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पद्मनाभ मंदिर

भारत के केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पूर्वी किले के भीतर स्थित श्री पद्मनाथ स्वामी मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है। यह मंदिर केरल और द्रविड़ वास्तुशिल्प शैली का अनुपम उदाहरण है। इसे दुनिया का सबसे धनी मंदिर माना जाता हैं

देश के सबसे अमीर मंदिरो में इस मंदिर का नाम सबसे पहले आता है। यह मंदिर केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित है।

भगवान विष्णु के अवतार भगवान पद्मनाभय को समर्पित, तिरुवनंतपुरम में प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। सदियों पुराने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का वर्णन ब्रह्म पुराण, मत्स्य पुराण, वराह पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण, वायु पुराण और भागवत पुराण जैसे कई हिंदू शास्त्रों में किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार महाभारत में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।

इतिहासकारों का कहना है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर 8वीं शताब्दी का है। वास्तुकला की चेरा शैली में बना यह मंदिर केरल और पड़ोसी राज्यों के लिए अद्वितीय है, क्योंकि इसका निर्माण स्थानीय मौसम और हवा की दिशा को ध्यान में रखते हुए किया गया था। चेरा शैली में बने मंदिर आमतौर पर वर्गाकार, आयताकार, अष्टकोणीय या तारे के आकार के होते हैं। इस मंदिर की देखभाल त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार द्वारा की जाती है। इस मंदिर के खजाने में हीरे, सोने के गहने और सोने की मूर्तियां शामिल हैं। इस मंदिर के खजाने में 6 तिजोरियां शामिल है। इनमें कुल 20 अरब डॉलर की संपत्ति है। इतना ही नहीं मंदिर के गर्भग्रह में भगवान विष्णु की विशाल सोने की मूर्ति भी विराजमान है। इस मुर्ति की कीमत 500 करोड़ रुपये है। साल 2021 में इस मंदिर में कुल 833 करोड़ रुपए का चढ़ावा आया था।

केरल के तिरुअनंतपुरम का नाम भगवान विष्णु को समर्पित कर रखा गया था। इसे भगवान अनन्त का शहर भी कहा जाता है और प्रख्यात श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर भी स्थित है। पद्मनाभ स्वामी, भगवान विष्णु की नाभि से खिलते हुए कमल पर बैठे भगवान ब्रह्मा (निर्माता) के उद्भव को दर्शाता है।

पद्मनाभ स्वामी नाम, जहां ‘पद्म’ कमल को संदर्भित करता है, ‘नाभ’ का अर्थ नाभि और ‘स्वामी’ भगवान है। यहां, भगवान पद्मनाभ स्वामी को आदि शेष (जिसे शेष नाग के नाम से भी जाना जाता है) पर लेटे हुए (अनंत शयनम, जिसका अर्थ शाश्वत नींद की स्थिति है) मुद्रा में देखा जाता है।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास 8वीं सदी से मिलता है। यह विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में एक है जिसे भारत का दिव्य देसम भी कहते हैं। दिव्य देसम भगवान विष्णु का सबसे पवित्र निवास स्थान है जिसका उल्लेख तमिल संतों द्वारा लिख गए पांडुलिपियों में मिलता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान विष्णु हैं जो भुजंग सर्प अनंत पर लेटे हुए हैं।भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु-भक्तों की महत्वपूर्ण आराधना-स्थली है। मंदिर की संरचना में सुधार कार्य किए गए जाते रहे हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर दूर से यहाँ आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के ‘अनंत’ नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।

तिरुअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर केरल के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। केरल संस्कृति एवं साहित्य का अनूठा संगम है। इसके एक तरफ तो खूबसूरत समुद्र तट है और दूसरी ओर पश्चिमी घाट में पहाडि़यों का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य, इन सभी अमूल्य प्राकृतिक निधियों के मध्य स्थित- है पद्मनाभ स्वामी मंदिर। इसका स्थापत्य देखते ही बनता है मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का भी कमाल देखने योग्य है।

मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो ‘पद्मतीर्थ कुलम’ के नाम से जाना जाता है।

यह अपने अथाह धन-संपत्ति के कारण चर्चा में रहता है और इसी के साथ एक ऐसी चीज भी इस मंदिर से जुड़ी है, जो आज तक रहस्य बनी हुई है। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर में कई गुप्त तहखाने बने हैं, जिनमें से कुछ को तो अतीत में खोला जा चुका है, लेकिन एक दरवाजा ऐसा है, जिसे खोल पाना नामुमकिन है।

ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस दरवाजे को खोल पाना किसी के लिए संभव नहीं है और न ही कोई बता सकता है कि इसके पीछे आखिर क्या गहरा राज छिपा है। यह रहस्यमयी दरवाजा वॉल्ट बी के नाम से जाना जाता है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर त्रिवेंद्रम का इतिहास

हालांकि मंदिर निर्माण की सही तारीख ज्ञात नहीं है, मंदिर का सबसे पहला उल्लेख 9वीं शताब्दी का है।

बाद में, 15वीं शताब्दी के दौरान, गर्भगृह की छत की मरम्मत की गई, जैसा कि ताड़ के पत्तों के अभिलेखों में बताया गया है। परिसर में ओट्टक्कल मंडपम लगभग उसी समय बनाया गया था। और 17 वीं शताब्दी के मध्य में, राजा अनिज़म थिरुनल मार्तंड वर्मा ने मंदिर में बड़े नवीनीकरण का आदेश दिया।

गर्भगृह का पुनर्निर्माण किया गया था, और पुरानी मूर्ति को 12,008 शालिग्राम पत्थरों और विभिन्न जड़ी-बूटियों से बनी मूर्ति से बदल दिया गया था, जिसे सामूहिक रूप से कटु-शरकारा कहा जाता था। 1739 तक, मूर्ति पर काम पूरा हो गया था। राजा ने पत्थर का गलियारा, द्वार और झण्डा भी बनवाया।

