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अस्तित्व से ही तैयार होगा व्यक्तित्व

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संतान कितनी हो , यह बहस का विषय हो सकता है , लेकिन कैसी हो , यह फिक्र का विषय होना चाहिए ।

मनुष्य और जानवरों में बड़ा फर्क यह है की इंसान अपने बच्चों को वह सब सिखा सकता है , जो कभी कभी जानवर नही सिखा पाते ।

शरीर के भरण पोषण की क्रिया जानवर भी अपने बच्चों को सिखा देता है , लेकिन आत्मा की तृप्ति के लिए संस्कारो का जो भोजन होता है , वह सिर्फ मनुष्य ही बच्चों को दे पाता है ।

जब कहा जाता है कि संतान दो ही अच्छी , तो इस विचार पर विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों कहा जाता है?

दरअसल परमात्मा ने हमारी अधिकांश और महत्वपूर्ण इंद्रियां दो दो बनाई है और शरीर दो हिस्सों में इसलिए बांटा भगाया है कि दोनों से जीव का संचालन होता है ।

यदि माता पिता इस बात से चिंतित है कि बच्चे कैसे हो तो एक पिता को उनके लालन पालन के लिए अपने भीतर की आधी स्त्री पर भी काम करना चाहिए ।

ऐसे ही एक माता को बयदी बच्चों में समझ उतारना हो तो उसके भीतर भी जो आधा पुरुष है उस पर काम करना चाहिए ।

बात गहरी है , पर समझने की है । बच्चों के लालन पालन में हर माता पिता शांति से अपने भीतर उतरे , भीतर की आधी स्त्री , आधे पुरुष को पहचाने उस पर काम करे ।

तब जाकर पाएंगे आप जो बोल रहे है , जो कहना चाहते है , बच्चे उसे बड़ी आसानी से समझ लेंगे । यदि भीतर के अस्तित्व पर काम किया तो बाहर संतान का व्यक्तित्व आसानी से तैयार हो सकता है ।

श्री दुर्गा चालीसा Shri Durga Chalisa

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॥ चौपाई ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लय कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजे॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत।तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे।मोह मदादिक सब विनशावै॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥

जब लगि जियउं दया फल पाऊं।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

Reference
1 Durga Chalisa
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शांति के लिए दुर्गुणों की परत हटाएं

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यदि आप शांति की तलाश में हैं तो सबसे पहले इस बात को गांठ बांध लीजिए कि स्वयं के अलावान तो आपको कोई शांत कर सकता है और न ही कोई दूसरा अशांत कर सकता है।

इसके बाद समझना यह होगा कि जब हमेंही करना है तो कैसे करेंगे तो दूसरी शर्त यह होगी कि शांति-अशांति के चक्कर में किसी और के पास तो जाना ही नहीं है।

अपने ही भीतर उतरिए। अब भीतर ही उतरने पर क्या मिलेगा ? एक मन होत है जो दिखता नहीं।

हम उसका निर्माण करते हैं विचार व स्मृति से तो विचार शून्य स्मृति से मुक्त होकर उसे हटा भी सकते है ।

जैसे ही मन हटाए आप आत्मा के क्षेत्रमें पहुंच जाएंगे।

यह सवाल कई लोग उठाते हैं कि आत्मा होती क्या है?

तरीका मिल जाए आत्मा तक पहुंच भी जाएं तो दिखेगी कैसी ? दरअसल आत्मा दिखती नहीं। अनुभव होती है।

लेकिन फिर भी उसका रस है। एक बार उस तक पहुंच गए तो रग-रग में बहती महसूस होगी।

आत्मा का शरीर में निश्चित स्थान कुछ नहीं है। वह बहती रहती है।

जिन्हें आत्मातक पहुंचना हो वो कभी किसी कुए को खुदता जरूर देखें।

कुआं खोदने वाले मिट्टी हटा-हटाकर खोदते जाते हैं| जबतक कि पानी न मिल जाए।

ऐसे ही हमें लगातार हमारे ‘मैं’ की दुर्गुणों की परतें हटानी पड़ेगी।

आत्मा को कुएं की तरह खोदते जाएंगे तो एक दिन जैसे पानी कुंए को भर देता है|

ऐसे ही आत्मा पूरे व्यक्तित्व को लबालब कर देगी

और यहां आपकी शांति की तलाश पूरी हो जाएगी।

शिव ताण्डव स्तोत्र Shiva Tandava Stotram

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जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥


जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥


जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥


सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥


ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥


करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥


नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

References
1. Shiva Tandava
2. Image

श्री सरस्वती चालीसा (Shri Saraswati Chalisa)

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॥दोहा॥

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥


पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

॥चालीसा॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥1

रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥2

तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥3

रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥4

तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा॥5

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता॥6

राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥7

मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥8

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥9

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥10

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥11

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥12

को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥13

रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥14

दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे॥15

सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥16

नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥17

करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥18

भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥19

रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी।20

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥


बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

Saraswati Chalisa By Anuradha Paudwal Full Audio Song I Art Track

Reference
1. Saraswati Chalisa
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बाहर की परिस्थितियां हमारे भीतर खुशी कैसे पैदा करेंगी ?

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खुशी किस चीज़ से मिलेगी इसकी सूची में कई बार छोटी सी छोटी चीज़ तो कई बार बड़ी से बड़ी चीज होती है ।

लेकिन इस खुशी को प्राप्त करने के लिए कई बार हमें बहुत कुछ त्याग भी करना पड़ता है ।

आओ खुश होंगे तो मै खुश होऊंगी ये समीकरण ठीक है ।

अगर मैं लो कि सामने वाला पहले से चिंता और तनाव में है तो वह खुश नही हो सकता है ।

अभी कुछ दिन पहले की बात है हमारे पड़ोसी के पास गाड़ी नही थी ।

उसकी पत्नी पति के जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए बहुत मेहनत से एक शर्ट लेकर आई ।

जो पति को पसंद नही आई और उसने कहा कि मैं इसे रात में पहनकर सो जाऊंगा ।

पत्नी को यह बहुत बुरा लगा । उसने सोचा था कि पति खुश होगा तो उसे खुशी मिलेगी ।

लेकिन ऐसा हुआ नही कहीं न कहीं हमने यह समीकरण बाबा लिया है कि जब मेरे आस पास के लोग खुश होंगे तब मैं खुश होऊंगी ।

मेरे आस पास के लोग बीमार रहे और मैं खुश रहूं , ऐसा हो सकता है , इसमें स्वार्थ जैसी कोई बात नही है ।

यह बात सही है कि जब मेरे आस पास के लोग बीमार है यर उसमे भी वे लोग जो मेरे नजदीकी संबंधी है ।

उनका ध्यान रखने से पहले मुझे स्वयं का ध्यान रखना होगा ।

ओरो को खुश करने के लिए सिर्फ काम पर ध्यान रखना जरूरी नही है कि मैं ये करूँगा , मैं वो करूँगी तो वो खुश हो जाएंगे ।

इसका मूलमंत्र यही है कि – मैं खुश रहूंगी तभी वे खुश होंगे । कितनी बार हम मानते भी है कि तुम मुझे खुश देख ही नही सकते हो ।

मन दूसरे की मां की स्थिति निर्भर कर रही है ।

सुबह मैं अच्छे मूड में थी लेकिन आपका मूड ठीक नही था और मैं परेशान हो गयी । फिर मैं इसका सारा दोष आपको देती हूं ।

आपका मूड ठीक नही है वो आपके मन की स्थिति है लेकिन मैं अपने ऊपर नियंत्रण नही रख पाई । ये मेरी गलती है ।

ये सब इसलिए हो रहा है कि हमारे जीवन का समीकरण ही व्यवस्थित नही है ।

जिसके कारण जीवन मे बहुत सारे विवाद और उलझने आती है ।

हमने सोचा था कि मैं ये करूँगी तो मैं खुश होऊंगी बच्चे के अच्छे नंबर आएंगे तो मैं खुश होऊंगी , नौकरी होगी , शादी हो जाएगी तब मैं खुश होऊंगी मैने ये सोचकर पिज़्ज़ा बनाया की उसे खाकर बच्चों को अच्छे लगेगा ।

बच्चे बहुत खुश है , उनको खुश देखकर आप भी खुश है ।

उसी समय बॉस का फोन आता है और वाज किसी बात पर नाराज़ है ।

आप अचानक दुखी हो जाती हैं। इस परिस्थिति में खुश गुम होने में समय तो नही लगा ।

माना मेरा जीवन परिस्थितियों पर निर्भर हो चुका है ।

लोगो के मूड , स्वभाव – संस्कार पर मेरी मानसिक स्थिति निर्भर हो चुकी है तो मैं कैसे खुश रह सकती हूं ।

ये सारी परिस्थितियां बाहर की है तो अब प्रश्न उठता हौ की बहार की परिस्थिति हमारे अंदर की खुशी कैसे पैदा करेगी ?

