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श्री कृष्णा और उनकी लीलाएं

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भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार है ।

भगवान श्री कृष्ण का पूरा बचपन अद्भुत लीलाओं से भरा है वही युवा अवस्था की कथाएं भी प्रसिद्ध है।

कभी वह एक राजा के रूप में प्रजा पालक बनते हैं कभी भगवान के रूप में भक्तों के पालनहार, तो युद्ध के समय एक कुशल नीतिज्ञ तथा रणनीति कार उनके जीवन की सभी अवस्थाओं के प्रसंग परिस्थिति अनुसार अलग रूप को दिखा जन-जन को प्रेरित करते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार हिंदू धर्म के लोगों के लिए बेहद खास है। क्योंकि इस दिन अपरंपार लीलाएं करने वाले भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।

जन्माष्टमी (janmashtami)

जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।

इस वर्ष यह तिथि 12 अगस्त 2020 को है। सभी हिंदू (विशेष रुप से वैष्णव संप्रदायी) इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं, उन्हें झूला झुलाते हैं तथा अगले दिन प्रात काल तक व्रत करते हैं।

मंदिरों में श्रृंगार तथा रोशनी की जाती है। तथा भगवान श्री कृष्ण के जीवन प्रसंगों की झांकियां सजाई जाती है। रात्रि में 12:00 बजे शंख तथा घंटों की ध्वनि से जन्मोत्सव की खबर चारों ओर दिशा में गूंजती है।

भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती है। और प्रसाद (पंजीरी/पंचामृत) का वितरण किया जाता है। कई शहरों में दहीहंडी प्रतियोगिता भी होती है।

हर साल की तरह इस वर्ष भी जन्माष्टमी का शुभ पर्व मथुरा-वृंदावन और द्वारिका में 12 और जगन्नाथ पुरी में 11 अगस्त को मनाया जाएगा|

भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव समूचे देश के लिए हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

वैष्णव मत के मुताबिक 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना श्रेष्ठ है, इसलिए मथुरा (उत्तर प्रदेश) और द्वारिका (गुजरात) दोनों जगहों पर 12 अगस्त को ही जन्मोत्सव मनेगा।

कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। कन्हैया के जन्म स्थान मथुरा और वृंदावन में इस पर्व की खास रौनक देखने को मिलती है।

भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना जाता है वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के सेकड़ो रूप और रंग है लेकिन आज हम आपको उनके कुछ रूपको के बारे में बताते है तो चलिए जानते है |

बाल कृष्ण

श्रीकृष्ण का जन्म अद्भुत परिस्थितियों में हुआ है उनके बाल लीलाओ पर कई किताबे लिखी गई है। बाल लीलाओ का श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण का बचपन गोकुल और वृदांवन में बीता। बाल कृष्ण को माखन चोर भी कहा जाता है |

माखन चोर के नाम से जाने जाने वाले भगवान कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में कई ऐसी लीलाएं की हैं, जिसके बारे में सुनकर सभी उनके मुरीद हो जाते हैं।

भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही नटखट थे। जितना वो नंद बाबा और यशोदा जी को परेशान करते थे। उतना ही वो गांव वालों को भी अपने नटखट अंदाज और लीलाओं से परेशान करते थे।

कृष्ण जी अपने दोस्तों के साथ गांव वालों के माखन चुरा कर खा जाते थे। जिसके बाद गांव की महिलाएं और पुरूष कृष्ण की शिकायत लेकर पहुंच जाते थे। तब उन्हें अपनी मां की डांट खानी पड़ती थी।

नन्हें कृष्ण को कोई नहीं जानता था कि वो भगवान हैं। और यशोदा जी उनकी शिकायत पर उन्हें खूब मारती थीं। और बालक कृष्ण उनकी मार का भरपूर आनंद उठाते थे। सूरदास ने इस बर बड़ा हीू सुंदर वर्णन किया है.…

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,

भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।

गोपाल कृष्ण – भगवान श्रीकृष्ण  ग्वाले थे। और  गायों को चराने जाते थे। इसलिए उन्हें गोपाल भी कहा जाता है |

श्री कृष्ण की लीलाये

कारागार में भगवान श्री कृष्ण के जन्म की प्रथम लीला

श्री कृष्ण का जन्म उनके ही मामा के कारागार में हुआ था। दरअसल कंस की एक बहन देवकीथी, जिसका विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय जब वो अपनी बहन को लेकर जा रहा था।