फिर, 1750 में, उन्होंने त्रिप्पदीनम समारोह में अपना राज्य भगवान को समर्पित कर दिया।

1758 में, स्तंभित आउटडोर हॉल – कार्तिक मंडपम, राजा कार्तिक थिरुनल राम वर्मा द्वारा बनाया गया था। और 1820 में रानी गौरी पार्वती बाई के समय में विशाल अनंत श्याना भित्ति चित्र बनाया गया था।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के इतिहास में एक और बड़ी घटना 1936 में चिथिरा थिरुनल राम वर्मा के शासनकाल के दौरान दर्ज की गई थी। उन्होंने मंदिर में प्रत्येक हिंदू जाति और पंथ को अनुमति देने के लिए क्षेत्र प्रवेश विलाम्ब्रम (या मंदिर प्रवेश उद्घोषणा) की रूपरेखा तैयार की।

मसालों के व्यापार से आई संपत्ति

माना जाता है कि मार्तंड वर्मा ने पुर्तगाली समुद्री बेडे और उसके खजाने पर भी कब्जा कर लिया था। यूरोपीय लोग मसालों खासकर काली मिर्च के लिए भारत आते थे। त्रावणकोर ने इस व्यवसाय पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था।मसालों के व्यापार से राज्य को काफी फायदा होता था और इस संपत्ति को इस मंदिर में रख दिया जाता था। सही मायनों में तो पूरे राज्य की संपत्ति को ही मंदिर में रखा गया था।

विदेशी हमलों से सुरक्षित रहा मंदिर

यह मंदिर एक ऐसे इलाके में बना हुआ है जहां कभी कोई विदेशी हमला नहीं हुआ। 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे की कोशिश की थी लेकिन कोच्चि में उसे हार का सामना करना पड़ा था।

टीपू से पहले भी इस मंदिर पर हमले और कब्जे की कोशिशें की गई थीं लेकिन यह कोशिशें कभी कामयाब नहीं हो पाईं। मंदिर के खजाने और वैभव की कहानियां दूर-दूर तक फैली हुई थीं और आक्रमणकारी इस पर कब्जा करना चाहते थे।

श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर का धार्मिक महत्त्व

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की सबसे पहली प्रतिमा इसी स्थान से मिली थी। जिसके बाद इस स्थान पर भगवान का मंदिर बनवा दिया गया। वह दूसरी एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर प्रकट होकर तीन स्थानों को वैकुंठ कहा और वही विराजमान हो गए। उन्हीं तीन प्रमुख स्थानों में से एक तिरुअनन्तपुरम है।

श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड ने करवाया था। इस मंदिर में  द्रविड़ एवं केरल वास्तु कला का मिला जुला प्रयोग देखने को मिलता है।मंदिर का महत्व यहाँ के पवित्र परिवेश से और बढ जाता है। मंदिर में धूप-दीप का प्रयोग एवं शंखनाद होता रहता है। मंदिर का वातावरण मनमोहक एवं सुगंधित रहता है। मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर के सौदर्य में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक़्क़ाशी की गई है जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहनना अनिवार्य है। इस मन्दिर में हिन्दुओं को ही प्रवेश मिलता है। मंदिर में हर वर्ष ही दो महत्वपूर्ण उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिनमें से एक मार्च एवं अप्रैल माह में और दूसरा अक्टूबर एवं नवंबर के महीने में मनाया जाता है। मंदिर के वार्षिकोत्सवों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेने के लिए आते हैं तथा प्रभु पद्मनाभस्वामी से सुख-शांति की कामना करते हैं।

सोलहवीं सदी में बना था मंदिर

 इसे सोलहवीं सदी में त्रावणकोर के राजाओं ने ने बनाया था, जिसके हिसाब से यह लगभग 5000 साल पुराना है। ऐसा भी कहा जाता है कि त्रावणकोर के राजा भगवान विष्णु के परम भक्त हुआ करते थे और उन्होंने अपना सब कुछ भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया था। उसके बाद 1750 में महाराज मार्तण्ड वर्मा ने खुद को भगवान का दास घोषित किया, जिसके बाद से मंदिर की देखरेख राजघराना करने लगा।

भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में भगवान की इतनी बड़ी मूर्ति है कि उनके दर्शन मंदिर में बने तीन दरवाजों से की जा सकती है। पहले द्वार से देवता का सिर दिखाई देता है, केंद्र में द्वार से भक्त भगवान की नाभि से खिलते हुए कमल को देख सकता है और अंतिम द्वार से उनके चरण देख सकते हैं।

माना जाता है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ऐसे स्थान पर स्थित है जो सात परशुराम क्षेत्रों में से एक है। स्कंद पुराण और पद्म पुराण में इस मंदिर का संदर्भ मिलता है। यह मंदिर पवित्र टंकी पद्म तीर्थम यानी ‘कमल जल’ के पास है ।

यह मंदिर अब एक ट्रस्ट चलाता है जिसका नेतृत्व त्रावणकोर के पूर्ववर्ती राज परिवार के पास है।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में पूजा करने का समय

सुबह का समय – 03:30 बजे से 04:45 बजे तक (निर्माल्य दर्शन) 06:30 बजे से 07:00 बजे तक 8.30 बजे से 10:00 बजे तक 10:30 बजे से 11:10 बजे तक 11:45 बजे से 12:00 बजे तक शाम का समय – 05:00 बजे से 06:15 बजे तक 06:45 बजे से 07:20 बजे तक

