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मैं खुश हूं ए यह बोलना मंत्र के समान है जो वातावरण बदल देगा

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जब हम स्कूल में थे तो उस समय तनाव नाम का कोई शब्द ही नहीं था।

तब हम कभी-कभी ये कहते थे थोड़ी -थोड़ी टेंशन होती है और वो भी परीक्षा से एक दिन पहले और रिजल्ट आने के पहले।

बाकी जीवन में टेंशन नाम का कोई शब्द ही नहीं था।

हमने तनाव का उसी स्तर पर ध्यान नहीं रखा तो पिछले 10-20 सालों में ये बढ़ता गया।

इसे आप एक समीकरण से समझ सकते हैं , स्ट्रेस इज इकवाल टू प्रेशर डिवाइडेड बाय रेजीलियंस।

क्याआपको लगता है पिछले 20 साल में दबाव और चुनौतियों का स्तर थोड़ा सा बढ़ गया है|

आंतरिक शक्ति जीवन की परिस्थितियों का सामना करने केलिए जरूरी होती है।

समायोजित करने की शक्ति,सहन करने की , क्षमा करने की , पावर टू लेट गोए ये सब हमारी आंतरिक शक्ति है जो पिछले 20 सालोंसे घटती जा रही है।


अब उस समीकरण को देखते हैं , न्यूमरेटर बढ़ गया और डिनॉमिनेटर घट गया और ये बहुत तीव्र गतिसे हुआ है।

अगर ये धीरे-धीरे होता तो हम उसकोअपना लेते।

लेकिन ये बहुत ही तेजी से हुआ है।न्यूमरेटर बहुत जल्दी बढ़ा और डिनॉमिनेटर बहुत तेज घटा है और फिर वो जो रिजल्ट आया वो स्ट्रेस नहीं , फिर वो एक अलग शब्द बन गया।

आजकल डिप्रेशन सिर्फ एक बीमारी का नाम नहीं रहा बल्कि यह बहुतों के लिए मूड का नाम हो चुका है।

लोग कहते भी हैं आज मैं बहुत डिप्रेस्ड अनुभव कर रहा हूं।

यहां तक कि सुबह उठके खिड़की खोल कर कहतेहैं आज मौसम कितना डिप्रेसिंग है।

अगर हम बार-बार कहते रहेंगे कि मैं तनाव अनुभव कर रहा हूं तो कहीं हमें एक दिन डॉक्टर के पास जाना ना पड़ जाए।

हमने कहा हम तनाव में हैं , तो सामने वाले ने कहा मैं तुम से ज्यादा तनाव में हूं।

और हमने एक -दूसरे से प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया क्योंकि हमने ये सोचा जिसको ज्यादा तनाव है वह ज्यादा सफल है।

अब हमें विश्व को बदलना है और यह कहना शुरू करना है मैं खुश हूं।

नहीं भी हैं तो बोलना शुरू कर दो।

यह एक मंत्र के समान है जो हमारे आस-पास के वातावरण को बदल देगा।

आजकल हम लो एनर्जी वाले मंत्र का उच्चारण कर रहे हैं। मैं तनावमें हूं, मैं बहुत ज्यादा तनाव में हूं।

मुझे उससे बहुत चिढ़ होती है, मैं बहुत ही ज्यादा व्यस्त हूं। ये एक- एक शब्द नकारात्मक शक्ति वाला है।

सारे दिन मेंअगर हमारी नकारात्मक शक्ति होगी तो हमारी सोच भी वैसी ही होगी। फिर हमें यह पता ही नहीं चलेगा कि नकारात्मकता क्यूं बढ़ती जा रही है।


हमें पता ही नहीं चलता कि मुझे तनाव है। जबकि इतने स्पष्ट लक्षण हैं , मन खुश नहीं होता, खाना खाने का मन नहीं करता रात को नींद नहीं आती, बाहर जाने का मन नहीं करता, किसी से बात करनेका मन नहीं करता इतने सारे लक्षण होने के वावजूदभी हमें या हमारे परिवार को क्यों नहीं पता चलता कि किसी को तनाव है।

क्योंकि हम ज्यादातर वैसे ही स्वभाव में जी रहे हैं।

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