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खजुराहो मंदिर

परिचय

अगर भारत में कहीं भी मंदिर स्थापत्य व वास्तुकला का रचनात्मक, अद्वितीय, विलक्षण, भव्य, राजसी, बेजोड़, लाजवाब, शानदार और शाही सृजन है… तो वह है केवल और केवल खजुराहो में। खजुराहो चंदेल शासकों के प्राधिकार का प्रमुख स्‍थान था, जिन्‍होंने यहाँ अनेकों तालाबों, शिल्‍पकला की भव्‍यता और वास्‍तुकलात्‍मक सुंदरता से सजे विशालकाय मंदिर बनवाए।

यूनेस्को की विश्व धरोहर, खजुराहो मंदिर अपनी कामुक मूर्तियों के लिए सबसे ज्यादा मशहूर हैं।

खजुराहो भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो को प्राचीन काल में ‘खजूरपुरा’ और ‘खजूर वाहिका’ के नाम से भी जाना जाता था। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं। हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण किया था। विभिन्न कामक्रीडाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा गया है। खजुराहो का मंदिर एक सभ्य सन्दर्भ, जीवंत सांस्कृतिक संपत्ति हैं।

मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते है। हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण किया था। संभोग की विभिन्न कलाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा गया है।

चंदेल वंश द्वारा 950 – 1050  के बीच निर्मित, खजुराहो मंदिर भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक हैं। हिंदू और जैन मंदिरों के इन सेटों को आकार लेने में लगभग सौ साल लगे। मूल रूप से 85 मंदिरों का एक संग्रह, संख्या 25 तक नीचे आ गई है। एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, मंदिर परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी। पश्चिमी समूह में अधिकांश मंदिर हैं, पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर हैं जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं। पूर्वी समूह के मंदिरों में जैन मंदिर चंदेला शासन के दौरान क्षेत्र में फलते-फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे। पश्चिमी और दक्षिणी भाग के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इनमें से आठ मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, छह शिव को, और एक गणेश और सूर्य को जबकि तीन जैन तीर्थंकरों को हैं। कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है, जो बने हुए हैं।

विश्वनाथ, पार्श्वनाथ और वैद्यनाथ के मंदिर राजा डांगा के समय से हैं जो यशोवर्मन के उत्तरवर्ती थे। खजुराहो का सबसे बड़ा और महान् मंदिर अनश्‍वर कंदारिया महादेव का है जिसे राजा गंडा ने बनवाया है। इसके अलावा कुछ अन्‍य उदाहरण हैं जैसे कि वामन, आदि नाथ, जवारी, चतुर्भुज और दुल्‍हादेव कुछ छोटे किन्‍तु विस्‍तृत रूप से संकल्पित मंदिर हैं। खजुराहो का मंदिर समूह अपनी भव्‍य छतों (जगती) और कार्यात्‍मक रूप से प्रभावी योजनाओं के लिए भी उल्‍लेखनीय है। यहाँ की शिल्‍पकलाओं में धार्मिक छवियों के अलावा परिवार, पार्श्‍व, अवराणा देवता, दिकपाल और अप्‍सराएँ तथा सूर सुंदरियाँ भी हैं। यहाँ वेशभूषा और आभूषण भव्‍यता मनमोहक हैं।

खजुराहो अध्यात्म योग शिक्षा के लिए विश्व में अपनी पहचान बना चुका है योग दिवस पर खजुराहो के पाश्चिम मंदिर समूह में योग का भव्य आयोजन किया गया अध्यात्म योग गुरु डा.जमुना मिश्रा विश्व के विभिन्न देशों में प्रवास कर योग अध्यात्म योग शिक्षा 27 वर्षों से दे रहे हैं जिससे खजुराहो का नाम विश्व में योग शिक्षा एवं अध्यात्म साधना के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है।

मंदिर स्थापत्य

सामान्य रूप से यहां के मंदिर बलुआ पत्थर से निर्मित किए गए हैं, लेकिन चौंसठ योगिनी, ब्रह्मा तथा ललगुआँ महादेव मंदिर ग्रेनाइट (कणाष्म) से निर्मित हैं। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से सम्बंधित हैं। खजुराहो के मंदिरों का भूविन्यास तथा ऊर्ध्वविन्यास विशेष उल्लेखनीय है, जो मध्य भारत की स्थापत्य कला का बेहतरीन व विकसित नमूना पेश करते हैं। यहां मंदिर बिना किसी परकोटे के ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किए गए हैं। आमतौर पर इन मंदिरों में गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा अर्धमंडप देखे जा सकते हैं। खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट व विकसित नमूने हैं, यहां की प्रतिमाऐं विभिन्न भागों में विभाजित की गई हैं। जिनमें प्रमुख प्रतिमा परिवार, देवता एवं देवी-देवता, अप्सरा, विविध प्रतिमाऐं, जिनमें मिथुन (सम्भोगरत) प्रतिमाऐं भी शामिल हैं तथा पशु व व्याल प्रतिमाऐं हैं, जिनका विकसित रूप कंदारिया महादेव मंदिर में देखा जा सकता है। सभी प्रकार की प्रतिमाओं का परिमार्जित रूप यहां स्थित मंदिरों में देखा जा सकता है।