 त्यौहारों के समय मंदिर में पूजा करने के समय बदलते रहते हैं।

मंदिर में पोशाक पहनने का नियम

मंदिर में केवल हिंदु ही प्रवेश कर सकते हैं। पोशाक पहनने का सख्त नियम है जिसका पालन मंदिर में प्रवेश करते समय करना होता है। पुरुषों को मुंडु या धोती (जो कमर में पहना जाता है और नीचे ऐड़ी तक जाता है) और किसी भी तरह की कमीज़ या शर्ट की अनुमति नहीं है। महिलाओं को साड़ी, मुंड़ुम नेरियतुम (सेट- मुंडु), स्कर्ट और ब्लाउज़ या आधी साड़ी पहनना होता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर किराए पर धोती उपलब्ध रहते हैं। आजकल मंदिर के अधिकारी भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पैंट या चूड़ीदार के ऊपर धोती पहनने की अनुमति दे रहे है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में किंवदंती

मंदिर की नींव की तारीख अज्ञात है। लेकिन प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इसकी स्थापना लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुई थी।

मंदिर में ताड़ के पत्ते के अभिलेखों में उल्लेख है कि ऋषि दिवाकर मुनि विलवमंगलम ने इसकी स्थापना की थी। उन्होंने पद्मनाभस्वामी मंदिर कासरगोड में अनुष्ठान किया, जिसे अनंतपुरा झील मंदिर भी कहा जाता है। और उस मंदिर को अनंत पद्मनाभस्वामी का मूल आसन (मूलस्थानम) कहा जाता है।

किंवदंतियों के अनुसार, भगवान विष्णु एक अनाथ बच्चे के रूप में ऋषि विल्वमंगलम के सामने प्रकट हुए थे। ऋषि को दया आई और उन्होंने उसे मंदिर में रहने की अनुमति दी। उन्होंने मंदिर की दैनिक गतिविधियों में उनकी मदद ली। एक दिन, विलवमंगलम ने बच्चे पर कठोर कार्रवाई की, जो फिर जंगल की ओर भाग गया।

लेकिन, विलवमंगलम को जल्द ही एहसास हो गया कि वह लड़का स्वयं भगवान विष्णु थे। तो, वह उसे खोजने गया। वह एक गुफा के अंदर उसका पीछा करता था, जो आज के तिरुवनंतपुरम की ओर जाता है। लड़का फिर एक महुआ के पेड़ में गायब हो गया। पेड़ गिर गया और एक हजार हुड वाले नाग – आदि शेष पर लेटे हुए भगवान विष्णु का रूप ले लिया।

इस अनंतशयनम मुद्रा में भगवान विष्णु का आकार 8 मील तक बढ़ा, और ऋषि विलवमंगलम ने उनसे छोटे आकार में संघनित होने का अनुरोध किया। भगवान सिकुड़ गए, लेकिन फिर भी, ऋषि उन्हें पूरी तरह से नहीं देख सके। वृक्षों ने उनके विचार में बाधा डाली, और वे भगवान अनंत को तीन भागों में देख सकते थे – चेहरा, पेट क्षेत्र और पैर।

त्रिवेंद्रम (तिरुवनंतपुरम) में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के दरवाजे बड़ी मूर्ति को उसी तरह दिखाते हैं जैसे ऋषि ने भगवान को देखा था।

त्रावणाकोर के राजाओं ने बनवाया था मंदिर

भगवान विष्णु को समर्पित श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर को 6वीं सदी में त्रावणाकोर के राजाओं ने बनवाया था। जिसका जिक्र 9वीं सदी के ग्रंथों में मिलता है। त्रावणाकोर राजघरानों ने भगवान पद्मनाभस्वामी को अपना जीवन और संपत्ति सब कुछ सौंप दिया था। साल 1750 में महाराज मार्तेंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ दास बताया था। इसके बाद से राजघराना ही मंदिर की देखरेख का काम करता है और मंदिर से एक कण तक अपने साथ नहीं ले जाते। बताया जाता है कि राजघराने के लोग आज भी मंदिर से निकलते समय पैर साफ करके निकलते हैं ताकि मंदिर का कण भी उनके साथ ना आ जाए।

मिले थे कई कीमती हीरे-स्टोन

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के 6 तहखानों में अब तक 1,32,000 करोड़ की संपत्ति मिल चुकी है। इनमें भगवान विष्णु की साढ़े तीन फुट की एक सोने की मूर्ति मिली थी, जिनमें कीमती हीरे और पत्थर जड़े हुए थे। वहीं 18 फुट लंबी सोने की चेन भी मिली थी। साथ ही काफी मात्रा में हीरे और कीमती स्टोन प्राप्त हुए थे।

शापित माना जाता है सातवां दरवाजा

जैसे ही सातवें दरवाजे यानी वॉल्ट बी के पास पहुंचे तो दरवाजे पर बने कोबरा सांप के चित्र को देखकर काम को रोक दिया गया। लोगों में मान्यता है कि अगर सातवां दरवाजा खुला तो कुछ अशुभ घटना घट सकती है। मान्यताओं के अनुसार, त्रावणाकोर के राजाओं ने बेशकीमती खजाने को इस मंदिर के तहखाने और मोटी दीवारों के पीछे छुपाया था। जिसे हजारों सालों तक किसी ने खोला नहीं और इस तरह बाद में इस तहखाने को शापित माना गया।

 दो सांप करते हैं दरवाजे की रक्षा

बताया जाता है कि एक बार किसी ने सातवें दरवाजे को खोलने की कोशिश की थी लेकिन जहरीले सांपों के काटने से उसकी मौत हो गई। दरअसल ये दरवाजा स्टील का बना हुआ है और इस पर दो सांप बने हुए हैं। जो इस दरवाजे की रक्षा करते हैं। इस दरवाजे में कोई नट-बोल्ट या ताला नहीं लगा हुआ है। कहा जाता है कि इस दरवाजे को नाग बंधम या नाग पाशम मंत्रों के प्रयोग से बांधा गया है।