तभी आकाशवाणी हुई की देवकी औऱ वासुदेव की आठवी संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगा। इससे कंस बहुत घबरा गया और उसने अपनी बहन और उसके पति वासुदेव को जंजीरों में जकड़ कर कारागार में डाल दिया।

इसके बाद वासुदेव और देवकी को एक-एक कर सात संताने हुई। और कंस ने उन सबको मार दिया। आखिर में जब उनकी आठवीं संतान यानी कृष्ण का जन्म होने वाला था। उस समय भी कंस ने खास इंतजाम किया था।

लेकिन प्रभु की लीला के आगे सारे पहरेदार खड़े-खड़े सो गए। कारगारों के दरवाजे अपने आप खुल गए। जिस समय कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था।

भगवान के निर्देशानुसार कष्ण जी को रात में ही वासुदेव ने मथुरा के कारागार से गोकुल में उन्हे नंद बाबा के घर ले गए जहां नन्द बाबा की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी। वासुदेव बालक कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए।  

कृष्ण के मुँह में दिखा संपूर्ण ब्रह्मांड

 भगवान् श्री कृष्ण की बाल लीला की कथा है – एक सुबह कृष्ण अपने मित्रों के संग खेल रहे थे। बलराम ने देखा कि कृष्ण ने मिट्टी खा ली है।

वे और उनके मित्र माँ यशोदा से इसकी शिकायत करने पहुँचे – “जल्दी चलो माँ, कृष्ण मिट्टी खा रहा है।” यशोदा माता तुरंत दौड़ कर गई और कृष्ण का हाथ पकड़कर करीब लाकर पूछा – “क्या तुमने मिट्टी खायी?” कृष्ण ने माँ की ओर देखा और मासूमियत से कहा, “नहीं तो! बलदाऊ और उनके मित्र झूठ बोल रहे हैं।

देखो मेरा मुँह, क्या मैंने मिट्टी खाई है? ” ऐसा कहकर कृष्ण ने अपना मुँह खोल दिया। माता यशोदा को मिट्टी तो नज़र नहीं आई, इसके स्थान पर कृष्ण के मुँह में यशोदा माता को संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन हो गए – पर्वत, द्वीप, समुद्र, ग्रह, तारे.सम्पूर्ण सृष्टि दिखाई दी।

माता यशोदा ने यह  देखा कि वह कृष्ण को गोद में उठाए दूध पिला रही है।वे अचंभित थी। कृष्ण ने अपना मुंह बंद कर लिया और मीठी मुस्कान भर मां की ओर देखने लगा।

अपने नन्हे पुत्र के मुंह में वह  विस्मय से भर देने वाला चमत्कारी दृश्य देखने के बाद भी मां यशोदा के लिए तो वह नन्हा घुटने चलता लल्ला  ही  था। मां यशोदा का मन अपने गोपाल के लिए प्रेम से भर गया था उन्होंने बड़ी ही ममता के साथ कृष्ण को अपनी गोदी में उठा लिया।

कालिया नाग का वध

एक बार श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे। और अचानक गेंद को यमुना नदी नें चली गई । गेंद के डूबने पर सभी साथियों ने कृष्ण जी को गेंद निकाल कर लाने को कहा।

जिसके बाद वो तुंरत कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े। और फिर अपने भाई बलराम के साथ मिल कर नदी में जहरिले कालिया नाग का वध किया।

गोपाल की गाय लीला

जब जगत के पालनहार श्री विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया, तब देवी देवताओं ने इनकी लीला देखने के लिए गोप गोपियों का अवतार लिया था।

एक कामधेनु नाम की गाय थी। जिसके मन में श्रीकृष्ण की सेवा का विचार आया। उसने अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनाई और वह नंद बाबा की गौशाला में जाकर शामिल हो गई। भगवान कृष्ण को भी इस गाय से बहुत प्रेम था।

एक दिन बहुला की परीक्षा लेने का ख्याल कृष्ण के मन में आया। बहुला जब खेत में घास चल रही थी। तब भगवान ​कृष्ण सिंह रूप में प्रकट हो गए। सिंह को अपने सामने खड़ा देख वो बहुत भयभीत हो गई।

मगर फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और कहा कि हे वनराज उसका बछड़ा बहुत भूखा हैं उसे दूध पिलाकर वो सिंह का आहार बनने वापस आ जाएगी। सिंह ने कहा कि तुम तो मेरा आहार हो तुम्हें  कैसे जाने दूं। अगर तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाउगा।