यहां मंदिरों में जड़ी हुई मिथुन प्रतिमाऐं सर्वोत्तम शिल्प की परिचायक हैं, जो कि दर्शकों की भावनाओं को अत्यंत उद्वेलित व आकर्शित करती हैं और अपनी मूर्तिकला के लिए विशेष उल्लेखनीय हैं। खजुराहो की मूर्तियों की सबसे अहम और महत्त्वपूर्ण ख़ूबी यह है कि इनमें गति है, देखते रहिए तो लगता है कि शायद चल रही है या बस हिलने ही वाली है, या फिर लगता है कि शायद अभी कुछ बोलेगी, मस्कुराएगी, शर्माएगी या रूठ जाएगी। और कमाल की बात तो यह है कि ये चेहरे के भाव और शरीर की भंगिमाऐं केवल स्त्री-पुरुषों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर कहा जाय तो हर मूर्ति में एक अजीब सी हलचल है। खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में लक्ष्मण, विश्वनाथ, कंदारिया महादेव, जगदम्बी, चित्रगुप्त, दूल्हादेव, पार्श्वनाथ, आदिनाथ, वामन, जवारी, तथा चतुर्भुज इत्यादि हैं।

यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का स्थान प्राप्त करने वाले खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर

खजुराहो मध्यप्रदेश प्रदेश अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक सौंदर्यता का धनी राज्य माना जाता है। यहां ऐसे कई सुंदर, मनमोहक और अविश्वस्नीय स्थान हैं, जिन्हें देश ही नहीं विश्वभर में प्रसिद्धी हासिल है। यहां तीन ऐसे भी स्थल हैं, जिन्हें विश्व धरोहर स्थल कहा जाता है। विश्व की धरोहर का स्थान इन्हें यूनेस्को ने दिया है। जो विश्व की 981 धरोहरो में से एक है। इन्ही में से एक है मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के खजुराहो में स्थित मंदिरों का समूह, जिन्हें यहां के चंदेल राजाओं द्वारा निर्माण कराया गया है।

खजुराहो मंदिरों के बारे में जानने से पहले ये बात समझ लें कि, यूनेस्को किस आधार पर किसी स्थल को विश्व धरोहर का स्थान देता है। आपको बता दें कि, यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में उन स्थलों को शामिल किया जाता है, जिनका कोई खास भौतिक या सांस्कृतिक महत्व हो। इनमें इस तरह का संदेश प्रदर्शित करने वाले जंगल, झील, भवन, द्वीप, पहाड़, स्मारक, रेगिस्तान, परिसर या शहर को शामिल किया जाता है। हालांकि, अब तक यूनेस्कों द्वारा जारी सूची में पूरे विश्व की 981 धरोहरों को स्थान दिया गया है। यानी ये वो धरोहर हैं, जिन्हें विश्व की धरोहर कहा जाता है। इनमें से 32 विश्व की विरासती संपत्तियां भारत में भी मौजूद हैं। इन 32 संपत्तियों में से 25 सांस्कृतिक संपत्तियां और 7 प्राकृतिक स्थल हैं। इन्ही में से 3 विश्व धरोहरों का गौरव मध्य प्रदेश को भी प्राप्त है, जिसमें से एक है खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं।

इतिहास

खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। अपने क्षेत्र में खजुराहो की सबसे पुरानी ज्ञात शक्ति वत्स थी। क्षेत्र में उनके उत्तराधिकारियों में मौर्य, सुंग, कुषाण, पद्मावती के नागा, वाकाटक वंश, गुप्त, पुष्यभूति राजवंश और गुर्जर-प्रतिहार राजवंश शामिल थे। यह विशेष रूप से गुप्त काल के दौरान था कि इस क्षेत्र में वास्तुकला और कला का विकास शुरू हुआ, हालांकि उनके उत्तराधिकारियों ने कलात्मक परंपरा जारी रखी। ये शहर चन्देल साम्राज्‍य की प्रथम राजधानी था। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले गुर्जर राजा थे। वे अपने आप को चन्द्रवंशी मानते थे। चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।

मध्यकाल के दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चन्देल की उत्पत्ति का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि काशी के राजपंडित की पुत्री हेमवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता देखकर भगवान चन्द्र उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारणकर धरती पर आ गए और हेमवती का हरण कर लिया। दुर्भाग्य से हेमवती विधवा थी। वह एक बच्चे की मां थी। उन्होंने चन्द्रदेव पर अपना जीवन नष्ट करने और चरित्र हनन का आरोप लगाया।

अपनी गलती के पश्चाताप के लिए चन्द्र देव ने हेमवती को वचन दिया कि वह एक वीर पुत्र की मां बनेगी। चन्द्रदेव ने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरपुरा ले जाए। उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा। राजा बनने पर वह बाग और झीलों से घिरे हुए अनेक मंदिरों का निर्माण करवाएगा। चन्द्रदेव ने हेमवती से कहा कि राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। चन्द्र के निर्देशों का पालन कर हेमवती ने पुत्र को जन्म देने के लिए अपना घर छोड़ दिया और एक छोटे-से गांव में पुत्र को जन्म दिया।

हेमवती का पुत्र चन्द्रवर्मन अपने पिता के समान तेजस्वी, बहादुर और शक्तिशाली था। सोलह साल की उम्र में वह बिना हथियार के शेर या बाघ को मार सकता था। पुत्र की असाधारण वीरता को देखकर हेमवती ने चन्द्रदेव की आराधना की जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था।

चन्द्रवर्मन ने लगातार कई युद्धों में शानदार विजय प्राप्त की। उसने कालिंजर का विशाल किला बनवाया। मां के कहने पर चन्द्रवर्मन ने तालाबों और उद्यानों से आच्छादित खजुराहो में 85 अद्वितीय मंदिरों का निर्माण करवाया और एक यज्ञ का आयोजन किया जिसने हेमवती को पापमुक्त कर दिया। चन्द्रवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया है।

खजुराहों मंदिर की विशेषताएँ

सांस्कृतिक धरोहर के रुप में विद्यमान खजुराहो के मंदिर अपनी विशेषताओं के कारण न केवल भारत वर्ष, बल्कि संसार में विख्यात है। खजुराहो की शिल्प का विकास मूर्तियों के स्वरुप में किया गया है। मंदिरों की दीवारों के अंदर और बाहर, मूर्तियाँ इस तरह बनायी गई है कि ये आँखों का पेय बन गई है। कुछ मंदिरों में मूर्तिकारों ने मूर्तियों में भव्यता और विशालता भर दी है।