दो

मंत्रों से खुलता है मंदिर का दरवाजा

पद्मनाभ स्वामी मंदिर में सातवें तहखाने को गरुड़ मंत्र के सटीक मंत्रोच्चार करके ही खोला जा सकेगा। अगर मंत्र में कोई गलती हो गई तो उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन ऐसा कोई सिद्ध पुरुष नहीं मिला जो इस मंदिर की गुत्थी को सुलझा सके। माना जाता है कि इस मंदिर में दो लाख करोड़ से अधिक मूल्य के आभूषण और कीमती खजाने हैं लेकिन इतिहासकार इससे कहीं अधिक मानते हैं।

आज तक बना हुआ है रहस्य

वैदिक साधना करने वाले कई साधु-संतों ने मंदिर का दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया है। सातवें दरवाजे के पीछे कितना धन है यह अलग बात है लेकिन इतना जरूर है कि यह दरवाजा आज तक रहस्य बना हुआ है। वहीं मान्यता यह भी है कि यह तहखाना भगवान के पास तक जाता है इसलिए भगवान भी नहीं चाहते कि यह दरवाजा खोला जाए।

यहाँ भगवान विष्णु का दर्शन तीन हिस्सों में होते हैं।

पहले द्वार से भगवान विष्णु का मुख एवं सर्प की आकृति के दर्शन होते हैं।

दूसरे द्वार से भगवान का मध्यभाग तथा कमल में विराजमान ब्रह्मा के दर्शन होते हैं।

तीसरे भाग में भगवान के श्री चरणों के दर्शन होते हैं।

विशेषता

पवित्र कुंड, कुलशेकर मंडप और नवरात्रि मंडप इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाते हैं। 260 साल पुराने इस मंदिर में केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते हैं। इस मंदिर का नियंत्रण त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा किया जाता है। इस मंदिर में हर वर्ष ही दो महत्त्वपूर्ण वार्षिकोत्सव मनाए जाते हैं – एक पंकुनी के महीने (15 मार्च- 14 अप्रैल) में और दूसरा ऐप्पसी के महीने (अक्टूबर – नवंबर) में। मंदिर के इन वार्षिकोत्सवों मे लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेने के लिए आते हैं तथा प्रभु से सुख शांति की कामना करते हैं।

पद्मनाभस्वामी मंदिर से जुड़ी कुछ  रोचक बाते

1.यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया।

2.) त्रवंकोरे शाही मुकुट मंदिरों में रखा है यह मुकुट 18 वी सदी के त्रवंकोरे के राजा का है और शाही परिवार के सदस्य उनकी और से राज करते है। यह शाही मुकुट हमेशा त्रवंकोरे मंदिर में सुरक्षित रहता है।

3). इस मंदिर में लंबे समय से नृत्य चलता आ रहा है इसके सहारे से बिना किसी की मदद से पद्मनाभ मंदिर का खजाना दुसरे सभी खजानों से अधिक है। 2011 में इस मंदिर का तहखाना खुला जिसमे इतना धन निकला की यह मंदिर दुनिया का सबसे अमीर  मंदिर बन गया। इसके पहले मुगल खजाना 90$ बिलियन का सबसे बड़ा था।

4. पद्मनाभस्‍वामी के खजाने में मिली वस्‍तुओं में सबसे ज्‍यादा आकर्षण का केंद्र रहा 18 फुट लंबा सोने का हार है, जो 10.5 किलो का है। करीब 536 किलो सोने के भारतीय सिक्‍के, 20 किलो सोने के ब्रिटिश सिक्‍के।

5). बताया जाता है कि ये दुनिया का सबसे धनी हिंदू मंदिर है जिसमें बेशकीमती हीरे-जवाहरात जड़े हैं। इस दरवाजे को सिर्फ कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है। इस मंदिर को किसी भी तरह खोला गया तो मंदिर नष्ट हो सकता है, जिससे भारी प्रलय तक आ सकती है। दरअसल ये दरवाजा स्टील का बना है। इस पर दो सांप बने हुए हैं, जो इस द्वार की रक्षा करते हैं। इसमें कोई नट-बोल्ट या कब्जा नहीं हैं।

मंदिर एक ऐसे इलाके में बना हुआ है जहां कभी कोई विदेशी हमला नहीं हुआ। 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे की कोशिश की थी, लेकिन कोच्चि में उसे हार का सामना करना पड़ा था। टीपू से पहले भी इस मंदिर पर हमले और कब्जे की कोशिशें की गई थीं, लेकिन यह कोशिशें कभी कामयाब नहीं हो पाईं।

राजपरिवार करता है मंदिर की देख-रेख

त्रावणकोर 1949 में ही भारतीय संघ में शामिल हो गया था, लेकिन मंदिर का प्रबंधन अब भी राजपरिवार के लोगों के पास है। प्राचीनकाल में त्रावणकोर की सीमाएं कन्याकुमारी से एर्नाकुलम स्थित अलुवा तक फैली थीं। उस वक्त केरल की राजधानी पद्मनाभपुरम (अब तमिलनाडु में) थी। बाद में तिरुअनंतपुरम को इसकी राजधानी बना दिया गया।  पद्मनाभस्वामी मंदिर 108 दिव्य देशम (विष्णु के पवित्र निवास) में से एक है – वैष्णववाद में देवता की पूजा के प्रमुख केंद्र। मंदिर ने केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम को अपना नाम दिया। ‘थिरु’ ‘अनंत’ ‘पुरम’ का अर्थ है ‘भगवान अनंत पद्मनाभ का पवित्र निवास।’

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में मुख्य देवता आदि शेष या सभी नागों के राजा पर ‘अनंत शयन’ मुद्रा (शाश्वत योग की झुकी हुई मुद्रा) में भगवान विष्णु के हैं।

मंदिर को आजादी के बाद से त्रावणकोर शाही परिवार के वंशजों द्वारा संचालित एक ट्रस्ट द्वारा नियंत्रित किया गया है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर की वास्तुकला

