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क्यों कहते हैं गाय को माता, इनकी पूजा और सेवा के फायदे

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हिंदू धर्म में गाय को माता कहा गया है गाय की पूजा एक माँ की तरह की जाती है हमारी संस्कृति में गाय को
पवित्र माना गया है।

प्राचीन काल से ही भारत में गोधन को मुख्य धन मानते आए हैं और हर प्रकार से गौरक्षा,
गौ सेवा एवं गौपालन पर ज़ोर दिया जाता रहा है। हमारे हिन्दूशास्त्रों, वेदों में गौ रक्षा, गौ महिमा, गौ पालन
आदि के प्रसगं भी अधिकाधिक मिलते हैं।

रामायण, महाभारत, भगवद् गीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है।

गाय, भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है। गौ पृथ्वी का प्रतीक है। गौ माता में सभी
देवी-देवता विद्यमान रहते हैं।

सभी वेद भी गौमाता में प्रतिष्ठित हैं। पुराणो में धर्म को भी गौ रूप में दर्शाया गया है। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था।

सभी जानवरों में मात्र गाय ही ऐसा जानवर है जो मां शब्द का उच्चारण करता है, इसलिए माना जाता है
कि माँ शब्द की उत्पत्ति भी गौवशं सेहुई थी।

भगवान श्रीकृष्ण गाय की सेवा अपने हाथों से करते थे और इनका निवास भी गोलोक बताया गया है। इतना ही नहीं गाय को कामधेनुके रूप में सभी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाला भी बताया गया है।

गाय हम सब को मां की तरह अपने दूध से पालती-पोषती है। आयुर्वेद के अनुसार भी मां के
दूध के बाद बच्चे के लिए सबसे फायदेमंद गाय का ही दूध होता है।

हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं है, गो-दान यानी गाय का दान करना भी उनमें से एक है।

गाय को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र मानकर माता का स्थान दिया गया है।

अनेक धर्म ग्रंथो में गाय के महत्व के बारे में बताया गया है। इसके दूध को अमतृ कहा गया है,
वहीं गौमूत्र और गोबर को भी परम पवित्र माना गया है।


गाय एक महत्वपूर्ण पालतू पशु है जो संसार में प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता
है। हिंदू गाय को ‘माता’ (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते
हैं।

भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम
के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गौ संख्या से की जाती थी।

हिंदी धर्म में धार्मिक दृस्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में गिनी जाती है।


भारत में गो पालन एक पवित्र कार्य माना जाता है।
गोहत्यां ब्रह्म हत्यां च करोति ह्यति देशि कीम।
यो हि गच्छत्यगम्यां चयः स्त्रीहत्यांकरोति च ॥ २३
भि क्षुहत्यांमहापापी भ्रणू हत्यां च भारत।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदि न्द्राश्चतर्दुर्दश ॥


क्यों पवित्र है गाय


पौराणि क कथाओं के अनुसार व श्रीमद्भागवत के अनुसार देवताओं और असुरो के बीच हुए समद्रु मथंन से
निकले14 रत्नों में से एक कामधेनुगाय थी पवित्र होने की वजह से इसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया।
माना जाता है कि कामधेनु से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई।


धर्मग्रंथों में ये भी बताया गया है गाय में सभी देवता निवास करते हैं। गाय की पूजा करनेसे सभी देवताओं का
पूजन अपने आप हो जाता है।
श्रीमद्भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण भी गायों की सेवा करते थे। श्रीकृष्ण रोज सबुह गायों की पूजा
करते थे और ब्राह्मणों को गौदान करते थे।
महाभारत के अनुसार, गाय के गोबर और मत्रू में देवी लक्ष्मी का निवास है। इसलिए इन दोनों चीजों का उपयोग
शभु काम में किया जाता है।
वैज्ञानिको ने भी माना है कि गौमत्रू में बहुत से उपयोगी तत्व पाए जाते हैं, जिनसे अनेक बीमारियों का उपचार
सभंव है।

गाय का दूध , घी आदि चीजें भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। विशषे अवसरों पर ब्राह्मणों को गाय दान
करने की परंपरा आज भी है


गाय के १०८ नाम


।। दोहा ।।
श्री गणपति का ध्यान कर जपो गौ मात के नाम।
इनके सुमिरन मात्र से खशु होवेंगे श्याम।।

1- कपिला, 2- गौतमी, 3- सरुभी, 4- गौमती, 5- नदंनी, 6- श्यामा, 7-वैष्णवी, 8- मंगला, 9- सर्वदर्व ेव वासि नी, 10- महादेवी, 11- सि धं ुअवतरणी, 12- सरस्वती, 13- त्रि वेणी, 14- लक्ष्मी, 15- गौरी, 16- वैदेही, 17- अन्नपूर्णा, 18- कौशल्या, 19- देवकी, 20- गोपालिनी। 21- कामधेनु , 22- आदिति , 23- माहेश्वरी, 24- गोदावरी, 25- जगदम्बा, 26- वजै यतं ी, 27- रेवती, 28- सती, 29- भारती, 30- त्रिविद्या, 31- गंगा, 32- यमुना, 33- कृष्णा, 34- राधा, 35- मोक्षदा, 36- उतरा- 37- अवधा, 38- ब्रजेश्वरी, 39- गोपेश्वरी, 40-कल्याणी। 41- करुणा, 42- वि जया, 43- ज्ञानेश्वरी, 44- कालि दं ी, 45- प्रकृति , 46- अरुंधति , 47- वदंृा, 48- गि रि जा, 49- मनहोरणी, 50- सध्ं या, 51- ललि ता, 52- रश्मि , 53- ज्वाला, 54- तलु सी, 55- मल्लि का, 56- कमला, 57- योगेश्वरी, 58- नारायणी, 59- शि वा, 60- गीता। 61- नवनीता, 62- अमतृ ा अमरो, 63- स्वाहा, 64- धनं जया, 65- ओमकारेश्वरी, 66- सि द्धि श्वरी, 67- नि धि , 68- ऋद्धि श्वरी, 69- रोहि णी, 70- दर्गाु र्गा, 71- दर्वाूर्वा, 72, शभु मा, 73- रमा, 74- मोहनेश्वरी, 75- पवि त्रा, 76- शताक्षी, 77- परि क्रमा, 78- पि तरेश्वरी, 79- हरसि द्धि , 80- मणि 81- अजं ना, 82- धरणी, 83- वि ध्ं या, 84- नवधा, 85- वारुणी, 86- सवु र्णा , 87- रजता, 88- यशस्वनि , 89- देवेश्वरी, 90- ऋषभा, 91- पावनी, 92- सप्रुभा, 93- वागेश्वरी, 94- मनसा, 95- शाण्डि ली, 96- वेणी, 97- गरुडा, 98- त्रि कुटा, 99- औषधा, 100- कालांगि 101- शीतला, 102- गायत्री, 103- कश्यपा, 104- कृति का, 105- पर्णाू र्णा, 106- तप्ृता, 107- भक्ति , 108- त्वरि ता।