विश्वनाथ मंदिर में ६७४ मूर्तियाँ हैं, जबकि कदंरिया महादेव में ८७२ मूर्तियाँ है। वराह मंदिर में बराहदेव की मूर्ति पर हिंदू देवी- देवताओं की ६७२ मूर्तियाँ अंकित की गई है। कुछ मंदिर ऐसा है, जिसकी दीवारों पर कोई भी स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ मूर्तियाँ न अंकित की गई है। यहाँ देवी- देवताओं, नाग- नागिनियों, नायिकाओं, अप्सराओं, पशुओं तथा मिथुन युग्मों का अनेक मुद्राओं में अंकन किया गया है। एक लय, एक गति, एक शोभा से भरी हुई, यह प्रतिमाएँ मन को मोह लेने वाली है। कहीं- कहीं देवी- देवताओं की मूर्तियों ९’, लंबी और १४’ ऊँची बनायी गई हैं। प्रत्येक मूर्ति का अपना सौंदर्य है। देवता, देवियाँ, अप्सराएँ, पुरुष और नारियाँ सौंदर्य के संसार में गतिमान हैं। प्रतिमाओं के शरीर की शिथिलता या यौवन के उभार पत्थरों से छलकते हुए बाहर आते दिखाई देते हैं। धर्म, संस्कृति, समाज, अर्थ और राजनीति से जुड़ी, यह प्रतिमाएँ अपने निर्माता की कहानी कहती दिखाई देती है। नारी के आभूषण हमारे कल का का आभास करते हैं। बालों के गुंथने या उनके पहरावे में कहीं मानिनी नायिका, कहीं मुग्धा, तो कहीं परकीया के मनभावन क्रिया- कलापों के दर्शन कराते हैं, तो कहीं स्नानागार से निकलकर श्रृंगार करती हुई तरुणी का आभास कराते हैं।

खजुराहो मानव संग्राहालय है या इसे स्री पुरुष प्रधान एक संस्था कहा जा सकता है। कलाकारों ने प्रकृति की छटा में सौंदर्य के साथ- साथ, उस समय के मनोरंजन और क्रीड़ाओं की ओर ध्यान दिया है। यहाँ की कलाकृतियाँ प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक आयु के व्यक्ति से संबंध जोड़ती दिखाई देती है।

खजुराहो के मंदिर धार्मिक सहिष्णुता के जीवंत प्रमाण है।

इन मंदिरों की है अलग पहचान

इन भव्य और सांस्कृतिक मंदिरों का निर्माण चंदेल के हर शासक ने अपने शासनकाल के दौरान कम से कम एक मंदिर का निर्माण कराकर किया। मंदिरों का निर्माण कराना चंदेलों की परंपरा रही है इसलिए खजुराहो के सभी मंदिरों का निर्माण किसी ना किसी चंदेल शासक द्वारा कराया गया है। मुख्य तौर पर ये स्थान अपनी वास्तु विशेषज्ञता, बारीक नक्काशियों और कामुक मूर्तियों के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि, इस रचना को यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया। खजुराहो के मंदिरों की सुंदरता और आकर्षण के कारण ही इन्हें वैश्विक ख्याति प्राप्त हुई है।

आकर्षण का केन्द्र बनी इन मूर्तियों को यहां स्थापित दीवारों, खम्भों आदि पर देखा जा सकता है। मूर्तियों के माध्यम से सांसकृतिक सुख के बारे में गहन जानकारी दर्शाई गई है। यहां स्थापित मूर्तियों में हमारे रोज़मर्रा की जीवनशैली का भी विवरण है। कई शोधकर्ता और विद्वान मानते हैं कि, इन मूर्तियों के चित्रण से एक खास संदेश दिया गया है, जो मंदिर में प्रवेश करने वाले भक्तों पर लागू होता है, कि मंदिर में प्रवेश करने वाले अपने साथ जुड़े विलासिता पूर्ण मन को बाहर छोड़कर स्वच्छ मन से मंदिर में प्रवेश करें। इस विलासिता युक्त मन से छुटाकारा पाने के लिए ज़रूरी है इनका अनुभव करना। इसलिए इन मूर्तियों का चित्रण सिर्फ मंदिर के बाहरी छोर पर किया गया है।

खजुराहो मंदिर की कुछ रोचक बाते –

1.मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो खजूर के जंगलों के लिए मशहूर था।

जिसके कारन उसका नाम खजुराहो पड़ा था।

खजुराहों का मंदिर का प्राचीन नाम ”खर्जुरवाहक” है।

2.खजुराहो के मंदिर कलाकृतियों और भव्य छतों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ धार्मिक मूर्तियों के साथ साथ परिवार, अप्सरा और सुंदरियाँ भी है।

3. मंदिर के अंदर सभी कमरे एक दुसरे से जुड़े हुए है और इस तरह से बने हुए है कि कमरे की खिड़की से रोशनी पूरे मंदिर में फैलती है।

4. दुर से देखने पर खजुरहो के मंदिर ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे चंदन की लकड़ी से बने हो जबकि यह सैंड स्टोन से बने हुए हैं।

5.मंदिर की सभी मुर्तियों में चमक चमड़े से की गई रगड़ाई की वजह से है।

6. खजुराहो मंदिर को जटिल कुंडलीदार रचना के आकार में बनाया गया है जो कि अपनी कलाकृतियों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है।

7. खजुराहों के मंदिर भी वर्लड हेरिटेज साईट के रूप में घोषित किए गए हैं।

8.यूनेस्कों की लिस्ट में शामिल मंदिर में कलाकृतियों के माध्यम से मध्यकालीन महिलाओं  की जीवनशैली को बेहद शानदार ढंग से प्रर्दशित किया गया है।