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर त्रिवेंद्रम पत्थर और कांस्य में विस्तृत काम के लिए खड़ा है। वास्तुकला द्रविड़ स्थापत्य शैली और केरल शैली का एक संलयन है, और मंदिर तिरुवत्तर के आदि केशव पेरुमल मंदिर जैसा दिखता है। यहां तक ​​कि देवता भी एक जैसे दिखते हैं, लेटे हुए मुद्रा में।

शानदार सात-स्तरीय उच्च गोपुरम, विस्तृत डिजाइनों के साथ, पहली संरचना है जिसे आप देखेंगे। अंदर का बड़ा गलियारा सुंदर नक्काशीदार पत्थर के खंभों और विभिन्न हिंदू देवताओं की मूर्तियों द्वारा समर्थित है। मंदिर के विभिन्न हिस्सों में दीवारों और छतों पर सुंदर भित्ति चित्र भी सुशोभित हैं।

गर्भगृह के अंदर, श्री पद्मनाभ आदि शेष पर लेटे हुए हैं, जिनके फन उनके सिर पर एक छाता बनाते हैं। गर्भगृह में तीन दरवाजे हैं जिनसे आप भगवान पद्मनाभ की 18 फुट की लेटी हुई मूर्ति को देख सकते हैं।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर खजाना

पद्मनाभस्वामी मंदिर दुनिया का सबसे अमीर मंदिर है। त्रावणकोर के शाही परिवार की अध्यक्षता में पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट संपत्ति की देखभाल करता है।

खजाना कई हजारों वर्षों में संचित मूल्यवान वस्तुओं का संग्रह है। इसमें दुनिया भर के शासकों और व्यापारियों द्वारा दान किए गए सिक्के, मूर्तियाँ, आभूषण और कई अन्य कीमती कलाकृतियाँ शामिल हैं।

सूची में दक्षिण भारतीय राज्यों के राजा जैसे चेरा, पांड्य और पल्लव, ग्रीस, यरुशलम, रोम के शासक और अन्य व्यापारी शामिल हैं जो मंदिर में दर्शन करने आए थे। यूरोप की विभिन्न औपनिवेशिक शक्तियों से भी चंदा मिला।

और अपने धन के कारण, मंदिर को विभिन्न साहित्यों में स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

ताड़ के पत्तों के रिकॉर्ड पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने और मंदिर को दान किए गए सोने और कीमती पत्थरों के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।

हजारों वर्षों से त्रिवेंद्रम और उसके आसपास सोने का खनन किया जाता रहा है। और यह क्षेत्र व्यापार का केंद्र भी रहा है। इसलिए, भक्तों से प्रसाद के रूप में सोना मंदिर में आया। दक्षिणी भारत के कई शाही परिवारों ने भी अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर की तिजोरियों में जमा किया था।

साथ ही, रानी गौरी लक्ष्मी बाई के शासनकाल के दौरान, केरल में कई मंदिरों को शाही शासन के तहत खरीदा गया था। और उन मंदिरों के गहने और अन्य कीमती सामान पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखानों में रखे गए थे। त्रावणकोर साम्राज्य ने भी कई शासकों को शरण दी जिन्होंने तब अपना कीमती सामान भगवान पद्मनाभ को दान कर दिया था।

अधिकांश अभिलेखों का अध्ययन किया जाना बाकी है, और छह ज्ञात तिजोरियों में से एक को अभी तक नहीं खोला गया है। अधिकारियों ने बाद में दो तहखानों की भी खोज की, दोनों का पता नहीं चला।

पद्मनाभस्वामी मंदिर वाल्ट

सदियों से ढेर की गई अपार संपत्ति मंदिर परिसर के भीतर कई तहखानों में जमा है। और अनुमान के मुताबिक कीमत कई हजार करोड़ में है।

तिजोरी सी और एफ समय-समय पर अनुष्ठानों और समारोहों के लिए खोले जाते हैं, और तिजोरी ए और अन्य कक्ष सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खोले गए थे। सोने के सिक्कों से लेकर कीमती पत्थर के गहने और सजावटी सामान से लेकर अन्य दैनिक उपयोग के उत्पादों तक, खजाना अतीत की भव्यता का जीवंत प्रदर्शन है।

तिजोरी ए : इस कक्ष में खोजे गए खजाने की सबसे अधिक मात्रा थी। तिजोरी में सोने के सिक्कों से भरे लकड़ी के बड़े-बड़े बक्से और कीमती पत्थरों की बोरियां रखी हुई थीं। ढेर में हजारों वस्तुओं में हार, पदक और हेडसेट शामिल थे। सोने के कमल, आरती के लिए इस्तेमाल होने वाले सोने के दीये और देवता के लिए औपचारिक पोशाकें भी मिलीं।

तिजोरी बी : पद्मनाभस्वामी मंदिर की तिजोरी बी अभी भी नहीं खोली गई है। प्रचलित कहानियों से डर है कि यह मंदिर और इसमें शामिल लोगों के लिए दुर्भाग्य ला सकता है। मान्यताओं के अनुसार, यह गुप्त कक्ष मुख्य मंदिर के नीचे फैला हुआ है, और इसमें सोने और चांदी के बिस्कुट हैं। तिजोरी बी के भीतर आभूषण और घंटियों के टुकड़े भी मौजूद होने का अनुमान है।

तिजोरी सी : इस तिजोरी में विशेष समारोहों के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुएं हैं। देवता को सुशोभित करने के लिए सोने के आभूषणों के साथ, तिजोरी सी में सोने की गदा, सोने के नारियल के गोले और अन्य चीजें हैं। विशेष अनुष्ठानों और त्योहारों के लिए सोने की छतरियां और सोने की सर्प हुड जैसी धार्मिक चीजें भी यहां रखी जाती हैं।