।। दोहा ।।
अनतं नाम गौ मात के सब देवो का वास।
सब भक्तो का आपके चरणों में विश्वास।।
इन नामो को नित्य पठन से रिद्धि सिद्धि घर आयेगी।
श्री कृष्ण राम कृपा से,सर्व देव कृपा हो जायेगी।।


गाय को माता माननेके पीछेके कारण
मां शब्द की उत्पत्ति गौ वशं से हुई
गाय को माता मानने के पीछे यह आस्था है गाय में समस्त देवता निवास करते हैं व प्रकृति की कृपा भी गाय
की सेवा करने से ही मिलती हैं।

आज भी भारतीय समाज में गाय को गौ माता कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार,
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था।

सभी जानवरों में मात्र गाय ही ऐसा जानवर है जो मां शब्द का उच्चारण करता है, इसलिए माना जाता है कि मां शब्द की उत्पत्ति भी गौ वशं से हुई है।

गाय हम सब को मां की तरह अपने दूध से पालती-पोषती है।

आयुर्वेद के अनुसार भी मां के दूध के बाद बच्चे के लिए सबसे फायदेमदं गाय का ही दूध होता है।

कौन से देवों का वास है गाय मे


भविष्य पुराण के अनुसार गाय के सींगों में तीनों लोकों के देवी-देवता विद्यमान रहते हैं। गाय के सींग में ब्रह्मा, विष्णु व महेश विद्यमान रहते हैं।

सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु गाय के सींगों के निचले हिस्से में विराजमान हैं तो गाय के सींग के मध्य में शिव
शंकर विराजते हैं।

गौ के ललाट में मां गौरी तथा नासिका भाग में भगवान कार्तिकेय विराजमान हैं।
भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल) भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामना को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनु
भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूजनीय
बनाते है।

भविष्य पुराण के अनुसार गौ माता के पृष्ठदेश यानी पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु
विराजते हैं, भगवान शिव मुख में रहते हैं तो मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है गौ माता का रोम-रोम
महर्षि योगियों का ठिकाना है।

तो पूँछ का स्थान अनतं नाग का है खुरों में सारे पर्वत समाए हैं तो गोमत्रू में गंगा नदी
पवित्र नदियां , गोबर जहां लक्ष्मी का निवास , माता के नेत्रों में सूर्य और चन्द्र का वास है।

कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है प्राचीन समय में गौ दान सबसे बड़ा
दान माना जाता था और गौ हत्या को महापाप।
यही कारण है की वैदिक काल से ही हिंदू धर्म के मानने वाले गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के
लिए गोपाष्टमी का त्यौहार भी भारत भर में मनाया जाता है। इसलिए ही गाय को माता कहते हैं।


गौ पूजन से इच्छाओं की पूर्ति


हिन्दू धर्म में गाय को माता, कामधेनु कल्पवृक्ष और सभी कामनाओं की पूर्ति करनेवाली बताया गया है। गाय
माता के सपंर्णू शरीर में तैतीस कोटी देवी-देवताओं का वास होने का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है।

भगवान श्रीकृष्ण गौ सेवा के अन्नय प्रेमी थे। शास्त्रों में गाय माता के 108 नाम बताएं गए है। कहा जाता है कि गाय के
इन 108 नामों का जप करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं धार्मिक आस्था है कि गौ पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। घर की समृद्धि के लिए घर में गाय का होना बहुत शभु माना जाता है।


कहा जाता है कि विद्यार्थियों को अध्ययन के साथ ही गाय की सेवा भी करनी चाहिए। इससे उनका मानसिक
विकास तेजी से होता है। संतान और धन की प्राप्ति के लिए भी गाय को चारा खिलाना और उसकी सेवा करना
बेहतर परिणामदायक माना गया है|


गाय सांस से खींच लेती है सेवा करने वाले व्यक्ति के सारे पाप


धार्मिक आस्था है कि गाय अपनी सेवा करने वाले व्यक्ति के सारे पाप अपनी सांस के जरिए खींच लेती है। गाय
जहां पर बैठती है, वहां के वातावरण को शुद्ध करके सकारात्मकता से भर देती है।

ऐसा शायद इसलिए कहा जाता है क्योंकि गाय जहां भी बैठती है, वहां पर निर्भीकता से बैठती है। कहा जाता हैकि अपनी बैठी हुई जगह के सारे पापों को अपने अदंर समाकर, उस जगह को शुद्ध कर देनेकी क्षमता होती है


गौमत्रू होता है फायदेमंद


एक तरफ जहां गाय का गोबर पवित्र कार्यों के दौरान घर को लीपने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है, वहीं गाय
के गोबर से बने कंडे (उपले) हवन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