9.चंदेला साम्राज्य के विश्व विरासत में कामुकता की अलग-अलग कलाओं और आसनों को बेहद रचनात्मक, सृजनात्मक ढंग से मूर्तिकला से प्रदर्शित किया गया है।

10.खजुराहों के इस प्राचीन मंदिर को तीन अलग-अलग समूहों में बांटा गया है।

जिसमें पूर्वी समूह, पश्चिमी समूह एवं दक्षिणी समूह आदि हैं।

प्राचीन समय में खजुराहों में मंदिरों की संख्या करीब 85 थी लेकिन फिर धीमे-धीमे इन मंदिरों को कुछ शासकों के द्धारा नष्ट कर दिया गया।कुछ मंदिर प्राकृतिक आपदाओं के चलते ध्वस्त हो गए।

जिसकी वजह से आज सिर्फ 22 मंदिर ही बचे हैं।

मध्यकाल में बने खजुराहो के मंदिर में हिन्दू धर्म के कई देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को शानदार ढंग से बनाया गया है।

उसमे ब्रम्हा, विष्णु और महेश भगवान की उत्कृष्ट कलाकृतियां बनाई गई हैं।

खजुराहो की कामुक मूर्तियों को बनाने की कई अलग-अलग वजह बताई जाती हैं, जो इस प्रकार हैं-

कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि प्राचीन काल में राजा-महाराजा काफी उत्तेजित रहते थे व भोग-विलासिता में अधिक लिप्त रहते थे। इसी कारण खजुराहो में कामुक मूर्तियां बनवाई गई हैं।

कुछ समुदाय के विश्लेषक कहते हैं कि खजुराहो की मूर्तियों का निर्माण प्राचीन काल में संभोग शिक्षा देने के लिए करवाया गया था। उन दिनों ऐसा माना जाता था कि इन अद्भुत आकृतियों को देखकर लोगों को संभोग की सही शिक्षा मिलेगी और जन-जन तक यह शिक्षा पहुँचाने के लिए ही इन्हें मंदिर में बनवाया गया क्योंकि प्राचीन काल में मंदिर ही एक ऐसा स्थान था, जहां लगभग सभी लोग जाते थे।

कुछ विश्लेषक बताते हैं कि मोक्ष के लिए हर इंसान को चार रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है- धर्म, अर्थ, योग और काम। काम को ध्यान में रखकर ही इन नग्न मूर्तियों का निर्माण करवाया गया क्योंकि इसके बाद सिर्फ भगवान की शरण ही मिलती है। इसी कारण इसे देखने के बाद भगवान के शरण में जाने की कल्पना की गई।

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इन मंदिरों को बनवाने के पीछे का कारण हिंदू धर्म की रक्षा है। इन लोगों के अनुसार जब खजुराहो के मंदिरों का निर्माण हुआ, तब बौद्ध धर्म काफी तेजी से बढ़ रहा था। चंदेल शासकों ने हिंदू धर्म के अस्तित्व को बचाने के लिए इन मंदिरों का निर्माण करवाया। उनके अनुसार प्राचीन समय में ऐसा माना जाता था कि कामुकता हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसीलिए यदि मंदिर के बाहर नग्न एवं संभोग की मुद्रा में मूर्तियां बनवाई जाएं, तो लोग इन्हें देखने मंदिर अवश्य आएंगे और फिर अंदर भगवान के दर्शन करने भी जाएंगे। इससे हिंदू धर्म को बढ़ावा मिलेगा।

मंदिर निर्माण के कारणों में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि उक्त काल में बौद्ध धर्म के प्रभाव के चलते गृहस्थ धर्म से विमुख होकर अधिकतर युवा ब्रह्मचर्य और सन्यास की ओर अग्रसर हो रहे थे। उन्हें पुन: गृहस्थ धर्म के प्रति आसक्त करने के लिए ही देशभर में इस तरह के मंदिर बनाए गए और उनके माध्यम से यह दर्शाया गया की गृहस्थ रहकर भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

खजुराहो के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर –

खजुराहो विश्व धरोहर स्थल है। खजुराहो के मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। खजुराहो में मंदिरों के अलावा भी और भी प्राकृतिक जगह हैं, जिन्हें आप घूम सकते हैं। खजुराहो के मंदिर तीन भागों में विभाजित किए गए हैं। पश्चिमी मंदिर समूह, पूर्वी मंदिर समूह और दक्षिणी मंदिर समूह। 

पश्चिमी मंदिर समूह में बहुत सारे मंदिर हैं, जिनमें आप घूम सकते हैं। पश्चिमी मंदिर समूह में सारे ही हिंदू मंदिर है। इन मंदिरों की दीवारों में बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की गई है। यह सारे मंदिर प्राचीन है।

खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह

मतंगेश्वर शिव मंदिर खजुराहो –

मतंगेश्वर शिव मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में आपको बहुत बड़े शिवलिंग के दर्शन करने मिलते हैं। इस मंदिर के बाहर आपको गणेश जी की बहुत ही भव्य प्रतिमा देखने के लिए मिलती है। मतंगेश्वर मंदिर परिसर में आपको एक और प्रतिमा देखने के लिए मिलती है, जो बहुत ही प्राचीन है। इस प्रतिमा को अब सिंदूर से पूरी तरह से रंग दिया गया है। यह प्रतिमा हनुमान जी की है। 

मतंगेश्वर खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर जिसे राजा हर्षवर्मन ने 920 ई. में बनवाया था। पिरामिड शैली में बने एक ही शिखर वाले इस मंदिर की शिल्प रचना एकदम साधारण है। गर्भगृह में करीब ढाई मीटर ऊंचा और एक मीटर व्यास का एक शिवलिंग है। मंदिर परिसर में एक विशाल उद्यान में ऊंचे शिखर वाले कई मंदिर हैं। ये सभी ऊंचे चबूतरों पर बने हुए हैं।