तिजोरी डी : इस कक्ष में मुख्य रूप से मंदिर में विशेष समारोहों और उत्सवों के दौरान गरुड़वाहन को सजाने के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुएं शामिल हैं।

तिजोरी ई : तिजोरी ई में दैनिक पूजा के लिए आवश्यक धार्मिक वस्तुएं हैं। आपको कक्ष के अंदर दीपराधना की प्लेटें भी मिलेंगी।

तिजोरी एफ : छठे तिजोरी में दैनिक पूजा के लिए आइटम भी हैं, साथ ही अनुष्ठान के लिए भगवान पद्मनाभ की तीन मूर्तियां भी हैं।

छह तिजोरियों के अलावा, अधिकारियों ने मंदिर में दो और तहखानों की पहचान की। इन्हें जी और एच के रूप में गिना जाता है और माना जाता है कि ये मंदिर में किए गए प्रसाद और दान को धारण करते हैं।

पद्मनाभस्वामी मंदिर तिजोरी बी का रहस्य

पद्मनाभस्वामी मंदिर के गुप्त दरवाजों में से एक रहस्यमयी तिजोरी को सुरक्षित करता है। बी. पुजारियों और विद्वानों का मानना ​​है कि इस कक्ष में पौराणिक प्राणी निवास करते हैं, और भगवान विष्णु के उग्र नरसिंह अवतार इस तिजोरी की रक्षा करते हैं। साथ ही तिजोरी के दरवाजे पर नाग की छवि खतरे की ओर इशारा करती है।

अधिकारियों ने अदालत के आदेशों के तहत इसे खोलने की कोशिश की, लेकिन एंटी-चेंबर से आगे नहीं जा सके। याचिकाकर्ता की असामयिक मृत्यु और एक अन्य पर्यवेक्षक की मां की मृत्यु ने मिथक में विश्वास को मजबूत किया।

एक कहानी के अनुसार, लोगों के एक समूह ने कुछ दशक पहले तिजोरी को खोलने की कोशिश की और उसे कोबरा से भरा हुआ पाया। किंवदंतियों का कहना है कि ऋषियों ने शक्तिशाली नागा पासम मंत्रों के साथ दरवाजा बंद कर दिया है। और लोगों का मानना ​​है कि गरुड़ मंत्र का जाप करने से केवल एक सिद्ध संत ही नागा पासम को दूर कर सकता है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर के अंदर मंदिर

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर तिरुवनंतपुरम को इसकी स्थापत्य भव्यता, ऐतिहासिक महत्व, आध्यात्मिक महत्व और कई अन्य कारणों के कारण महा-क्षेत्रम (महान मंदिर) माना जाता है।

मुख्य मंदिर के अंदर, भगवान पद्मनाभ (भगवान विष्णु का एक अवतार) की 18 फुट की कटु-शर्करा मूर्ति नाग आदि शेष (जिसे अनंत शेष के रूप में भी जाना जाता है) पर टिकी हुई है। मूर्ति 12,008 शालिग्राम से बनी है, और इसे गर्भगृह के तीन दरवाजों से देखा जा सकता है।

पहले दरवाजे से आप देवता का चेहरा और ऊपरी शरीर देख सकते हैं। दाहिना हाथ एक शिव लिंगम पर टिका हुआ है। मूर्ति लक्ष्मी देवी (समृद्धि की देवी) और भू देवी (पृथ्वी की देवी) से घिरी हुई है। और गर्भगृह के भीतर शिव की उपस्थिति विष्णु को समर्पित इस महाक्षेत्र की पवित्रता को जोड़ती है।

आपको मंदिर के कई अन्य हिस्सों में दीवारों पर भगवान शिव के चित्र देखने को मिलेंगे।

मंदिर का दूसरा द्वार देवता की नाभि से निकलने वाले कमल के फूल पर भगवान ब्रह्मा की एक झलक प्रदान करता है। और तीसरे दरवाजे से आप भगवान पद्मनाभ के चरण देख सकते हैं।

भगवान पद्मनाभ के मंदिर के साथ, मंदिर परिसर में कई अन्य देवताओं के मंदिर हैं। आपको नरसिंह को समर्पित एक मिलेगा, जो एक अंश-शेर और विष्णु का एक अंश-पुरुष अवतार है। एक और महत्वपूर्ण मंदिर पार्थसारथी के सम्मान में बनाया गया है – भगवान कृष्ण एक सारथी की भूमिका में। भगवान कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के एक और अवतार हैं।

इसके अलावा, पद्मनाभस्वामी मंदिर में भगवान गणेश (हाथी भगवान), भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान के साथ, और संस्था (शिक्षा के देवता) के मंदिर हैं।मंदिर परिसर में एक अलग तिरुवंबाडी श्री कृष्णस्वामी मंदिर भी है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर परिसर के भीतर अन्य आकर्षण

पवित्र मंदिरों के अलावा, पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल में कुछ अन्य महत्वपूर्ण चीजें भी हैं जिन्हें आपको अवश्य देखना चाहिए।

ओट्टक्कल मंडपम : यह भगवान पद्मनाभ के गर्भगृह के सामने एक एकल पत्थर का मंच है। यह ग्रेनाइट से बना बीस वर्ग फुट का चबूतरा है, जो ढाई फुट मोटा है। भगवान के दर्शन के लिए आपको मंच पर चढ़ना होगा। ओट्टक्कल मंडपम का उपयोग श्री पद्मनाभस्वामी को अभिषेक (स्नान समारोह) करने के लिए भी किया जाता है।

अभिश्रवण मंडपम : यह मंदिर परिसर के भीतर मौजूद एक पत्थर की संरचना है। अभिश्रवण मंडपम ओट्टक्कल मंडपम के सामने है, और इसका उपयोग मंदिर में विभिन्न त्योहारों के दौरान विशेष पूजा के दौरान किया जाता है। भक्त इस मंडपम का उपयोग भगवान का ध्यान और प्रार्थना करने के लिए भी करते हैं।