माना जाता है कि गाय के गोबर से हवन करने पर वातावरण और घर के आस-पास मौजूद कीड़े भाग जाते हैं और वायु शुद्ध होती है। वहीं, गौमत्रू को कई तरह की दवाइयां बनाने में प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इसमें रोगाणुओं को मारनेकी क्षमता होती है


ज्योतिष शास्त्र मे गाय का महत्व


सूर्य चन्द्रमा, मगंल, बधु , बहृस्पति , शुक्र , शनि , राहु, केतु के साथ-साथ वरुण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में
दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है।

जिससे सर्यू की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। वैतरणी पार करने के लिए गौ दान की प्रथा आज भी हमारे देश में मौजदू है।

श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों को तृप्ति मिलती है। पितर, देवता, मनुष्य सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है।


ज्योतिष और धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि विवाह जैसे मंगल कार्यो के लिए गोधूलि बेला सर्वोत्तम महुूर्त
होता है, संध्या काल में जब गाय जंगल से घास आदि खाकर आती है तब गाय के खुरों से उड़ने वाली धूल
समस्त पापों का नाश करती है।

नवग्रहों की शांति के लिए भी गाय कि विशेष भूमिका होती है। मगंल के अरिष्ट होनेपर लाल रंग की गाय की
सेवा और गरीब ब्राह्मण को गोदान ख़राब मगंल के प्रभाव को क्षीण कर देता है।

इसी तरह शनि की दशा, अन्तर्दशा और साढ़ेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्यों को कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
बधु ग्रह की अशभुता के निवारण हेतु गायों को हरा चारा खिलाने से राहत मिलती है।


पितृ दोष होने पर गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गड़ु, चारा आदि खिलाना चाहिए।

गाय की सेवा पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर भक्तों को मानसिक शांति और सखुमय जीवन होनेका वरदान देती है।

गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यतं शुभ एवं पवित्र है। गाय का
मत्रू गो औषधि है।

मां शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है। मानव समाज में भी मां शब्द कहना गाय से सीखा है।
जब गौ वत्स रंभाता है तो मां शब्द गुंजायमान होता है।

गौ-शाला में बैठ कर किए गए यज्ञ हवन ,जप-तप का फल कई गुना मिलता है।

बच्चों को नजर लग जानेपर, गौ माता की पूँछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उत्तर जाती है, इसका उदाहरण ग्रंथो में भी पढ़नेको मिलता है, जब पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूँछ से नजर उतारी गई।

गौ के गोबर से लीपने पर स्थान पवित्र होता है। गौ-मत्रू का पवन ग्रंथो में अथर्ववेद, चरकसहिता, राजति पटु,
बाण भट्ट, अमतृ सागर, भाव सागर, सुश्रुतसंहिता  में सुन्दर वर्णन किया गया गया है|

काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वो त्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करनेकी सर्वाधिक शक्ति होती है।

गाय का दूध एक ऐसा भोजन है, जिसमें प्रोटीन कार्बोहायड्रेट ,दुग्ध, शर्करा, खनिज लवण वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है। गाय का दूध रसायन का करता है।


आज भी कई घरों में गाय की रोटी रखी जाती है। कई स्थानों पर संस्थाए गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही है, जो कि प्रशंसनीय कार्य है।

साथ ही यांत्रिक कत्लखानों को बदं करने का आंदोलन, मांस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं एवं एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत है।

हिन्दू धर्म में गाय का धार्मिक महत्व


भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। गाय के भीतर देवताओंका वास माना गया है। दिवाली के दूसरे दिन
गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशषे पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।

पुराण के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप
माना गया है।

उसकी हत्या करना तो नर्क के द्वार को खोलनेके समान है, जहां कई जन्मों तक दुःख भोगना होता है।
अथर्ववेद संहिता के अनुसार- ‘धेनुसदानाम रईनाम’ अर्थात गाय समृद्धि का मलू स्रोत है। गाय समृद्धि व प्रचुरता की
द्योतक है।

वह सृष्टि के पोषण का स्रोत है। वह जननी है। गाय के दूध से कई तरह के प्रॉडक्ट (उत्पाद) बनते
हैं।

गोबर से ईंधन व खाद मिलती है। इसके मूत्र से दवाइयाँ एव खाद बनते है।
प्राचीन ग्रंथो में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समद्रु मथंन के 14 रत्नों में एक), पदमा, कपिला आदि गायों
महत्व बताया है।

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर्थंर ऋषभ देव जी ने असि , मसि व कृषि गौ वशं को साथ लेकर मनुष्य
को सिखाए।

हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से काल सर्प योग
निवारण हो जाता है।

गाय के पीछेके पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करनेसे
चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि गाय के पैरों चार धाम है।


धार्मिकर्मि ग्रंथो में लिखा है “गावो वि श्वस्य मातर:” अर्थात गाय विश्व की माता है।

गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सर्यू नाड़ी एवं केतु नाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धूप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौ माता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्वारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णछर कहते हैं। यह पदार्थ नीचे
आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है।

इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीनेसे बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यतं अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हों और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले हैं वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा।

गाय का रहस्य-

गाय इसलिए पूजनीय नहीं है कि वह दूध देती है और इसके होने से हमारी सामाजिक पूर्ति होती है, दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शरूु करती है।

गाय का वैज्ञानिक महत्व


वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है,
जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ते हैं।

पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं गौमाता के खुर से उड़ी हुई धूल को जो सिर पर धारण करता है, वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है।