लक्ष्मण मंदिर खजुराहो –

लक्ष्मण मंदिर पश्चिमी मंदिर समूह का एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर पर बहुत खूबसूरत है। इस मंदिर में आपको भगवान विष्णु जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और चबूतरे के चारों कोने पर छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं, जो बहुत ही खूबसूरत लगते हैं। लक्ष्मण मंदिर की दीवारों पर बहुत सारी मूर्तियों को पत्थर पर उकेर कर बनाया गया है, जो बहुत ही आकर्षक लगती हैं।

परिसर में स्थित लक्ष्मण मंदिर को 930 ई. में राजा यशोवर्मन द्वारा बनवाया गया था। पंचायतन शैली में बने इस मंदिर के चारों कोनों पर एक-एक उपमंदिर बना है। मुख्य मंदिर के द्वार पर रथ पर सवार सूर्यदेव की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर सैकड़ों मूर्तियां जड़ी हैं। मूर्तियों की सुंदरता, उनकी भाव-भंगिमा को देखना अद्भुत है। मूर्तियों की श्रृंखला में 3 कतारों में प्रमुख मूर्तियां थीं। उनके अतिरिक्त कुछ कतारें छोटी मूर्तियों की थीं। मध्य में बने आलों में देव प्रतिमाएं हैं। अधिकतर मूर्तियां उस काल के जीवन और परंपराओं को दर्शाती हैं। इनमें नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार आदि जैसे दृश्य हैं। प्रमुख मूर्तियों में विष्णु, शिव, अग्निदेव आदि के साथ गंधर्व, सुर-सुंदरी, देवदासी, तांत्रिक, पुरोहित और मिथुन मूर्तियां हैं।

एक मूर्ति में तो नायक-नायिका द्वारा एक-दूसरे को उत्तेजित करने के लिए नख-दंत का प्रयोग कामसूत्र के किसी सिद्धांत को दर्शाता रहा है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की त्रिमुखी प्रतिमा के दर्शन होते हैं। अंदर की दीवारों पर भी मूर्तियां विद्यमान हैं। लक्ष्मण मंदिर के चबूतरे पर छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। इनमें धर्मोपदेश,नृत्य-संगीत, शिक्षा, युद्ध के लिए प्रस्थान के दृश्यों के साथ ही कुछ दृश्य सामूहिक मैथुन के भी हैं। लक्ष्मण मंदिर के सामने 2 छोटे मंदिर हैं। इनमें एक लक्ष्मी मंदिर व दूसरा वराह मंदिर है।

वराह मंदिर खजुराहो – 

वराह मंदिर खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह का एक मंदिर है। यह मंदिर पर बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर में आपको विष्णु भगवान जी के वराह अवतार के दर्शन करने के लिए मिलते हैं।

लक्ष्मी मंदिर खजुराहो –

लक्ष्मी मंदिर खजुराहो के पश्चिमी समूह में स्थित एक प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर में आपको लक्ष्मी जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर छोटा सा मंदिर है। मगर खूबसूरत है।

विश्वनाथ मंदिर खजुराहो – 

विश्वनाथ मंदिर खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह का एक मुख्य मंदिर है। यह मंदिर भी बहुत खूबसूरत है। इस मंदिर की दीवारों पर बहुत ही भव्य कारीगरी की गई है। यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और इस मंदिर के कोने पर भी आपको दो मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं। 

 विश्वनाथ मंदिर से पूर्व पार्वती मंदिर भी है। यह नवनिर्मित मंदिर है। दरअसल, यहां स्थित यह मंदिर खंडित हो चुका था। 1880 के आसपास छतरपुर के महाराजा ने यह वर्तमान मंदिर बनवाकर उसमें पार्वती की प्रतिमा स्थापित करवा दी। यह मंदिर अन्य मंदिरों से भिन्न है। आगे स्थित है विश्वनाथ मंदिर, जो शिव को समर्पित है। 90 फुट ऊंचे और 45 फुट चौड़े इस मंदिर का निर्माण 1002 ई. में राजा धंगदेव द्वारा करवाया गया था। मंदिर की सीढ़ियों के आगे दो शेर और हाथी बने हैं। मंदिर में देव प्रतिमा, अष्टदिग्पाल, नाग कन्याएं व अप्सरा आदि हैं। अन्य कतारों में उस काल की समृद्धि का चित्रण राजसभा, रासलीला, विवाह और उत्सव के दृश्यों के रूप में है। इनमें वीणा वादन करती नायिका तथा पैर से कांटा निकालती अप्सरा की मूर्ति भी अद्भुत है। मुख्य आलियों में चामुंडा, वराही, वैष्णवी, कौमारी, महेश्वरी व ब्रह्माणी आदि के बाद अंत के आलिये में नटेश्वर की प्रतिमा है। गर्भगृह की दीवारों पर शिव अनेक रूपों में चित्रित हैं तथा गर्भगृह में शिवलिंग के दर्शन होते हैं। प्रमुख मंदिर के सामने बड़ा-सा नंदी मंडप है। 12 खंभों पर टिके चौकोर मंडप में शिव के वाहन नंदी की 6 फुट ऊंची प्रतिमा है

नंदी मंदिर खजुराहो –

नंदी मंदिर भारत के मध्य प्रदेश के खजुराहो शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर है । यह नंदी को समर्पित है , जो बैल हिंदू महाकाव्य में शिव के पर्वत ( वाहन ) के रूप में कार्य करता है । एक सामान्य वास्तुकला प्रवृत्ति के रूप में, शिव (और पार्वती) के मंदिर शिव के सामने बैठे नंदी की पत्थर की छवियों को प्रदर्शित करते हैं। प्रवृत्ति के बाद, यह मंदिर विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित है , जो शिव को समर्पित है।

