊर्जा वाले शब्दों को इस्तेमाल करना है।

बी.के. शिवानी, ब्रह्याकुमारी