पशुओ में बकरी, भेड़, ऊंटनी, भैंस का दूध भी काफी महत्व रखता है। किन्तु केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देनेके कारण भैंस प्रजाति को ही प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि यह दूध अधिक देती है इसमें वसा की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है।
गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजदू कम मात्रा में प्राप्त होता है। दूध अधिक मिले इसके
लिए कुछ लोग गाय और भसैं का दूध क्रूर और अमानवीय तरीके से निकालते हैं।

गाय का दूध निकालने से पहले यदि बछड़ा/बछिया हो तो पहले उसे पिलाया जाना चाहिए। वर्तमान में लोग बछड़ा/बछिया का हक कम करतेहै। साथ ही इंजेक्शन देकर दूध बढ़ानेका प्रयत्न करतेहैं, जो की उचित नहीं है।


जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है। एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते
हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है।

इसलिए हमारे यहां यज्ञ हवन अग्नि -होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है। प्रदषूण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।

वास्तुदोष दूर करती है गौ माता


माना जाता है कि गाय जिस जगह खड़ी रहकर आनदंपर्वूकर्व चनै की सांस लेती है वहां वास्तुदोष समाप्त हो
जातेहैं।

जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं और मां लक्ष्मी का
उस घर में वास माना जाता है।

गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे, गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है। आपके घर के आगे गाय आकर बैठने लगे तो समझ लीजिए अच्छे दिन आने वाले हैं।

घर के मुख्य द्वार से वास्तु मिटता है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।


गौ माता की सेवा के फायदे

जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती
है।

गौ माता के खुरों में देवताओं का वास होता है। ऐसी मान्यता है कि जहां गौ माता विचरण करती हैं उस जगह
सांप बिच्छू नहीं आते।


गाय के पूँछ से दूर करेंनजर दोष


मान्यता है कि गौ माता के गोबर में लक्ष्मीजी का वास होता है। गौ माता की एक आखं में सूर्य व दूसरी में चंद्र देव का वास होता है।

गौ माता के दूध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है। गौ माता की पूँछ में हनुमानजी का वास होता है। ऐसा मानते हैं कि किसी व्यक्ति को बुरी नजर लग जाए तो गौ माता की पूँछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है।


तो रोगों का नाश करती हैं गौ माता

गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है उसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है।

रोजाना सबुह आधा घंटा गौ माता की पीठ पर हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है।

गौ माता को चारा खिलाने से 33 कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है, क्योंकि मान्यता है कि गौ माता में 33 कोटी देवी देवताओंका वास होता है।


गाय जगाए सोया भाग्य


माना जाता है कि जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड को रखकर गौ
माता को जीभ से चटाए गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा
जागृत हो जाती है।

गौ माता के चारों चरणों के बीच से निकलकर परिक्रमा करने से इंसान भयमुक्त हो जाता है।


शांत करें नौ ग्रह एव कार्य सम्पन्न करे

काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं, जो ध्यानपर्वूकर्व धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु
दोषों से छुटकारा मिलता है।

कोई भी शभु कार्य अटका हुआ हो और बार-बार प्रयत्न करनेपर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में उस काम के बारे में कहिए। रुका हुआ काम बन जाएगा।


भारतीय गाय की विशेषताएँ हैं-


भगवत पुराण के अनुसार, सागर मन्थन के समय पाँच दैवीय कामधेनु ( नन्दा, सुभद्रा, सरुभि , सुशीला, बहुला)
निकलीं।

कामधेनु या सरुभि (सस्ं कृत: कामधकु ) ब्रह्मा द्वारा ली गई। दिव्य वैदिक गाय (गौमाता) ऋषि को दी
गई ताकि उसके दिव्य अमृत पचं गव्य का उपयोग यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठानो और संपूर्ण मानवता के
कल्याण के लिए किया जा सके।
भारतीय गाय की मुख्य २ वि शषेताएँ हैं-
(१) सन्ुदर कूबड़
(२) उनकी पीठ पर और गर्दन के नीचेत्वचा का झकु ाव है: गलकंबल
भारत में गाय की ३० से अधिक नस्लें पाई जाती हैं।

लाल सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमखु नस्लें हैं।
लोकोपयोगी दृष्टि में भारतीय गाय को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

पहले वर्ग में वे गाएँ आती हैंजो दूध तो खबू देती हैं, लेकिन उनकी पसंु तं ान अकर्मण्र्म य अत: कृषि मेंअनपुयोगी होती है। इस प्रकार की गाएँदग्ुधप्रधान एकांगी नस्ल की हैं।

दसू री गाएँ वेहैं जो दूध कम देती हैंकि ंतुउनके बछड़ेकृषि और गाड़ी खींचनेके काम आते हैं। इन्हें वत्सप्रधान एकांगी नस्ल कहते हैं। कुछ गाएँ दूध भी प्रचरु देती हैंऔर उनके बछड़ेभी कर्मठ होतेहैं। ऐसी गायों को सर्वांगी नस्ल की गाय कहते हैं।