जब मेरे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही कम है तब मुझे सभी प्रकार के संक्रमण हो जाते है ।

अगर मैं शरीर का अच्छे से ध्यान रखती हूं तो कोई वायरस अटैक नही कर सकता है ।

उसी प्रकार जब मैं अपने मन का अच्छे से ध्यान रखूंगी यो बाहर की परिस्थितियों का प्रभाव हमारे मन पर नही पड़ेगा

श्री बजरंग बाण Shri Bajrang Baan

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जय सियाराम,

बजरंग बाण पाठ से सारे दुःख और संताप मिट जाते है |

इंसान के भीतर से भय मिट जाता है |

बजरंग बलि की कृपा से शारीरिक और मानसिक शक्ति का विकास होता है |

दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥


दोहा :

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

बजरँग बाण, Bajrang Baan HARIHARAN Full HD Video

बजरँग बाण ,Bajrang Baan Lata Mangeshkar

Reference
1. Youtube
2. WebDuniya
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मैं खुश हूं ए यह बोलना मंत्र के समान है जो वातावरण बदल देगा

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जब हम स्कूल में थे तो उस समय तनाव नाम का कोई शब्द ही नहीं था।

तब हम कभी-कभी ये कहते थे थोड़ी -थोड़ी टेंशन होती है और वो भी परीक्षा से एक दिन पहले और रिजल्ट आने के पहले।

बाकी जीवन में टेंशन नाम का कोई शब्द ही नहीं था।

हमने तनाव का उसी स्तर पर ध्यान नहीं रखा तो पिछले 10-20 सालों में ये बढ़ता गया।

इसे आप एक समीकरण से समझ सकते हैं , स्ट्रेस इज इकवाल टू प्रेशर डिवाइडेड बाय रेजीलियंस।

क्याआपको लगता है पिछले 20 साल में दबाव और चुनौतियों का स्तर थोड़ा सा बढ़ गया है|

आंतरिक शक्ति जीवन की परिस्थितियों का सामना करने केलिए जरूरी होती है।

समायोजित करने की शक्ति,सहन करने की , क्षमा करने की , पावर टू लेट गोए ये सब हमारी आंतरिक शक्ति है जो पिछले 20 सालोंसे घटती जा रही है।


अब उस समीकरण को देखते हैं , न्यूमरेटर बढ़ गया और डिनॉमिनेटर घट गया और ये बहुत तीव्र गतिसे हुआ है।

अगर ये धीरे-धीरे होता तो हम उसकोअपना लेते।

लेकिन ये बहुत ही तेजी से हुआ है।न्यूमरेटर बहुत जल्दी बढ़ा और डिनॉमिनेटर बहुत तेज घटा है और फिर वो जो रिजल्ट आया वो स्ट्रेस नहीं , फिर वो एक अलग शब्द बन गया।

आजकल डिप्रेशन सिर्फ एक बीमारी का नाम नहीं रहा बल्कि यह बहुतों के लिए मूड का नाम हो चुका है।

लोग कहते भी हैं आज मैं बहुत डिप्रेस्ड अनुभव कर रहा हूं।

यहां तक कि सुबह उठके खिड़की खोल कर कहतेहैं आज मौसम कितना डिप्रेसिंग है।

अगर हम बार-बार कहते रहेंगे कि मैं तनाव अनुभव कर रहा हूं तो कहीं हमें एक दिन डॉक्टर के पास जाना ना पड़ जाए।

हमने कहा हम तनाव में हैं , तो सामने वाले ने कहा मैं तुम से ज्यादा तनाव में हूं।

और हमने एक -दूसरे से प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया क्योंकि हमने ये सोचा जिसको ज्यादा तनाव है वह ज्यादा सफल है।