इस पर बहुला ने धर्म और सत्य की शपथ ली और कहा कि वो जरूर वापस आएगी। जब बहुला ने शपथ ली तो उससे प्रभावित होकर भगवान कृष्ण ने गाय को जाने दिया। बहुला ने अपने बछड़े को दूध पिलाया और सिंह के पास वन वापस आ गई।

उसकी सत्यनिष्ठा देख भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और अपने असली रूप में आ गए। उन्होंने कहा, हे बहुला तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से गौ माता के रूप में भाद्रपद चतुर्थी तिथि के दिन तुम्हारी पूजा होगी। जो इस दिन तुम्हारी पूजा करेगा उसे धन और संतान का सुख प्राप्त होगा।

गोपियों संग रासलीला

भगवान श्री कृष्ण के बचपन से ही कई साथी थे। लेकिन उनका गांव की गोपियों से अलग ही रिश्ता था।  राधा, कृष्ण के बंसी के धुनों में रम जाती थी। वृंदावन अपने गांव में राधा कृष्ण ने खूब रासलीला की है

मधुवन में राधिका नाची रे,गिरधर की मुरलिया बाजी रे। जी हाँ,भगवान श्री कृष्ण की लीला नगरी वृन्दावन में श्रीकृष्ण की आज भी मुरली बजती है और राधारानी गोपियों संग नृत्य करती हैं।

ये सुनकर आपको अटपटा जरूर लगेगा पर वृन्दावन धाम के चमत्कारी निधिवन में ऐसे कई गहरे रहस्य छुपे हुए हैं। जिनको समझ पाना हर किसी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।

उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा जिले से करीब 15 किलोमीटर दूर बसे यमुना जी के निकट वृंदावन धाम के निधिवन को राधा-कृष्ण के रास के लिए जाना जाता है। इस अद्भुत वन वाटिका को लोग निधिवन और मधुवन के नाम से जानते हैं।

यह वन बड़ा ही अद्बभुत व रहस्यमयी है। जिसके बारे में माना जाता है कि यहां आज भी हर रात राधा-कृष्ण गोपियों संग रास रचाने के लिए आते हैं।

प्रेम लीला

भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं भारतीय जनमानस में रच बस गई है। उन्ही लीलाओं में उनकी प्रेम लीला भी शामिल है। भगवान श्री कृष्ण और राधा आध्यात्मिक प्रेम के प्रतीक बन गए हैं। दोनों एक दूसरे के हृदय में रहते हैं।

हालांकि एक बार ऐसा भी हुआ था कि जब राधा श्री कृष्ण से दूर दूर रहने लगी यहां तक कि राधा ने कृष्ण से बात करने से भी मना कर दिया।

उसका यह कारण था कि श्री कृष्ण ने कंस के भेजे हुए असुर अरिष्टासुर  का वध कर दिया था। अरिष्टासुर बैल का रूप धारण कर आया था। यही वजह थी कि राधा और अन्य गोपियों ने कृष्ण को गौ का हत्यारा मान लिया।

कृष्ण राधा को समझाए कि उन्होंने बैल को नहीं बल्कि एक असुर को मारा है। हालांकि राधा यह सुनकर भी नहीं मानी इसके बाद श्री कृष्ण ने अपनी ऐडी जमीन पर पटकी और वहां जल की धारा बहने लगी। जिससे एक कुंड बन गया।

श्री कृष्ण सभी तीर्थों से यहां आने के लिए कहा और सभी तीर्थ वहां उपस्थित हो गए। इसके बाद सभी कुंड में प्रवेश कर गए।

श्री कृष्ण ने इस कुंड  में स्नान किया स्नान के बाद उन्होंने कहा कि इस कुंड में स्नान करने वाले को एक ही स्थान पर सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य मिल जाएगा। इस घटना की निशानी आज भी गोवर्धन पर्वत की तलहटी में कृष्ण कुंड के रूप में उपस्थित है।

गोवर्धन पर्वत की लीला

 श्रीकृष्ण जब ब्रज में अपना बचपन व्यतीत कर रहे थे। तो उन्होंने कई लीलाएं की. श्रीकृष्ण ने लीला करते हुए पुतना और बकासुर जैसे राक्षसों का वध किया।  इन कामों से कृष्ण की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई।

ब्रजवासियों को भगवान श्रीकृष्ण पर अटूट विश्वास था. ब्रज के लोगों का मुख्य कार्य गौवंश का पालन और कृषि था।

एक बार ब्रज में लंबे समय तक बारिश नहीं हुई। लोगों को परेशानी होनी लगी। फसलें सूखने लगीं, लोगों के सामने जल का संकट खड़ा होने लगा, पशुओं के लिए भी पानी कम पड़ने लगा।.