भारत की गो जातियाँ निम्नलिखित हैं


साहीवाल जाति
साहीवाल गाय का मलू स्थान पाकि स्तान मेंहै। इन गायों का सि र चौड़ा उभरा हुआ, सींग छोटी और मोटी, तथा
माथा मझोला होता है। भारत मेंयेराजस्थान के बीकानेर,श्रीगगं ानगर, पजं ाब मेंमांटगमु री जि ला और रावी
नदी के आसपास लायलपरु, लोधरान, गजं ीवार आदि स्थानों मेंपाई जाती है। येभारत मेंकहींभी रह सकती
हैं। एक बार ब्यानेपर ये१० महीनेतक दूध देती रहती हैं। दूध का परि माण प्रति दि न 10-20 लीटर प्रति दि न
होता है। इनके दूध में मक्खन का अशं पर्या प्त होता है। इसके दूध मेंवसा 4% से6% पाई जाती है।
सि धं ी
इनका मख्ु य स्थान सि धं का कोहि स्तान क्षेत्र है। बि लोचि स्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लि ए प्रसि द्ध
है। इन गायों का रंग बादामी या गेहुँआ, शरीर लबं ा और चमड़ा मोटा होता है। येदसू री जलवायुमेंभी रह
सकती हैंतथा इनमेंरोगों सेलड़नेकी अद्भतु शक्ति होती है। सतं ानोत्पत्ति के बाद ये३०० दि न के भीतर कम
सेकम २००० लीटर दूध देती हैं।
काँकरेज
कच्छ की छोटी खाड़ी सेदक्षि ण-पर्वू र्वका भभू ाग, अर्था त्सि धं के दक्षि ण-पश्चि म सेअहमदाबाद और रधनपरुा
तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मलू स्थान है। वसै ेयेकाठि यावाड़, बड़ोदा और सरूत मेंभी मि लती हैं। ये
सर्वां गी जाति की गाए हैंऔर इनकी माँग वि देशों मेंभी है। इनका रंग रुपहला भरूा, लोहि या भरूा या काला होता
है। टाँगों मेंकालेचि ह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग कालेहोतेहैं। येसि र उठाकर लबं ेऔर सम कदम रखती हैं।
चलतेसमय टाँगों को छोड़कर शषे शरीर नि ष्क्रि य प्रतीत होता हैजि ससेइनकी चाल अटपटी मालमू पड़ती है।
सवाई चाल सेप्रसि द्ध गाय है। केंद्रीय गोवशं अनसु धं ान सस्ं थान मेंगाय पर शोध करनेवाले वैज्ञानिको के
अनुसार कांकरेज गाय कि सानों की आमदनी कई गनु ा बढ़ा सकती है। राजस्थान मेंइसेसांचोरी गाय के नाम से
जानी जाती है।
मालवी
येगायेमध्यम दधु ारू होतीं हैंतथा प्रति ब्यात दूध देनेकी क्षमता 627-1227लीटर तक होती है। इनका शरीर
ताकतवर और गठि ला, रंग सफेद,भरूा या काला होता हैतथा गर्दन कुछ काली होती हैऔर इनकी गर्दन पर
उभार होता हैजि से(hump) कहतेहैं। गलेके नीचेएक झालर लटकी रहती हैजि सेगलकंबल कहतेहै। पूँछ
लबं ी और सन्ुदर होती हैजि सके अतिं तिम सि रा कालेबालों सेडकं ा रहता है। मालवी गाय के बछड़ेबड़ेबलवान
होतेहैंजि ससेबड़ेहोनेपर गाड़ी खींचनेऔर खेती के काम मेंलि या जाता है। येमालवा क्षेत्र मेंउज्जनै
,रतलाम,मदं सौर, राजगढ़,ब्यावरा,नरसि हं गढ़, शाजापरु के आस-पास पाई जाती हैं।
नागौरी
इनका प्राप्ति स्थान जोधपरु के आस-पास का प्रदेश है। येगायेंभी वि शषे दधु ारू नहीं होतीं, कि ंतुब्यानेके बाद
बहुत दि नों तक थोड़ा-थोड़ा दूध देती रहती हैं।
थारपारकर
येगायेंदधु ारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भरूा, या सफेद होता है। कच्छ, जसै लमेर, जोधपरु, बीकानेर और सि धं
का दक्षि णपश्चि मी रेगि स्तान इनका प्राप्ति स्थान है। इनकी खरुाक कम होती है। इसका दूध 10 से16 लीटर
प्रति दि न तक होता है
भगनाड़ी
नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका प्राप्ति स्थान है। ज्वार इनका प्रि य भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी
बनाकर भी इन्हेंखि लाई जाती है। ये गायें दूध खबू देती हैं।
दज्जल
पजं ाब के डरेागाजीखाँजि लेमेंपाई जाती हैं। ये दूध कम देती हैं।
गावलाव
दूध साधारण मात्रा मेंदेती है। प्राप्ति स्थान सतपड़ुा की तराई, वर्धा , छि ंदवाड़ा, नागपरु, सि वनी तथा बहि यर है।
इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। येकान उठाकर चलती हैं।
हरि याना
ये८-१२ लीटर दूध प्रति दि न देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोति या या हल्का भरूा होता हैं। येऊँचेकद और