यह संरचना भारत में विश्व धरोहर स्थल खजुराहो समूह के स्मारकों में से एक है ।

नंदी मंदिर विश्वनाथ मंदिर के सामने बना हुआ है। यह मंदिर नंदी महाराज को समर्पित है।  नंदी भगवान जी का मुख भगवान शिव की तरफ है। नंदी भगवान की मूर्ति बहुत ही आकर्षक लगती है। 

पार्वती माता मंदिर खजुराहो –

विश्वनाथ मंदिर के पास ही में पार्वती माता मंदिर है। यह मंदिर पार्वती माता जी को समर्पित है। यह मंदिर चुने और पत्थर का बना हुआ है। 

चित्रगुप्त मंदिर खजुराहो

चित्रगुप्त मंदिर पश्चिमी मंदिर समूह का एक मुख्य मंदिर है। यह मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित है। इस मंदिर के गर्भ ग्रह में सूर्य भगवान जी के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह खजुराहो में एकमात्र मंदिर है, जो सूर्य भगवान जी को समर्पित है। 

विश्वनाथ मंदिर के आगे चित्रगुप्त मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। इसका निर्माण राजा गंडदेव द्वारा 1025 ई. के लगभग करवाया गया था। मंदिर की दीवारों पर अन्य मूर्तियों के मध्य उमा-महेश्वर, लक्ष्मी-नारायण और विष्णु के विराट रूप में मूर्तियां भी हैं। जनजीवन की मूर्तियों में पाषाण ले जाते श्रमिकों की मूर्तियां मंदिर निर्माण के दौर को दर्शाती हैं। मुख्य प्रतिमाओं के मध्य व्याल व शार्दूल नामक पशुओं की प्रतिमाएं हैं, जो हर मंदिर पर बनी हैं।

चित्रगुप्त मंदिर की दीवारों पर नायक-नायिका को आलिंगन के विभिन्न रूपों में चित्रित किया गया है। गर्भगृह में 7 घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा विराजमान है। निकट ही हाथ में लेखनी लिए चित्रगुप्त बैठे हैं।

जगदंबा मंदिर खजुराहो – 

जगदंबा मंदिर खजुराहो का एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर पश्चिमी मंदिर समूह का एक मंदिर है। इस मंदिर में जगदंबा माता की मूर्ति विराजमान है। जगदंबा माता पार्वती माता का ही स्वरूप है। इस मंदिर की दीवारों में बहुत ही खूबसूरत कारीगरी की गई है। चित्रगुप्त मंदिर से कुछ आगे जगदंबी मंदिर है। मूलत: यह मंदिर विष्णु को समर्पित था, लेकिन मंदिर में कोई प्रतिमा न थी। छतरपुर के महाराजा ने जब इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया तब यहां जगदंबा की प्रतिमा स्थापित कर दी गई। इस मंदिर में अन्य देव प्रतिमाओं के साथ यम की प्रतिमा भी विद्यमान है। यहां भी दीवारों पर कुछ अच्छे मैथुन दृश्य देखने को मिलते हैं। प्रवेश द्वार पर चतुर्भुजी विष्णु गरूड़ पर आसीन नजर आते हैं। मंदिर के आलियों में सरस्वती एवं लक्ष्मी की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जगदंबी मंदिर के निकट ही महादेव मंदिर है। इस छोटे मंदिर का मूल भाग खंडित अवस्था में है तथा वेदी भी नष्ट हो चुकी है। प्रवेश द्वार पर एक मूर्ति में राजा चंद्रवर्मन को सिंह से लड़ते दर्शाया गया है। यह दृश्य चंदेलों का राजकीय चिह्न बन गया था।

कंदारिया महादेव मंदिर खजुराहो –

कंदारिया महादेव मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। यह पश्चिमी मंदिर समूह का सबसे बड़ा मंदिर है। यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत कारीगरी की गई है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है।

22 मंदिरों में से एक कंदारिया महादेव का मंदिर काम शिक्षा के लिए मशहूर है। संभवत: कंदरा के समान प्रतीत होते इसके प्रवेश द्वार के कारण इसका नाम कंदारिया महादेव पड़ा होगा

यह खजुराहो का सबसे विशाल तथा विकसित शैली का मंदिर है। 117 फुट ऊंचा, लगभग इतना ही लंबा तथा 66 फुट चौड़ा यह मंदिर सप्तरथ शैली में बना है। हालांकि इसके चारों उपमंदिर सदियों पूर्व अपना अस्तित्व खो चुके थे। विशालतम मंदिर की बाह्य दीवारों पर कुल 646 मूर्तियां हैं तो अंदर भी 226 मूर्तियां स्थित हैं। इतनी मूर्तियां शायद अन्य किसी मंदिर में नहीं हैं।

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर की बनावट और अलंकरण भी अत्यंत वैभवशाली है। कंदारिया महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार 9 शाखाओं से युक्त है, जिन पर कमल पुष्प, नृत्यमग्न अप्सराएं तथा व्याल आदि बने हैं। सरदल पर शिव की चारमुखी प्रतिमा बनी है। इसके पास ही ब्रह्मा एवं विष्णु भी विराजमान हैं। गर्भगृह में संगमरमर का विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंडप की छतों पर भी पाषाण कला के सुंदर चित्र देखे जा सकते हैं।

इस मंदिर का निर्माण राजा विद्याधर ने मोहम्मद गजनवी को दूसरी बार परास्त करने के बाद 1065 ई. के आसपास करवाया था। बाह्य दीवारों पर सुर-सुंदरी, नर-किन्नर, देवी-देवता व प्रेमी-युगल आदि सुंदर रूपों में अंकित हैं। मध्य की दीवारों पर कुछ अनोखे मैथुन दृश्य चित्रित हैं।

