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सभी को समान अवसर देती है प्रकृति ,यह हम पर निर्भर है कि हम उससे कैसे अपना भाग्य बनाते है

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बहुत समय पहले की बात है एक गरुजी के आश्रम मेंअनेक छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे।

हर रोज सुबह की कक्षा के बाद सवाल जवाब का सत्र होता था।

यहां वे शिष्यों की जिज्ञासा का समाधान करते थे। इसके लिए वे प्रयोगों के माध्यम से सीख देते थे।

एक दिन एक शिष्य ने उनसे सवाल किया कि गुरुजी आप हम सभी को समान चीजें सिखते हो,

लेकिन यहां से निकलने के बाद सभी लोग एक जैसा काम नहीं करते।

अगर वे जैसा काम करते भी हैं तो उसके परिणाम अलग-अलग होते हैं।

यह सुनकर उन्होंने छात्रों से एक आलू , एक अंडा और एक गुड़ की डली लाने को कहा।

उन्होंने छात्रों से पूछा कि आलू कैसा है ? सबने कहा कि कठोर है। उसके बाद उन्होंने अंडे के बारे में पूछा तो सभी ने कहा कि बाहरी सतह कठोर होने के बावजूद यह भीतर से बहुत नरम है।

गुड़ को सभी ने न बहुत नरम और न बहुत कठोर बताया। गुरुजी ने इन तीनों को तीन एक जैसे बर्तनों में पानी भरकर उसमें डालकर चूल्हे पर रखने को कहा।

पानी में काफी देर तक उबालने के बाद गुरुजी ने शिष्यों से तीनों बर्तनों को लाने के लिए कहा।

इसके बाद उन्होंने आलू को बाहर निकालकर शिष्यों को अंडा और एक गुड़ की डली लाने को कहा। उन्होंने शिष्यों से कहा कि वे तीनों बर्तनों को गौर से देखें।

छात्रों से पूछा कि आलू कैसा दिख रहा है? सबने कहा कि पहले की तुलना में नरम हो गया है |

उसके बाद उन्होंने अंडे के बारे में पूछा तो सभी ने पहले की तुलना में कठोर हो गया है।

गुड़ पानी में घुल गया था और उसने पुरे पानी को मीठा कर दिया था |

अब गुरु जी ने समझाया कि तीन अलग अलग चीजों को समान विपत्ति से गुजारा गया यानी तीनों को समानरूप से समान अवधि तक पानी में उबाला गया |

लेकिन. बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली। आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और गुड़ ने भी अपना रूप बदल लिया

उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लाग होती है।

सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें भी आती हैं, लेकिन यह पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानीका सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलनेके बाद क्या बनते हैं।

सीख : प्रकृति किसी से भी भेदभाव नहीं करती और सभी को समानअवसर देती है, लेकिन यह हम पर निर्भर है कि हम उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य कैसे बनाते है ।