गठीलेबदन की होती हैंतथा सि र उठाकर चलती हैं। इनका प्राप्ति स्थान रोहतक, हि सार, सि रसा, करनाल,
गडुगाँव और जि दं है। भारत की पांच सबसेश्रेष्ठ नस्लो मेंहरयाणवी नस्ल आती है। यह अद्भतु है।
अगं ोल या नीलोर
येगाएँदधु ारू, सदंुर और मथं रगामि नी होती हैं। प्राप्ति स्थान तमि लनाडु, आध्रं प्रदेश, गटंुूर, नीलोर, बपटतला
तथा सदनपल्ली है। येचारा कम खाती हैं।
राठी
इस गाय का मलू स्थान राजस्थान मेंबीकानेर, श्रीगगं ानगर हैं। येलाल-सफेद चकतेवाली,काले-सफेद,लाल,
भरूी,काली, आदि कई रंगों की होती है। येखाती कम और दूध खबू देती हैं। येप्रति दि न का 10 से20 लीटर तक
दूध देती है। इस पर पशुवि श्ववि द्यालय बीकानेर राजस्थान मेंरि सर्च भी काफी हुआ है। इसकी सबसेबड़ी
खासि यत, येअपनेआप को भारत के कि सी भी कोनेमेंढाल लेती है।
थारपारकर नस्ल
पीलीभीत, परूनपरु तहसील और खीरी इनका प्राप्ति स्थान है। इनका मँहु सँकरा और सींग सीधी तथा लबं ी होती
है। सींगों की लबाई १२-१८ इंच होती है। इनकी पूँछ लबं ी होती है। येस्वभाव सेक्रोधी होती हैऔर दूध कम
देतीयेप्रति दि न 30 लीटर या इससेअधि क दूध देती हैं। इनका मलू स्थान काठि यावाड़ का गीर जंगल है।
राजस्थान मेंरैण्डा व अजमेरी के नाम सेजाना जाता है[कृपया उद्धरण जोड़ें] केंद्रीय गोवशं अनसु धं ान सस्ं थान
मेंगाय पर शोध करनेवाले वैज्ञानिको के अनुसार गीर गाय कि सानों की आमदनी कई गनु ा बढ़ा सकती है।[3]
देवनी – दक्षि ण आध्रं प्रदेश और हि सं ोल मेंपाई जाती हैं। ये दूध खबू देती है।
नीमाड़ी – नर्मदर्म ा नदी की घाटी इनका प्राप्ति स्थान है। येगाएँदधु ारू होती हैं।
अमतृ महल, हल्लीकर, बरगरू, बालमबादी नस्लेंमसै रू की वत्सप्रधान, एकांगी गाएँहैं। कंगायम और
कृष्णवल्ली दूध देनेवाली हैं।
गाय के शरीर मेंसर्यू र्यकी गो-कि रण शोषि त करनेकी अद्भतु शक्ति होनेसेउसके दूध , घी, झरण आदि में
स्वर्णक्षर्ण ार पायेजातेहैंजो आरोग्य व प्रसन्नता के लि ए ईश्वरीय वरदान हैं। पण्ुय व सव्कल्याण चाहनेवाले
गहृस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहि ए क्योंकि गौ-सेवा सेसखु -समद्ृधि होती है।
गौ-सेवा सेधन-सम्पत्ति , आरोग्य आदि मनुष्य-जीवन को सखु कर बनानेवालेसम्पर्णू र्णसाधन सहज ही प्राप्त हो
जातेहैं। मानव #गौ की महि मा को समझकर उससेप्राप्त दूध , दही आदि पचं गव्यों का लाभ लेतथा अपने
जीवन को स्वस्थ, सखु ी बनाये- इस उद्देश्य सेहमारेपरम करुणावान ऋषि यों-महापरुुषों नेगौ को माता का
दर्जा दि या तथा कार्ति कर्ति शक्ु ल अष्टमी के दि न गौ-पजू न की परम्परा स्थापि त की। यही मगं ल दि वस
गोपाष्टमी कहलाता है।
गोपाष्टमी भारतीय सस्ं कृति का एक महत्वपर्णू र्णपर्व है। मानव–जाति की समद्ृधि गौ-वशं की समद्ृधि के साथ
जड़ुी हुई है। अत: गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पजू न-परि क्रमा कर वि श्वमांगल्य की प्रार्थनर्थ ा करनी
चाहि ए।
वि देशी नस्ल की गाय
जर्सी और कई वि देशी नस्लों कि “गाय” जि सेअग्रं ेजी में”Cow” कहतेहै, उनकी मलू उत्पत्ति “URUS” नामक
जंगली जानवर सेहुई है| वि देशी नस्लों कि “गाय” को “Bos TaURUS” नाम सेभी जाना जाता है|
वि देशी वैज्ञानिको नेजर्सी और कई वि देशी नस्लों कि “गाय” (Bos TaURUS) कि मलू उत्पत्ति आनवु शिं शिक रूप
सेसशं ोधि त “URUS नामक जंगली जानवर सेकि है। जर्सी और कई वि देशी नस्लों (Bos TaURUS
)आनवु शिं शिक रूप सेसशं ोधि त URUS नामक जंगली जानवर की मलू नस्ल है।
वि देशी गाय की नस्लेंबड़ी मात्रा में दूध देती हैं, क्योंकि वेआनवु शिं शिक रूप सेसशं ोधि त जानवर हैं, लेकि न दूध
की गणु वत्ता इतनी अच्छी नहीं है|
जर्सी और कई वि देशी नस्लों कि “गाय” के मत्रू और गोबर मेंकोई चि कि त्सा गणु नहींपाया जाता है।
गाय के दूध के फायदे