कुलशेखर मंडपम : कुलशेखर मंडपम पत्थर से निर्मित एक और वास्तुशिल्प चमत्कार है। संरचना 28 स्तंभों द्वारा समर्थित है, प्रत्येक नक्काशीदार आकृतियों से सुशोभित है। जब आप उन्हें टैप करते हैं तो खंभे अलग-अलग संगीत नोट्स उत्पन्न करते हैं। इस मंडपम को आयरामकाल मंडपम या सप्तस्वर मंडपम के नाम से भी जाना जाता है।

ध्वज स्तम्भम : ध्वज स्तम्भ पूर्वी गलियारे के पास 80 फीट ऊंचा ध्वज-कर्मचारी है। यह सागौन की लकड़ी से बना है और सोने की पन्नी से ढका हुआ है। ध्वज-कर्मचारियों के शीर्ष पर गरुड़ स्वामी की एक आकृति है, जो भगवान द्वारा अपने वाहन के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला पवित्र पक्षी है। आकृति घुटने टेकने की मुद्रा में है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर घड़ी : घंटाघर – मंदिर के प्रवेश द्वार के पास, मीथेन मणि, एक और स्थान है जिसे आपको अपनी यात्रा के दौरान याद नहीं करना चाहिए। यह पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित एक सुंदर प्राचीन घड़ी है।

श्रीबलिपुरा : श्रीबलिपुरा पत्थर से बना एक शानदार आयताकार गलियारा है। अभिलेखों के अनुसार, इस पत्थर के गलियारे को बनाने के लिए 4000 कारीगरों, 6000 मजदूरों और 100 हाथियों ने अथक परिश्रम किया, जो मंदिर के मुख्य मंदिरों को घेरे हुए है। यह 365 और एक चौथाई मोनोलिथ स्तंभों द्वारा समर्थित है। अल्पासी और पेनकुनी त्योहारों के दौरान श्रीबलिपुरा के माध्यम से विशेष श्रीबाली जुलूस निकाला जाता है।

गोपुरम : पद्मनाभस्वामी मंदिर में नौ प्रवेश द्वार हैं, जो मानव शरीर के नौ छिद्रों को दर्शाते हैं। और पूर्वी प्रवेश द्वार पर एक सात मंजिला ऊंचा गोपुरम बना हुआ है। 100 फुट ऊंचे इस प्रवेश द्वार का निर्माण दक्षिण भारत के मंदिरों के बीच लोकप्रिय पांडियन शैली में किया गया है। इस गोपुरम पर भगवान विष्णु के 10 अवतारों को दर्शाया गया है, और शीर्ष पर आपको सात सुनहरे गुंबद दिखाई देंगे।

भित्ति चित्र : श्री पद्मनाभ और श्री कृष्ण के मंदिरों की बाहरी दीवारों सहित मंदिर की दीवारों पर कई भित्ति चित्र हैं। और मुख्य गर्भगृह के पीछे अनंतशयनम भित्ति चित्र केरल के मंदिर भित्ति चित्रों में सबसे बड़ा कहा जाता है। यह 18 फीट लंबा है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर उत्सव

पद्मनाभस्वामी मंदिर दो प्रमुख त्योहार मनाये जाते है  पेनकुनी (मार्च / अप्रैल में) और अल्पासी (अक्टूबर / नवंबर में)। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय महत्व के अन्य त्योहारों के दौरान भी विशेष समारोह होते हैं।  कुछ महत्वपूर्ण त्योहार हैं –

अल्पासी उत्सव : अल्पासी मलयालम महीने थुलम में आयोजित एक 10 दिवसीय उत्सव है। यह अक्टूबर/नवंबर में पड़ता है। अनुजना समारोह श्री पद्मनाभस्वामी और श्री कृष्णस्वामी के ध्वज ध्रुवों पर ध्वजारोहण समारोह (कोडियेट्टू) के साथ शुरुआत का प्रतीक है। अन्य कार्यों में मन्नुनेरु कोरल, मूल पूजा और कलासम शामिल हैं।

अल्पासी के दौरान नियमित अनुष्ठानों के साथ-साथ विशेष जुलूस (श्रीबली) भी निकाले जाते हैं। ये जुलूस दिन में दो बार, एक बार शाम को और फिर रात में निकलते हैं। पुजारी का एक समूह मंदिर के चारों ओर कंधों पर वाहन (देवता का वाहन) ले जाता है।

इन जुलूसों में छह तरह के वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है। ये हैं सिंहासन (सिंहासन) पहले दिन, अनंत (सर्प) दूसरे दिन, कमला (कमल) 3 दिन, पल्लक्कू (पालकी) दिन 4 और 7, इंद्र 6 वें दिन, और गरुड़ बाकी चारों पर दिन। गरुड़ को भगवान पद्मनाभ का पसंदीदा वाहन माना जाता है।

पद्मनाभ स्वामी के वाहन सोने में हैं, जबकि नरसिंह स्वामी और कृष्ण स्वामी के वाहन चांदी में हैं। इन्हें रंग-बिरंगे फूलों से खूबसूरती से सजाया गया है।

अल्पासी उत्सव के आठवें दिन, श्रीबाली की रात के दौरान, स्वामीयार और वालिया थंपुरन (शाही परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य) वालिया कनिका की पेशकश करते हैं। अल्पासी उत्सव का समापन क्रमशः 9वें और 10वें दिन पल्लीवेता और आरत जुलूसों के साथ होता है।

पल्लीवेटा के दौरान, वलिया थंपुरन और शाही परिवार के अन्य पुरुष सदस्य तलवार और ढाल के साथ जुलूस के साथ जाते हैं। और महाराजा एक कोमल नारियल पर एक तीर का लक्ष्य रखते हैं जो बुराई का प्रतीक है।