एक स्थान पर ऊपर से नीचे की ओर एक क्रम में बनी 3 मूर्तियां कामसूत्र में वर्णित एक सिद्धांत की अनुकृति कही जाती हैं। इसमें मैथुन क्रिया के आरंभ में आलिंगन व चुंबन के जरिए पूर्ण उत्तेजना प्राप्त करने का महत्व दर्शाया गया है। एक अन्य दृश्य में एक पुरुष शीर्षासन की मुद्रा में 3 स्त्रियों के साथ रतिरत नजर आता है।

प्रतापेश्वर महादेव मंदिर खजुराहो – 

प्रतापेश्वर महादेव मंदिर खजुराहो में स्थित एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। यह मंदिर छतरपुर के तत्कालीन राजा के द्वारा बनवाया गया है। इस मंदिर की भी वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर में आपको गुंबद देखने के लिए मिलते हैं। 

चौसठ योगिनी मंदिर खजुराहो

64 योगिनी मंदिर खजुराहो का एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर अब खंडहर अवस्था में है। यहां पर किसी भी मंदिर में मूर्ति स्थापित नहीं है। यहां पर आपको छोटे-छोटे कुछ मंदिर देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर एक मंदिर में काली जी की मूर्ति स्थापित है, जहां पर फूल पत्तियां चढ़ी हुई थी। 

ललगुवा महादेव मंदिर –

ललगुवा महादेव मंदिर एक शिव मंदिर है। यह एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर में पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ता है। इस मंदिर के गर्भ गृह में किसी प्रकार की मूर्ति नहीं है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। इस मंदिर का शिखर पिरामिड के आकार का है। आप इस मंदिर में घूमने के लिए आ सकते हैं

पूर्वी मंदिर समूह खजुराहो –

खजुराहो के पूर्वी मंदिर समूह में आपको हिंदू मंदिर भी देखने के लिए मिल जाएंगे और जैन मंदिर भी देखने के लिए मिल जाएंगे। यह सभी मंदिर प्राचीन है। इन सभी मंदिरों की दीवारों पर नक्काशी की गई है। 

वामन मंदिर खजुराहो –

वामन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। वामन भगवान विष्णु के 1 अवतार है। यह मंदिर खजुराहो के पूर्वी एरिया में स्थित है। यह मंदिर बगीचे के बीच में बना हुआ है और बहुत ही खूबसूरत लगता है। मंदिर की दीवारों पर आकर्षक नक्काशी की गई है। 

जवारी मंदिर खजुराहो –

जवारी मंदिर एक छोटा सा और खूबसूरत मंदिर है। यह मंदिर विष्णु भगवान जी को समर्पित है। इस मंदिर के मुख्य विष्णु भगवान जी की प्रतिमा को तोड़ दिया गया है। उनके सर को अलग कर दिया गया है। यह मंदिर खजुराहो में पूर्वी तरफ स्थित है। बगीचे के बीच में यह मंदिर स्थित है। आप यहां पर आकर घूम सकते हैं। जवारी मंदिर वामन मंदिर के समीप में स्थित है।

ब्रह्मा मंदिर खजुराहो

इसके अलावा खजुराहो के प्राचीन गांव के निकट थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्थित पूर्वी मंदिर हैं। इनमें 4 जैन तथा 3 हिन्दू मंदिर हैं। पहला पिरामिड शैली में बना छोटा-सा ब्रह्मा मंदिर है। ब्रह्मा की प्रतिमा के साथ यहां भगवान विष्णु और शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर में एक शिवलिंग भी है।

ब्रह्मा मंदिर खजुराहो तालाब के किनारे बना हुआ है। इस मंदिर में आपको ब्रह्मा जी की मूर्ति देखने के लिए मिलती है, जो शिव भगवान जी के शिवलिंग में बनी हुई है। यहां पर चार मुख देखने के लिए बनते हैं, जो कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के हैं। इस मंदिर को ब्रह्मा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर ज्वालामुखी के पत्थरों से बना हुआ है। 

घंटाई मंदिर खजुराहो –

घंटाई मंदिर खजुराहो में स्थित एक प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर को घंटाई मंदिर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस मंदिर के जो स्तंभ है। उनमें घंटियां बनी हुई है। इसलिए इस मंदिर को घंटाई मंदिर मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में आपको स्तंभ बस देखने के लिए मिलते हैं। यहां कोई मंदिर नहीं है। 

जैन संग्रहालय  खजुराहो –

जैन संग्रहालय खजुराहो यह छोटा सा संग्रहालय है। संग्रहालय में आपको बहुत सारी मूर्तियां देखने के लिए मिलते हैं। संग्रहालय के बाहर खूबसूरत बगीचा है। यह सारी मूर्तियां प्राचीन है। मूर्तियों के नीचे उनके नाम भी लिखे हुए हैं। आपको संग्रहालय में आकर बहुत अच्छा लगेगा। संग्रहालय और मंदिर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। 

आदिनाथ मंदिर खजुराहो –

यह खजुराहो में स्थित एक जैन मंदिर है। यह मंदिर आदिनाथ भगवान जी को समर्पित है। मंदिर में की दीवारों पर आपको खूबसूरत नक्काशी देखने के लिए मिल जाती है। यहां पर आपको मूर्तियों का अच्छा कलेक्शन देखने के लिए मिलता है। यहां पर बगीचा भी बना हुआ है। यहां पर और भी छोटे-छोटे जैन मंदिर बने हुए हैं, जिन्हें आप यहां पर आकर देख सकते हैं।

पार्श्वनाथ मंदिर खजुराहो –

पार्श्वनाथ मंदिर खजुराहो में स्थित एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर जैन मंदिर समूह का एक मुख्य मंदिर है। यह मंदिर सभी मंदिरों में सबसे सुंदर है। इस मंदिर के गर्भगृह में पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। इस मंदिर के गर्भ गृह के पीछे एक अन्य लघु मंदिर भी जुड़ा हुआ है। 