  1. पाचन मेंसहायक
    गाय का दूध आपको बदहजमी सेबचानेमेंमदद कर सकता है। दरअसल, गाय के दूध मेंवि टामि न बी-12
    पाया जाता है। यह वि टामि न पाचन की प्रक्रि या मेंमदद करता है। दूध के प्रति कप में1.2mg वि टामि न बी-12
    होता है। एक दि न मेंवयस्कों को 2.4mg वि टामि न बी-12 की जरूरत हैयानी एक कप दूध आपके शरीर में
    वि टामि न बी-12 की आधी जरूरत को परूा कर देता है(1)। वहीं, गाय के दूध का लगभग 80% प्रोटीन कैसि इन
    (casein) होता है, जो परूेशरीर मेंकैल्शि यम और फॉस्फेट को पहुंचाता और पाचन मेंसहायता करता है।
    इसलि ए, कहा जा सकता हैकि दूध का सेवन करनेसेखाना अच्छेसेहजम हो सकता है।
  2. कैंसर सेबचाव
    माना जाता हैकि कैंसर के इलाज मेंभी गाय के दूध का सेवन फायदेमदं होता है। दरअसल, गाय के फोर्टि फाइड
    (अति रि क्त वि टामि न और खनि ज डालकर बनाया गया) दूध मेंवि टामि न-डी उच्च मात्रा मेंपाया जाता है(2),
    जो कैंसर के खतरेको कम कर सकता है। इसलि ए, कहा जाता हैकि गाय का दूध कैंसर की आशंका को पनपने
    सेरोकनेमेंमदद कर सकता है(3)। एक रि सर्च की मानें, तो दूध और डये री उत्पाद का सेवन सभं वतः
    कोलोरेक्टल कैंसर, ब्लडै र कैंसर, गैस्ट्रि क कैंसर और स्तन कैंसर सेबचाता है। वहीं, डये री सेवन प्रोस्टेट कैंसर
    का जोखि म माना जाता है(4)। हालांकि , कुछ अध्ययन कहतेहैंकि दूध के सेवन और कैंसर के बीच कि सी भी
    तरह के सबं धं की कोई स्पष्ट जानकारी अभी तक नहींमि ल पाई है(5)।
  3. आखं ों के स्वास्थ्य के लि ए
    गाय के दूध को आखं ों की रोशनी बढ़ानेमेंभी सहायक माना जाता है, क्योंकि गाय के दूध मेंवि टामि न-ए होता
    है। वि टामि न-ए आखं ों के लि ए जरूरी पोषक तत्वों मेंसेएक है(6)। वि टामि न-ए आखं ों की रोशनी को सधु ारने
    मेंमदद करता है। इसके अलावा वि टामि न-ए की कमी की सेआपको रतौंधी, आखं ों के सफेद हि स्सेमेंधब्बे
    (बि टोट स्पॉट) जसै ी कई आखं ों सेसबं धं ी समस्याएं हो सकती हैं।
  4. हृदय स्वास्थ्य
    गाय का दूध पीनेसेआप हृदय को भी स्वास्थ रख सकतेहैं। दूध पीनेसेइस्केमि क स्ट्रोक (ब्लड क्लोट होनेकी
    वजह सेआनेवाला स्ट्रोक) के जोखि म को कम कि या जा सकता है। साथ ही इस्केमि क हृदय रोग को कम करने
    मेंभी फायदेमदं माना जाता है(5) । इसमेंमौजदू सचै रुेटेड फैटी एसि ड के उच्च प्लाज्मा स्तर भी हृदय रोग के
    जोखि म को कम करनेमेंमदद करतेहैं, जो डये री उत्पादों मेंमौजदू रहतेहैं।
  5. इम्यनिूनिटी
    गाय के कच्चे दूध मेंप्रोबायोटि क्स यानी जीवि त माइक्रोऑर्गेनाइज्म होतेहैं, जो इम्यनिूनिटी को बढ़ातेहैं। एक
    अध्ययन मेंपाया गया हैकि कच्चा दूध पीनेसेबच्चों का इम्यनू सि स्टम मजबतू होता हैऔर उनका शरीर
    कई तरह के सक्रं मण का सामना करके बच्चों के वि कास मेंमदद करता है। इसके अलावा, दूध उबालकर पीने
    सेभी इम्यनू सि स्टम मजबतू होता है(7) (8)। ऐसेमेंकहा जा सकता हैकि दूध आपको बीमारि यों सेबचानेमें
    भी मदद कर सकता है, क्योंकि जब आपकी प्रति रक्षा प्रणाली मजबतू रहेगी, तो आपका शरीर रोगों सेलड़कर
    आपको उनसेबचाता रहेगा।
  6. हड्डी स्वास्थ्य
    गाय का दूध हड्डी को स्वस्थ रखनेमेंभी काफी सहायक हो सकता है। दरअसल, दूध और डये री के अन्य
    उत्पाद मग्ैनीशि यम और कैल्शि यम के महत्वपर्णू र्णस्रोत होतेहैं। इसलि ए, हड्डि यों के वि कास के लि ए दूध का
    सेवन काफी महत्वपर्णू र्णमाना जाता है। बच्चों व यवु ाओंके साथ ही व्यस्कों के हड्डी स्वास्थ्य के लि ए भी दूध
    को अच्छा माना गया है।
    गाय की पूजा ओर सेवा के फायदे
    हिंदू धर्म मेंगाय को पजू नीय स्थान प्राप्त है. ऐसी मान्यता हैकि बड़ेसेबड़ा कष्ट भी सि र्फ गौ माता की सेवा
    करनेसे दूर हो जाता है. गाय में33 कोटि देवी-देवताओंका वास होता है. मान्यता हैकि गाय की सेवा करनेसे
    जहांसभी देवी-देवता प्रसन्न होतेहैं, वहींघर मेंसखु -समद्ृधि और अच्छेस्वास्थ्य का वरदान मि लता है.
    इतना ही नहीं, गाय की सेवा सेकंुडली के सभी दोष दूर हो जातेहैं. अगर आपके जीवन मेंभी कई परेशानि यां हैं,
    जो गाय सबं धं ी इन उपायों को करनेसेआपके कष्ट जल्द दूर हो जाएंगे.
    सखु समद्ृधि के आती है
    धार्मि कर्मि मान्यता हैकि गाय को खि लाई गई कोई भी चीज सीधेदेवी-देवताओंतर पहुंचती है. इसलि ए पहली
    रोटी गाय के लि ए नि काली जाती है. गाय के लि ए पहली रोटी नि कालनेसेजीवन की सभी समस्याएं दूर हो
    जाती हैंऔर परि वार मेंसखु -समद्ृधि का वास होता है.
    बधु ग्रह के दष्ुप्रभावों का नाश होता है
    कंुडली मेंबधु ग्रह कमजोर होनेपर या कि सी और कारण सेउसके दष्ुप्रभाव झले नेपर बधु वार के दि न गाय को