दसवें दिन फिर से, आरत के दौरान, वालिया थंपुरन और शाही परिवार के पुरुष सदस्य तलवार और ढाल के साथ देवताओं को ले जाते हैं। भव्य धूमधाम और शो और संगीत के साथ, पवित्र स्नान समारोह के लिए वाहनों को संघमुघम समुद्र तट पर ले जाया जाता है।

पूजा-अर्चना के बाद बारात वापस मंदिर लौट जाती है।

पेनकुनि उत्सवम : पेनकुनि उत्सव अल्पासी के समान है। लेकिन अल्पासी उत्सव के लिए, अंतिम दिन पर जोर दिया जाता है, आराट जुलूस का दिन, जो थिरुवोनम नक्षत्र के तहत होता है। पेनकुनी उत्सव के लिए, पहले दिन को महत्व दिया जाता है, कोडियेट्टू (झंडा फहराने) समारोह का दिन, जो रोहिणी नक्षत्र के तहत आयोजित किया जाता है।

पेनकुनी भी 10 दिनों का त्योहार है, जो मलयालम महीने मीनम के दौरान मनाया जाता है, जो मार्च/अप्रैल में पड़ता है। त्योहार के दौरान पूर्वी प्रवेश द्वार पर पांडवों की विशाल आकृतियां खड़ी की जाती हैं।

तिरुवोनम : थिरुवोनम पद्मनाभस्वामी मंदिर में मनाया जाने वाला एक अन्य प्रमुख त्योहार है। इस दिन को भगवान पद्मनाभ का जन्मदिन माना जाता है। और इस दिन, सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, देवताओं को लकड़ी के छह जोड़े ओनाविलु (धनुष) चढ़ाए जाते हैं।

चिंगम 1 : चिंगम मलयालम कैलेंडर का पहला महीना है, और महीने के पहले दिन को मलयालम नव वर्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में कई भक्त आते हैं।

विनायक चतुर्थी : यह त्योहार, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, मलयालम महीने चिंगम में मनाया जाता है। मंदिर परिसर में गणेश प्रतिमा को प्रसाद चढ़ाया जाता है और पूजा के दौरान दीपराधना (आरती समारोह) किया जाता है।

अष्टमी रोहिणी : कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन को श्री कृष्ण स्वामी का जन्मदिन माना जाता है। अष्टमी रोहिणी भी मलयालम महीने चिंगम में आती है। इस त्योहार को मनाने के लिए विशेष सजावट की जाती है और भगवान कृष्ण का दूध अभिषेक किया जाता है। अभिश्रवण मंडपम पर भगवान की विभिन्न छवियों के साथ एक अच्छी तरह से सजाया गया हाथी दांत का पालना रखा गया है।

नवरात्रि पूजा : नवरात्रि सितंबर/अक्टूबर में मनाया जाने वाला 9 दिवसीय त्योहार है। देवी सरस्वती की मूर्ति को भी पद्मनाभपुरम पैलेस से एक भव्य जुलूस में लाया जाता है, जिसकी पूजा अन्य मूर्तियों के साथ की जाती है। दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

महा शिवरात्रि : महा शिवरात्रि, भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाने वाला त्योहार है। यह फरवरी/मार्च में पड़ता है। इस दिन मंदिर में भगवान का विशेष अभिषेक किया जाता है।

राम नवमी : राम नवमी के दिन भगवान राम का जन्मदिन मनाया जाता है। त्योहार मार्च / अप्रैल में होता है और उनके सम्मान में विशेष पूजा की जाती है।

निरापुथरी : इस दिन पद्मनाभस्वामी मंदिर में अनाज के ढेर लाए जाते हैं। और मुख्य पुजारी धार्मिक अनुष्ठान करता है। बाद में, कुछ शीश श्री पद्मनाभ स्वामी के मंदिर में चढ़ाए जाते हैं। और बाकी मंदिर परिसर में ओट्टक्कल मंडपम और अन्य मंदिरों में फैला हुआ है।

मुराजापम : मुरजापम मंदिर में 56 दिनों तक मनाया जाने वाला एक अनुष्ठान है। देश के विभिन्न हिस्सों के वैदिक विद्वान इस अनुष्ठान के दौरान आठ मूरों (दौरों) में वेद मंत्रों का जाप करते हैं। प्रत्येक दौर सात दिन लंबा होता है, और एक पवित्र जुलूस – मुरासीवेली आयोजित किया जाता है, जिसमें पुजारी द्वारा सजाए गए वाहन में मूर्ति को ले जाया जाता है। मुराजपम छह साल में एक बार मनाया जाता है।

लक्षदीपम : पद्मनाभस्वामी मंदिर लक्षदीपम समारोह 56 दिवसीय मुराजपम अनुष्ठान के पूरा होने का प्रतीक है। इस दिन मंदिर को सजाने के लिए एक लाख तेल के दीयों का उपयोग किया जाता है और फिर समापन जुलूस निकाला जाता है। यह एक भव्य त्योहार है, जिसे बड़े पैमाने पर धूमधाम से मनाया जाता है। बड़ी संख्या में भक्त मंदिर जाते हैं और औपचारिक जुलूस में शामिल होते हैं।

पद्मनाभस्वामी मंदिर जाते समय ध्यान रखने योग्य बातें

केवल हिंदू धर्म को मानने वालों को ही मंदिर के अंदर जाने की अनुमति है।

दर्शन के समय से पहले मंदिर पहुंचने की तैयारी करें। वे आने-जाने के घंटों को लेकर सख्त हैं।

दर्शन शुरू होने से पहले कतार में लग जाएं। यहां तक ​​​​कि विशेष वीआईपी लाइन भी दिन बढ़ने के साथ लंबी हो सकती है।

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