अब हमें विश्व को बदलना है और यह कहना शुरू करना है मैं खुश हूं।

नहीं भी हैं तो बोलना शुरू कर दो।

यह एक मंत्र के समान है जो हमारे आस-पास के वातावरण को बदल देगा।

आजकल हम लो एनर्जी वाले मंत्र का उच्चारण कर रहे हैं। मैं तनावमें हूं, मैं बहुत ज्यादा तनाव में हूं।

मुझे उससे बहुत चिढ़ होती है, मैं बहुत ही ज्यादा व्यस्त हूं। ये एक- एक शब्द नकारात्मक शक्ति वाला है।

सारे दिन मेंअगर हमारी नकारात्मक शक्ति होगी तो हमारी सोच भी वैसी ही होगी। फिर हमें यह पता ही नहीं चलेगा कि नकारात्मकता क्यूं बढ़ती जा रही है।


हमें पता ही नहीं चलता कि मुझे तनाव है। जबकि इतने स्पष्ट लक्षण हैं , मन खुश नहीं होता, खाना खाने का मन नहीं करता रात को नींद नहीं आती, बाहर जाने का मन नहीं करता, किसी से बात करनेका मन नहीं करता इतने सारे लक्षण होने के वावजूदभी हमें या हमारे परिवार को क्यों नहीं पता चलता कि किसी को तनाव है।

क्योंकि हम ज्यादातर वैसे ही स्वभाव में जी रहे हैं।

हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

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दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

 जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
 रामदूत अतुलित बल धामा।अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

 महाबीर बिक्रम बजरंगी।कुमति निवार सुमति के संगी।। 
कंचन बरन बिराज सुबेसा।कानन कुंडल कुंचित केसा।। 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।कांधे मूंज जनेऊ साजै। 
संकर सुवन केसरीनंदन।तेज प्रताप महा जग बन्दन।। 

विद्यावान गुनी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।। 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।राम लखन सीता मन बसिया।। 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
 भीम रूप धरि असुर संहारे।रामचंद्र के काज संवारे।। 

लाय सजीवन लखन जियाये।श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
 रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

 सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।नारद सारद सहित अहीसा।। 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।राम मिलाय राज पद दीन्हा।। 

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
 जुग सहस्र जोजन पर भानू।लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
 दुर्गम काज जगत के जेते।सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। 

राम दुआरे तुम रखवारे।होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।तुम रक्षक काहू को डर ना।।

 आपन तेज सम्हारो आपै।तीनों लोक हांक तें कांपै।।
 भूत पिसाच निकट नहिं आवै।महाबीर जब नाम सुनावै।।

 नासै रोग हरै सब पीरा।जपत निरंतर हनुमत बीरा।। 
संकट तें हनुमान छुड़ावै।मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

 सब पर राम तपस्वी राजा।तिन के काज सकल तुम साजा। 
और मनोरथ जो कोई लावै।सोइ अमित जीवन फल पावै।।

 चारों जुग परताप तुम्हारा।है परसिद्ध जगत उजियारा।। 
साधु-संत के तुम रखवारे।असुर निकंदन राम दुलारे।। 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।अस बर दीन जानकी माता।। 
राम रसायन तुम्हरे पासा।सदा रहो रघुपति के दासा।।

 तुम्हरे भजन राम को पावै।जनम-जनम के दुख बिसरावै।। 
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।। 

और देवता चित्त न धरई।हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
 संकट कटै मिटै सब पीरा।जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। 

जै जै जै हनुमान गोसाईं।कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। 
जो सत बार पाठ कर कोई।छूटहि बंदि महा सुख होई।। 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
 तुलसीदास सदा हरि चेरा।कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 

 दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

Reference
1. Hanuman Chalisa
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श्री गणेश चालीसा Ganesh Chalisa

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।।दोहा।।

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।

।।चौपाई।।

जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ।।

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ।।

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ।।

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ।।

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ।।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ।।

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ।।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ।।

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ।।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ।।

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ।।

।।दोहा।।

श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ।।

Ganesh Chalisa By Anuradha Paudwal I Chalisa Sangrah

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1. GaneshChalisa
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