    हरा चारा खि लानेकी सलाह दी जाती है. इसेबहुत ही शभु माना जाता है. ऐसा करनेसेतमाम समस्याएं दूर हो
    जाती हैं.
    शनि सबं न्धी समस्याओंका नि राकरण होता है
    शनि सेजड़ुी कि सी भी प्रकार की समस्या के लि ए कालेरंग की गाय की सेवा करनेकी सलाह दी जाती है. वहीं,
    अगर सभं व हो तो कि सी ब्राह्मण को कालेरंग की गाय दान करनेसेसभी समस्याएं दूर हो जाती हैं.
    मगं ल सेजड़ुी समस्याओंका समाधान होता है
    कंुडली मेंमगं ल दोष होनेपर व्यक्ति को कई तरह की परेशानि यों का सामना करना पड़ता है. ऐसेमेंलाल रंग
    की गाय की सेवा करें. मगं लवार के दि न गाय का पजू न करेंऔर उसेगड़ु चना खि लाएं.
    गरुु सेजड़ुी परेशानी समाप्त होती है
    बहृस्पति ग्रह आपके पक्ष मेंन हो तो वि वाह मेंदेरी होती है. शि क्षा व्यवधान आता है. साथ ही कई परेशानि यां
    घेर लेती हैं. ऐसेमेंबहृस्पति वार के दि न गाय को हल्दी सेति लक करेंऔर आटेकी लोई मेंगड़ु चनेकी दाल
    और चटुकी भर हल्दी डालकर खि लाएं.
    पि तृदोष सेमक्तिुक्ति मि लती है
    अगर कि सी जातक की कंुडली मेंपि तृदोष हैतो अमावस्या के दि न गाय को रोटी, गड़ु, हरा चारा खि लाएं. वहीं,
    अगर रोजाना गाय की सेवा कर सकतेहैं, तो बेहतर है. इससेपि तृदोष शांत होनेके साथ अन्य ग्रह भी शांत
    होतेहैं.
    ज्योति ष मेंगाय सेजड़ुेकुछ उपाय
    पहली रोटी गौ माता के लि ए पकाएंव खि लाएं।
    प्रत्येक मांगलि क कार्यों मेंगौ माता को अवश्य शामि ल करें।
    बच्चेअगर कहनेसेबाहर हो तो गौमाता को भोजन उनके हाथ सेया हाथ लगवा कर खि लाएं।
    प्रति दि न,सप्ताह मेंया महीनेमेंएक बार गौशाला परि वार समेत जानेका नि यम बनाएं।
    गर्मि यर्मि ों मेंगौ माता को पानी अवश्य पि लाएं।
    सर्दि यों मेंगौ माता को गड़ु खि लाएं। गर्मि यर्मि ों मेंगाय को गड़ु न खि लाएं।
    गौ माता के पचं गव्य हजारों रोगों की दवा है, इसके सेवन सेअसाध्य रोग मि ट जातेहैं।
    परि वार मेंगौ सेप्राप्त पचं गव्य यक्ुत पदार्थों का उपयोग करें, पचं गव्य के बि ना पूजा पाठ हवन सफल नहीं
    होत।े
    गौ माता जि स जगह खड़ी रहकर आनदं पर्वूकर्व चनै की सांस लेती है। वहांवास्तुदोष समाप्त हो जातेहैं।
    गौ माता को चारा खि लानेसेततैं ीस कोटी देवी देवताओंको भोग लग जाता है।
    गौ माता कि सेवा परि क्रमा करनेसेइंसान भय मक्ुत हो जाता हैव सभी तीर्थो के पण्ुयों का लाभ मि लता है।
    गौ माता के गोबर सेनि र्मि तर्मि शुद्ध धपू -बत्ती का उपयोग करें।
    गौ गोबर के बनेउपलों सेरोजाना घर दकू ान मदिं दिर परि सरों पर धूप करनेसेवातावरण शुद्ध होता हैऔर
    सकारात्मक ऊर्जा मि लती है।
    घर के दरवाजेपर गाय आयेतो उसेखाली न लौटाएं।
    गौ माता को कभी परै न लगाए, गौ माता अन्नपर्णाू र्णा देवी कामधेनुहै, मनोकामना पर्णू र्णकरनेवाली है।
    गौ माता के गलेमेंघटं ी जरूर बांधेय गाय के गलेमेंबधं ी घटं ी बजनेसेगौ आरती होती है।
    जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता हैउस पर आनेवाली सभी प्रकार की वि पदाओंको गौ माता हर लेती
    है।
    गौ माता के गोबर मेंलक्ष्मी जी का वास होता हैऔर गौ माता के मत्रु मेंगगं ाजी का वास होता है।
    गौ माता के दधु मेसवु र्ण तत्व पाया जाता हैजो रोगों की क्षमता को कम करता है।
    गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है। उस कुबड़ मेंसर्यू र्यकेतुनाड़ी होती है। रोजाना सबु ह गौ माता
    की पीठ पर हाथ फेरनेसेरोगों का नाश होता है।
    तन मन धन सेजो मनुष्य गौ सेवा करता हैवो वतै रणी गौ माता की पूँछ पकड कर पार करता है। उसकी
    अकाल मृत्यु नहीं होती और उन्हेंगौ लोकधाम मेंवास मि लता है।
    जि स व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली मेंगड़ु को रखकर गौ माता को जीभ से
    चटायेगौ माता की जीभ हथेली पर रखेगड़ु को चाटनेसेव्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खलु जाती है।
    गाय माता आनदं पर्वूकर्व सासेंलेती हैछोडती है। वहांसेनकारात्मक ऊर्जा भाग जाती हैऔर सकारात्मक ऊर्जा
    की प्राप्ति होती हैजि ससेवातावरण शुद्ध होता है।
    जो धर्यै र्यपर्वूकर्व धर्म के साथ गौ पजू न करता हैउनको शत्रुदोषों सेछुटकारा मि लता है।
    स्वस्थ गौ माता का गौ मत्रू अर्क को रोजाना दो तोला सेवन करनेसेसारेरोग मि ट जातेहैं।
    गौ माता वात्सल्य भरी नि गाहों सेजि सेभी देखती हैउनके ऊपर गौकृपा हो जाती है।
    कोई भी शभु कार्य अटका हुआ हो या प्रयत्न करनेपर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान मेंकहि ये
    रूका हुआ काम बन जायेगा।