तब लोगों ने देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा, पाठ और अनुष्ठान किए।लेकिन फिर भी इंद्र ने कृपा नहीं की। तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को वर्षा के लिए पर्वतों, वृक्षों और नदियों की पूजा करने के लिए कहा।

भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज के लोगोें को भरोसा दिलाया कि ऐसा करने से जरुर बारिश होगी।क्योंकि जब इन चीजों होगा तो प्रकृति अपने नियम को अपनाती है।

ब्रज के लोगों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी।भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भी इस पूजा में शामिल हुए।यह देखकर इंद्र को क्रोध आ गया. इंद्र को लगा कि ये लोग उनकी पूजा न करके पर्वत की पूजा करेंगे।

इस पर इंद्र ने लोगों को सबक सिखाने के लिए मूसलाधार बर्षा करा दी।बारिश से ब्रज डूबने लगा।‌ नदी, तालाब और झील पानी से उफन ने लगीं। लोग डर गए. घर डूबने लगे, जानवर परेशान होने लगे।लोगों को लगने लगा कि अब  जल में सब समा जाएंगे।

ब्रज डूबने लगा तो सभी लोगों ने तय किया कि इस समस्या से सिर्फ श्रीकृष्ण ही बचा सकते हैं, सभी लोग उनके पास पहुंचे और रक्षा करने की गुहार लगाई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड़ तोड़ने का निर्णय लिया और अपनी सारी शक्ति से अपनी छोटी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया।

लोग यह देखकर दंग रह गए और और सभी लोग उस पर्वत के नीचे आ गए।इस प्रकार से भगवान ने सभी ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचा लिया।

इंद्र यह दृश्य देख चकित रह गए। वे समझ गए कि कान्हा के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। शर्मिंदा होने के बाद इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत को भूमि पर रखने का अनुरोध किया।

तब भगवान ने पर्वत को नीचे रखा. इंद्र ने सभी व्रजबासियों को गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाने के लिए कहा। तभी से अन्नकूट पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हुई।

द्रोपति के राखी का मान

रक्षाबंधन को लेकर प्राचीन काल की एक और कथा प्रचलित है। यह कथा श्रीकृष्ण और द्रोपदी की है। इस कथा का वर्णन हम यहां कर रहे हैं। इस कथा में द्रोपदी के चीरहरण की गाथा है।

एक कथा के अनुसार, जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था तब उनकी उंगली कट गई थी। उनकी उंगली से बहुत रक्त बह रहा था। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी दी थी।

इसके बदले श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वो उनकी साड़ी की कीमत जरूर अदा करेंगे। यही कारण है कि श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उन्हें लौटाया और उनकी लाज बचाई थी।

महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था। हालांकि, युद्धिष्ठिर इस क्रीड़ा को हार गए थे। दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को जीत लिया था।

द्रोपदी को अपमानित करने के लिए दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया था। जहां एक तरफ द्रोपदी का अपमान हो रहा था। वहीं, भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता लोग यह सब मूकदर्शक बनकर देख रहे थे।

पूरी सभा में दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर-हरण किया। यह देखकर सभी मौन थे। वहीं, पांडव भी द्रोपदी की लाज नहीं बचा पा रहे थे। सभी को मौन देख द्रोपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण को आंखें बंद कर याद किया।

उन्होंने श्रीकृष्ण का आव्हान किया। उन्होंने कहा, “हे गोविंद! आज आस्था और अनास्था के बीच युद्ध है। मुझे देखना है कि क्या सही में ईश्वर है।” द्रोपदी की लाज बचाने और उनकी राखी की लाज रखने के लिए श्रीकृष्ण ने सभी के समक्ष एक चमत्कार किया।

वो द्रोपदी की साड़ी तब तक लंबी करते गए जब तक दुश्सान थक कर बेहोश नहीं हो गया। उस सभा में मौजूद सभी लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान रह गए।

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