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हम प्रकृति और समाज से बहुत कुछ पाते हैं, उसके बदले हमें भी उसे कुछ लौटाना चाहिए

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बहुत समय पहले की बात है कि एक अत्यंत ही समर्थ व युवा राजा था उसे अपनी प्रजा व राज्य की बहुत चिंता रहती थी। इसलिए वह वेश बदलकर अपने राज्य में घूमता रहता था।

और लोगों से उनकी तकलीफों के बारे में जानता था, ताकि वह उनकी मदद कर सके।

एक दिन दोपहर में जब वह घोड़े पर सवार होकर एक गांव से गुजर रहा था, तो उसने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति तपती धूप में फलों के पौधे रोप रहा है।

राजा उस बुजुर्ग के पास गया और उसने उसकी उम्र पूछी। बुजुर्ग ने कहा महाराज मुझे सही तो नहीं पता पर 90 साल से अधिक ही होगी।

राजा ने उससे कहा श्रीमान आप जिन फलों के पौधों को लगा रहे है, उन पर फल आने में कम से कम चार साल का वक्त लगेगा।

क्या आप उनका सेवन करने के लिए जीवित रह पाएंगे? बुजुर्ग ने कहा कि महाराज हमने बचपन से लेकर अब तक जो फल खाए, उन पेड़ों को किसी ओर ने लगाया था।

अगर उन्होंने ये सोचा होता कि इसके फल तो कोई और खाएगा तो वे भी शायद ही पेड़ लगाते। इसलिए जिस तरह से हमारे बुजुर्गों ने वे पेड़ लगाए थे, वैसे ही मैं भी आने वाली पीढ़ी के लिए इन पौधों को लगा रहा हूँ ।

शायद मेरे ही जीवन में इन पर फल भी आ जाए। अगर हम सिर्फ उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल ही करते रहेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ भी नए संसाधन नहीं जुटाएंगे तो यह गलत होगा। राजा बुजुर्ग की बात से बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपने राज्य में हर व्यक्ति के लिए कम से कम एक पौधा लगाना अनिवार्य कर दिया।

राजा बुजुर्ग की बात से बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपने राज्य में हर व्यक्ति के लिए कम से कम एक पौधा लगाना अनिवार्य कर दिया।

राजा बुजुर्ग की बात से बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपने राज्य में हर व्यक्ति के लिए कम से कम एक पौधा लगाना अनिवार्य कर दिया।

सीखः- हममें से सभी लोग समाज व प्रकृति से बहुत कुछ हासिल करते है। यह हमारा दायित्व होना चाहिए कि हम समाज से जो भी हासिल करते हैं, उसके बदले में हमें भी उसे कुछ न कुछ देना चाहिए।