शांतिनाथ मंदिर खजुराहों

शांतिनाथ मंदिर खजुराहो का एक मुख्य मंदिर है। इस मंदिर में आपको शांतिनाथ भगवान जी की खड़ी हुई मुद्रा में मूर्ति देखने के लिए मिलती है। यहां पर आपको और भी प्राचीन मूर्तियां देखने के लिए मिल जाएंगे। यह मंदिर पूर्वी मंदिर समूह का एक मुख्य मंदिर है। 

दक्षिणी मंदिर समूह खजुराहो –

खजुराहो के दक्षिणी मंदिर समूह में आपको हिंदू मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं। इनमें से एक मंदिर खंडित अवस्था में है। यह मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया है।

दूल्हा देव मंदिर खजुराहो – 

दूल्हा देव मंदिर खजुराहो में खुडर नदी के पास में स्थित है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर में आज भी पूजा की जाती है। इस मंदिर के चारों तरफ खूबसूरत गार्डन देखने के लिए मिल जाता है। इस मंदिर की दीवारों में बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की गई है। इस मंदिर को अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस मंदिर को कुंवारा मठ भी कहा जाता है।  पूर्वी मंदिर के बाद दक्षिणी मंदिरों में से एक खोकर नदी के तट पर स्थित दूल्हादेव मंदिर है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग पर 1,000 छोटे-छोटे शिवलिंग बने हैं। यह 12वीं शताब्दी में निर्मित चंदेल राजाओं की अंतिम धरोहर है। इसके बाद दूल्हादेव मंदिर से कुछ दूर चतुर्भुज मंदिर एक साधारण चबूतरे पर बना है। इस मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियों में दिग्पाल, अष्टवसु, अप्सराएं और व्याल प्रमुखता से हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिव की सौम्य प्रतिमा है। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर एक विशालकाय मंदिर भूमि के नीचे दबा हुए है। उस स्थान को बीजा मंडल कहा जाता है।

लगभग सभी मंदिरों की दीवारों पर कहीं-कहीं एकल तो कहीं-कहीं सामूहिक मैथुनरत मूर्तियां वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित और चित्रित अनेक आसनों का बोध कराती हैं। सामूहिक मैथुन के दृश्य तो दर्शकों के मन में एक अलग तरह का कौतूहल पैदा करते ही हैं, किंतु पशु मैथुन के गिने-चुने दृश्यों का रहस्य समझ से परे है। मूर्ति शिल्प की उत्कृष्टता यह भी दर्शाती है कि ये मैथुन मूर्तियां किसी तरह के पूर्वाग्रह या कुंठा से उपजी हुई रचनाएं नहीं हैं, लेकिन ऐसे दृश्यों का उत्तर न तो मंदिर की दीवारों पर और न किसी शिलालेख पर लिखा है।

चतुर्भुज मंदिर खजुराहों

चतुर्भुज मंदिर खजुराहो का एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर में आपको बहुत ही खूबसूरत नक्काशी देखने के लिए मिलती है। इस मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु की बहुत ही आकर्षक प्रतिमा विराजमान है। यह मंदिर मुख्य खजुराहो के बाहर देखने के लिए मिलता है। 

बीजामंडल खजुराहो –

बीजामंडल एक खंडित मंदिर के अवशेष है। यह मंदिर से भगवान शिव जी को समर्पित था। यह मंदिर पूरी तरह से खंडित हो गया है। इस मंदिर में अभी भी आप शिव जी का शिवलिंग देख सकते हैं। मंदिर में को खोदकर निकाला गया है। यहां पर मंदिर के बारे में आपको जानकारी भी देखने के लिए मिल जाएगी।

खजुराहो जाने का सबसे अच्छा समय

खजुराहो के मंदिर में वैसे तो आप यहां किसी भी मौसम में जा सकते हैं, शहर में मानसून का समय खजुराहो जाने के लिए एक सुखद मौसम होता है।  इस मौसम में कुछ दिनों तक मध्यम बारिश होती है। लेकिन अगर आप यहां घुमने का पूरा मजा लेना चाहते हैं तो आपके लिए सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा रहेगा। अक्टूबर से फरवरी के महीने दुनिया भर के लोगों की भीड़ के साथ खजुराहो घूमने का सबसे अच्छा समय है। हर साल फरवरी में आयोजित खजुराहो नृत्य महोत्सव आपकी खजुराहो यात्रा की योजना बनाने का सबसे अच्छा समय है।

लाइट एंड साउंड शो

खजुराहो जैसी ऐतिहासिक जगह पर घूमने के बाद भी पर्यटकों के मन में इसके इतिहास से जुड़े कई सवाल अधूरे रह जाते हैं। पर्यटकों की तमाम शंकाओं के समाधान के लिए खजुराहो में लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। इस शो में चंदेल राजाओं के वैभवशाली इतिहास से लेकर इन अप्रतिम मंदिरों के निर्माण की कहानी बताई जाती है। वेस्टर्न ग्रुप के मंदिरों के पास ही बने एक कॉम्पलेक्स में 50 मिनट तक चलने वाले एक शो में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन अपनी आवाज़ में दर्शकों को खजुराहो के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराते हैं। ये शो रोजाना शाम को हिन्दी और अंग्रेज़ी में चलाए जाते हैं।

खजुराहो नृत्य समारोह

हर साल फ़रवरी – मार्च में खजुराहो में एक नृत्य समारोह का आयोजन किया जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस सास्कृतिक कार्यक्रम के लिए खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह को एक पृष्ठपट की तरह इस्तैमाल किया जाता है। भारत का हर शास्त्रीय नर्तक इस भव्य समारोह में हिस्सा लेना अपना सौभाग्य समझता है।

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